पुलिस की यह कैसी भाषा ?
“तोड़ देंगे तुम्हारे शरीर का कोना-कोना।
मगर नहीं होने देंगे तुमको कोरोना।”
गिरीश पंकज
छत्तीसगढ़ में 28 तारीख तक के लिए लॉकडाउन लागू कर दिया गया है। इस बीच प्रशासन ने लोगों को घर के अंदर ही रहने की हिदायत दी है। यहां तक तो ठीक है कि पुलिस लोगों को सतर्क करने के लिए सड़कों पर घूम रही है । लेकिन मैंने रायपुर और अंबिकापुर के जो वीडियो देखे, उसे देख कर लगा कि कुछ अति हो रही है। हम कोरोना से लड़ाई लड़ रहे हैं, पाकिस्तान या चीन से युद्ध नहीं कर रहे हैं या कोई साम्प्रदायिक दंगे नहीं हो रहे हैं कि उसके लिए सड़कों पर पुलिस को हथियारों के साथ तैनात होकर निकलना पड़े। रायपुर में पुलिस की गाड़ी हथियारों से लैस पुलिस वाले सड़कों पर घूमते नजर आए, तो अंबिकापुर में भी पुलिस वाले सड़कों पर गश्त करते हुए लाउडस्पीकर से उद्घोषणा कर रहे थे,
“तोड़ देंगे तुम्हारे शरीर का कोना-कोना।
मगर नहीं होने देंगे तुमको कोरोना।”
उसके बाद यह भी कह रहे थे, “आपके अच्छे के लिए हम बोल रहे हैं”। मैं पूछना चाहता हूं, यह कैसी भाषा है ? ये पुलिस के कैसे संस्कार हैं कि वह अपनी ही जनता से इस भाषा मे बात करे? इसी आचरण को देखकर लोग कहते हैं हमारे देश में लोकतंत्र अभिशप्त हो गया है। कहने को हम आजाद हैं लेकिन आज भी पुलिस की मानसिकता अंग्रेजों वाली ही बनी हुई है। कोरोना से बचाव के लिए पुलिस यह भी तो कह सकती थी कि “आप सब घर पर रहिए ।…बाहर मत निकलिए क्योंकि कोरोना किसी को नहीं पहचानता।… वह किसी को भी संक्रमित कर सकता है।… आप बाहर मत निकलिए वरना हमें कड़ी कार्रवाई करनी पड़ सकती है।” छत्तीसगढ़ सरकार के गृह मंत्रालय को इस तरह का व्यवहार करवाने वालों का संज्ञान लेना चाहिए और उन पर कार्रवाई करनी चाहिए। अंततः निवेदन : पुलिस मित्र बने, मित्र !