यह आदिवासियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा नहीं तो और क्या है ?
संजय पराते के फेसबुक वॉल से
◆जब हमें फर्जी राष्ट्रवाद और धार्मिक उन्माद में फंसाकर उलझाया गया था भाजपा और मोदी केवल आदिवासी ही नही सम्पूर्ण देश के हित के खिलाफ जाकर देश की सम्पदा बेचने और पर्यावरण को तहस-नहस करने में जुटे हुए थे । भाजपा सरकार ने भारतीय वन अधिनियम में कई संशोधन प्रस्तावित किये हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी वनाधिकार कानून को निष्प्रभावी करना है. यह कानून आदिवासियों और वनों में परंपरागत रूप से रहने वाले गैर-आदिवासियों के साथ सदियों से जारी ऐतिहासिक अन्याय’ को दूर करने के लिए बनाया गया है.
◆ ये प्रस्तावित संशोधन वन अधिकारियों को बिना किसी जिम्मेदारी के किसी भी व्यक्ति को गोली से मारने, उनके कानूनी अधिकारों को प्रतिबंधित या निरस्त करने, वहां के रहवासियों को उनकी सहमति के बिना विस्थापित करने और वन-क्षेत्रों को कॉर्पोरेट कंपनियों को देने का अधिकार देते हैं. स्पष्ट हैं कि ये प्रस्तावित संशोधन वन अधिकारियों को सेना और सैनिकों को प्राप्त विशेषाधिकारों से भी ज्यादा अधिकार देते हैं.
◆ यह सब इसलिए कि जल, जंगल, जमीन और खनिज जैसे प्राकृतिक साधनों की लूट को सुगम बनाया जा सके और इसके खिलाफ उठने वाली किसी भी आवाज़ को तानाशाहीपूर्ण ढंग से बर्बरतापूर्वक कुचला जा सके. यदि ऐसा होता है, तो यह आदिवासियों के साथ दुबारा ‘ऐतिहासिक अन्याय’ होगा. यह वन-क्षेत्रों में और वहां के रहवासियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा नहीं, तो और क्या है?
◆ युद्ध की घोषणा उन्होंने की है, इसे अंजाम तक हमें पहुंचाना है. आईये, अपने संघर्षों को और तेज़ करें.
Just weeks after facing massive protests, the BJP government at the Centre sent all States a proposal for a sweeping set of amendments to the Indian Forest Act. These amendments would give forest officials the power to shoot people without any liability (with the same legal protection as soldiers in disturbed areas under the Armed Forces (Special Powers) Act); allow forest officials to restrict or cancel legal rights and to relocate people against their will; presume that people they accuse of crimes are guilty if certain materials are claimed to be found on them (a provision similar to anti-terror laws); to hand over forests to private companies for afforestation, and to grab other forests in the name of “carbon sequestration”; and on and on.
If passed, these amendments will make forest officials de facto dictators, with more powers than any other government official (more powers, in fact, than those that are given to soldiers, who are at least legally required to hand over anyone they arrest to the normal police).
This is nothing short of a declaration of war in forest areas. Who then is the enemy?
Is it the country’s tribals and forest dwellers? Consider what some of the amendments say:
Forest officials can use firearms to “secure forest produce” or for even more frivolous reasons; and if their firing is even “purported” to be done under the law, they cannot be prosecuted; this is the same provision as in the Armed Forces (Special Powers) Act (proposed new section 66(2))
The legal rights of tribals and forest dwellers can simply be taken away by paying arbitrary cash payments and people can be forced to relocate (22A(2))
Forest officials can inflict British-style collective punishment on all rights holders if they feel “fires are being caused willfully” (26(3))
Forest officials can simply deny all rights – if they feel enough forest is “left over” – by declaring any area a “conservation reserve” (30(b))
If one ‘participates’ in any of the sham participatory schemes under the Forest Department, one cannot claim legal rights (29(3))
The amendments also provide for “production” forests (34C), for ending shifting cultivation entirely (despite it being both more ecologically friendly and socially equitable), and so on.
The clear goal of these amendments is to turn India’s forests – almost a quarter of the country’s land area – into a police state where the interests of forest bureaucrats and private companies will reign supreme. As the Forest Rights Act itself says, these areas were seized by colonial and post-independence governments in a “historical injustice” against forest dwellers. Now this government wants to double down on that injustice. This is a wholesale attack on the rights of India’s twenty crore forest dwellers.
But just as the backdoor attempt to get the Forest Rights Act weakened in court failed, this attempt too will fail. Protests are continuing and will intensify. The struggle goes on.
आज हमारे राष्ट्र में भाजपा सरकार द्वारा जिस अराजकता को फैलाया जा रहा है और हमारे अधिकारो का हनन कर रही है उसे कभी माफ नही किया जा सकता है उनको यह भी पता होना चाहिए कि मानव समुदाय को संयोजने के लिए हमें कुदरती अधिकार प्राप्त है उसके साथ छेड़छाड़ करने जा रहा है लोकसभा चुनाव 2019 के मद्देनजर धारा-107 लगाकर गैर न्यायिक अधिकार क्षेत्र के लोगों को प्रताड़ित करने का प्रयास किया है जिस क्षेत्र में सरकार का कोई अस्तित्व हो ही नही सकता है वैसे क्षेत्र में आपना उल्लू सीधा कार्रवाई कर रहा है जो हमारे गैर न्यायिक (समाजिक पराम्परा) के साथ अन्याय है हम कोल्हान गवरमेंट ईस्टेट से तालुक रखते हैं और हमारा जीविकापर्जन उस ईस्टेट की नीति के साथ समाहित है जो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार बनता है। झारखण्ड सरकार उसके साथ काफी अन्याय करने जा रहा है जिसे कभी माफ नही किया जा सकता है उससे अग्रह यही है कि वे हमारे पृष्टभूमि पर अशान्ति फैलाने का कार्य न करे हमारे लोगों को न्यायिक क्षेत्र की उपलब्धी से प्रताड़ित करने का प्रयास नही करे।
राष्ट्र में आसन लोकसभा चुनाव 2019 के मद्देनजर हमारे लोगों पर धारा-107 लगाकर दण्डाधिकारी के न्यायलय में बांध पत्र पर जुर्म लगाकर
आशान्ति फैलाने का प्रयास किया जा रहा है न्यायिक पदाधिकारी को गैर न्यायिक क्षेत्र में आपना लगाम लगाने का कोई हक नही बनता है स्वत: वैसे लोगों पर लिए गए दण्ड को वापस लिया जाए औरचुनाव आयोग द्वारा लिये गए चुनाव पद्धति को गैर न्यायिक क्षेत्र पर लागू नही किया जा सकता है।
हम कोल्हान गर्वमेंट ईस्टेट के अन्तर्गत शासित होते हैं, हमारा गैर न्यायिक क्षेत्र का अलग उपलब्धी है। जो न्यायिक क्षेत्र का उपलब्धी से कफी भिन्न है। जहाँ कोई भी नीति निर्देश तत्व, आदेश गैर न्यायिक क्षेत्र की उपलब्धी से जारी होगा।
दीपक सिंकु
वरिष्ट कार्यकर्त्ता गैर न्यायिक क्षेत्र सह कोल्हान गर्वमेंट ईस्टेट
थाना न० 542, ईस्टेट न० 597 ।