क्या छत्तीसगढ़ नकली कीटनाशकों के व्यापार का अड्डा बन गया है
यह सवाल इसलिए कि :
अभी कुछ दिनों पहले ही दुर्ग में दुर्गेश निषाद नामक एक किसान ने आत्महत्या कर ली। उसने अपने पत्र ने इसके लिए उस कीटनाशक को जिम्मेदार ठहराया था, जिसके छिड़काव के बाद उसकी फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई। किसान यह सदमा नहीं सह पाया। सरकार ने पीड़ित परिवार को मुआवजा देने की घोषणा तो की है, लेकिन इस नकली कीटनाशक कंपनी और उसके विक्रेता के खिलाफ किसी कार्यवाही का समाचार नहीं मिला है।
और अब बेमेतरा से खबर आई है। विकासखंड नवागढ़ के ग्राम खैरझिठी में प्रताप भानु वर्मा ने अपने खेत में #तेजाब नामक कीटनाशक का उपयोग किया है। उसकी 7 एकड़ धान की फसल जलकर खराब हो गई। फसल की अनुमानित कीमत 5 लाख रुपये थी। यह कीटनाशक उसने शारदा कृषि केंद्र, ग्राम तुलसी, दामाखेड़ा के दुकानदार परदेशी राम देवांगन से खरीदी थी। यह दुकानदार इतना चालाक है कि फसल जलने की शिकायत के बाद उसने किसान के घर जाकर #तेजाब के खाली डब्बों को वापस ले आया है। पीड़ित प्रताप भानु की शिकायत जिलाधीश की नजर पड़ने का इंतज़ार कर रही है।
इस प्रकरण के बारे में कृषि वैज्ञानिक Gajendra Chandrakar ने खबर दी है कि तेजाब कीटनाशक के डिब्बे में जिस फर्म का नाम और नम्बर लिखा है, उस व्यक्ति का कहना है कि न तो ये फर्म मेरा है, न डिब्बे में अंकित पता सही है। इस कीटनाशक के डिब्बे पर उसका नम्बर उसकी सहमति से अंकित नहीं है।
साफ है कि नकली कीटनाशक का धड़ल्ले से व्यापार चल रहा है। छानबीन करेंगे, तो नकली बीज और खाद भी धड़ल्ले से बिकते मिलेंगे। क्या यह व्यापार सरकार और उसके कृषि मंत्रालय के संरक्षण और प्रशासन की मिलीभगत के बिना हो सकता है?
सरकार सक्रिय है — लेकिन मरवाही के चुनाव जीतने की तिकड़मबाजी में। कृपया उसे दोष न दें। चुनाव निपटते ही किसानों से भी निपटेगी — अगर उसने ज्यादा चिल्ल-पों की तो!
संजय पराते जी के फेसबुक वॉल से