20 अगस्तः जन्मदिन पर विशेष
राजीव से पहली मुलाकात!
कनक तिवारी
यह नवंबर 1989 है। आज उसके सरकारी निवास में मानो पराजय पर्व मनाया जा रहा है। हार के बावजूद हजारों की भीड़ हो रही है। बड़ी मुश्किल से पहली बार मैं अपनी पार्टी के नायक से मिलने आया हूं। हजारों कार्यकर्ता दुख, आवेश और अचरज में ठगे से स्तब्ध भी हैं। सभी विचलित हैं। वह एक छोर से धीरे धीरे सरकता हुआ आ रहा है। ठीक मेरे सामने तक आ गया है। मैं सहम कर पीछे हट रहा हूं। वह फिर यहां भी आ गया है। अब मैं नर्वस हो उठता हूं। वह तो अपनी तस्वीर से ज्यादा सुन्दर है। मैं घबराहट या संकोच में एकदम आखिरी छोर पर पहुंच जाता हूं। आज नहीं मिलूं तो इससे फिर कभी मिल लूंगा! आज देख लिया, यही काफी है। वह फिर धीरे धीरे आगे बढ़ता मानो मेरी ओर देख रहा है। लगता है मुझे घूर रहा है! युद्ध में हारकर भी वह उम्मीदों का नायक है। पिले पड़ रहे लोग ढ़ाढ़स बंधा रहे हैं। हार के कारण गिना रहे हैं। गद्दारों और विरोधियों पर वाचाल होकर क्रोध भी कर रहे हैं। वह सुनता जाता है। अपना जुमला ‘देखेंगे‘ कसता भी जाता है। अब मेरे पास तो आ ही गया है। क्या कहूं?
मैं आदतन वाचाल में यकबयक अंग्रेजी में बतियाने लगता हूं। शायद मुझे आलिम फाजिल समझे! वह भी अंग्रेजी में बोलता है। मैं उसके कानों के पास जाकर फुसफुसाता हूं। ’मैं अपनी पार्टी के अध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री, शताब्दी पुरुष नेहरू के नाती तथा यशस्वी मां के बेटे से मिलने नहीं आया हूं।….वह कसैला, निर्विकार और उदासीन होकर पूछता है ’’तो?’’ साहस संजोकर, एक एक शब्द चबा चबाकर, सहमते हुए कहता हूं ’’आई हैव कम टू मीट माई हीरो, आई रिपीट सर, माई हीरो फीरोज़ गांधीज़ सन’’ (मैं अपने नायक फीरोज गांधी के बेटे से मिलने आया हूं)। पहली मुलाकात के इस चेहरे पर अपनापन उछल आता है। मानो मुंह में मिश्री घोलकर आंखों में आंखे डालकर पूछता है ’’डू यू लव पापा दैट मच?’’ (तुम मेरे पिता को इतना प्यार करते हो?’’) ‘‘ओनली नेक्स्ट टू यू’’(केवल आपके बाद)। मेरा सधा हुआ उत्तर है। उसकी आंखों की कोर मुझे नम हो गई लगीं। मुझे नही मालूम मैंने यह क्या, कैसे, क्यों पूछा?
पार्टी के चुनाव में हार के कारण जानने मुझे दूसरे दिन फिर आने को कहता है। वही भीड़ उसी तरह आखिरी छोर तक मेरे संकोच को ठेलती है। कई पराजित काबिल नेता कार्यकर्ताओं के साथ कलफ लगे कुर्तो और सूट में शोक पर्व के रचयिताओं की तरह खड़े हैं। आज मैं बचेली के अपने भाषण का कैसेट ले आया हूं टेपरिकार्डर सहित। माधवराव सिंधिया ने सुरक्षा अधिकारियों से उसे ले जाने देने कहा था। सोच रहा हूं क्या कल अपने पिता की याद इसे आई होगी? उसके मरते पिता ने उसके बारे में क्या सोचा होगा? उसकी मां और सरकार विरोधी पिता में क्यों नहीं पटती थी? उसके नाना का क्या कोई दोष था? यह विदेशी दुल्हन नहीं लाता तो किससे विवाह रचाता? यह माता पिता, नाना और भाई की मौतों को अपनी छाती पर कैसे झेल गया? आज मुझे उसने नाम से पुकार लिया!
’’मेरे बारे में क्या सोच रहो हो?’’ वह अपने मौन में मुझे सरासर शरारत से छेड़ता है। मैं संकोच में गड़ जाता। ’’हां’’ मेरा भी थूक गुटकता जैसा मौन उत्तर है। मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर दोस्ताना ढंग से दबा देता है। इसके हाथ तो कड़ियल हैं। कसरत तो करता ही होगा! आसमान में उड़ता उड़ता यह पायलट धरती पर आया है। तब कभी कभार उसके जहाज पर बैठकर मुसाफिरी भी की थी। मुझे एक कोने में ले जाकर बतियाता है। भाषण का कैसेट सुनकर उसकी आंखों की रोशनी इन्द्रधनुषी हो जाती है। ‘मेरे बारे में आपने कहा?‘ पूछता है। ‘जी‘ मेरा इतना ही उत्तर है।
तीसरे दिन भी विस्तार से बातें करने का मुझे बुलावा है। युवा प्रधानमंत्री के नाना ही इस लोकतंत्र के संस्थापक थे। उनका स्पर्श पाकर राजनीति सभ्य हो गई थी। पड़ोसी देश से दोस्ती महसूस करने के कारण उन्हें धोखा नहीं मिला। उनकी बेटी ने ज्यादा सुदृढ़ता से सरकार का संचालन किया। उन्हें भी पहरेदारों ने घर के अन्दर ही गोलियों से भून डाला। बहुत बाद में सुना कि किसी ज्योतिषी ने इसकी ज्यादा निर्मम हत्या की भविष्यवाणी की थी शायद। आज यह चेहरे पर अपने पिता के विद्रोह, एकाकीपन और गुमनामी को भी ढूंढ़ रहा है शायद। बेहद संयत, सहनशील और विनम्र होकर आज अपनी लोकप्रियता की वापसी ढूंढ़ रहा है।
मैं वही सब बोल रहा हूं जो यह पहले से जानता है। मैं इसकी साफगोई, शिष्टता और सपाटबयानी का कायल हो रहा हूं। उसकी मुस्कराहट निश्छल है। राजसी व्यक्तित्व में रहस्यों की पर्तें खुलने की बेचैन झिलमिलाहट मुझे दिखाई दे रही है। इसमें परिवार के पूर्वजों की यादों की पपड़ियां शायद झर रही हैं! मुझे लगता है पीठ के जख्म कुर्ता उठाकर मुझे दिखा रहा है। चोटों के कारण उसकी पीठ भयावह है। ‘‘पीठ पीछे राज्यतंत्र में यह क्या होता है? मैं बुदबुदाता हूं। ‘इनमें से कई हमलावर चेहरे तो इसके सामने खड़े हैं। राजनीति का यह रहस्य देखकर चीख पड़ता हूं। ‘क्या करेंगे आप इन चोटों का?‘ मैं पूछता हूं। ‘देखेंगे‘ उसका स्टाॅक जुमला मुंह से निकलकर धौल मारता मेरी पीठ पर थरथराने लगता है।
कनक तिवारी