20 साल से जमे जोगी परिवार को मरवाही से बाहर किये जाने की अंतर्कथा
2013 में मरवाही में रिकॉर्ड वोटों से जीतने वाले और 2018 में अकलतरा सीट से बसपा उम्मीदवार के तौर पर महज 1331 वोटों से हारने वाली ऋचा जोगी मरवाही उप चुनाव से बाहर हो गए हैं। दोनों का नामांकन पत्र जाति प्रमाण पत्र के आधार पर खारिज किया गया। अब मुकाबला कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी के बीच ही रह गया है। पार्टी के अंदरखाने से आ रही जानकारी के मुताबिक जोगी परिवार को मरवाही से नहीं लड़ने देने की रणनीति साढ़े तीन माह पहले ही बना ली गई थी।
कांग्रेस ने जोगी के जाति के मामले में कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ने वाले संत कुमार नेताम को जिम्मेदारी सौंपी। नेताम की ही शिकायतों के बाद 20 साल से मरवाही में जमा जोगी परिवार चुनाव प्रक्रिया से बाहर हो गया। राजनीतिक घटनाक्रमों से इस बात की अटकलें लगने लगी थी कि अमित व ऋचा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। पर कांग्रेस ने इस मामले में कोई गलती नहीं की। कांग्रेस ने फूंक-फूंककर कदम रखा। 29 मई को पूर्व मुख्यमंत्री व मरवाही विधायक अजीत जोगी के निधन के बाद से ही जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की ओर से अमित जोगी का चुनाव लड़ना लगभग तय था।
जब कांग्रेस और भाजपा ने अपने पत्ते भी नहीं खोले थे, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के विधायक दल के प्रमुख व लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह ने 4 जुलाई को अमित जोगी के प्रत्याशी होने की घोषणा कर दी। इधर कांग्रेस की ओर से अमित जोगी को मैदान से बाहर करने की तैयारी शुरू हो गई। संतकुमार नेताम ने सामान्य प्रशासन विभाग, आदिवासी विकास विभाग और उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति के सचिव एवं गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही के कलेक्टर शिकायत की कि छानबीन समिति ने स्व. अजीत जोगी का आदिवासी जाति का प्रमाण पत्र निरस्त किया है। इसके बाद उनके पुत्र अमित जोगी का प्रमाण पत्र स्वमेव निरस्त हो जाना चाहिए। उन्होंने आवेदन पर जल्दी कार्रवाई की मांग करते हुए कहा था कि मरवाही उप-चुनाव लड़ने के लिए कंवर जाति के प्रमाण पत्र का इस्तेमाल हो सकता है।
इधर कांग्रेस की रणनीति को अनचाहे ही भाजपा ने साथ दिया। 2013 में अमित से चुनाव हारने वाली भाजपा की समीरा पैकरा ने कलेक्टर से उनके जाति की जांच को लेकर आवेदन लगाया। इधर जब लगा कि अमित चुनाव नहीं लड़ पाएंगे तो ऋचा जोगी को मैदान में उतारने की तैयारी पार्टी ने शुरू की। तभी खुलासा हुआ कि ऋचा जोगी का गोड़ जनजाति का प्रमाण पत्र बना है। जाति प्रमाण पत्र को लेकर संतकुमार नेताम ने शिकायत दर्ज कराई। शिकायती पत्र में नेताम ने कहा कि ऋचा एश्वर्य जोगी को गोंड अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र 17 जुलाई 2020 को एसडीएम मुंगेली की तरफ से जारी किया गया है, जबकि वो गोंड जनजाति की नहीं है।
ऋचा जोगी को अपना पक्ष रखने भरपूर समय दिया गया। तब उनका जाति प्रमाण पत्र निलंबित नहीं किया गया। जबकि किया जा सकता था। जब वह नामांकन दाखिल करने वाली थी, तब 15 अक्टूबर को जिला स्तरीय जाति सत्यापन समिति ने उनका जाति प्रमाण पत्र निलंबित कर दिया। समिति ने दस्तावेजों को अग्रिम कार्रवाई के लिए राज्य शासन के पास भेज दिया। ऋचा ने नामांकन पत्र दाखिल किया लेकिन उसका रद्द होना पहले से तय हो गया। उधर उच्च स्तरीय प्रमाणीकरण छानबीन समिति रायपुर ने 15 अक्टूबर को ही अमित का जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया था। हालांकि इसका पता शनिवार को स्क्रूटिनी के दौरान लगा। इसे पूरी तरह गोपनीय रखा गया। जब जिला निर्वाचन अधिकारी के समक्ष आपत्तिकर्ता के अधिवक्ता ने बहस करना शुरू किया तो उनके पास अमित जोगी के जाति प्रमाण पत्र के निरस्त करने के आदेश की सत्यापित कॉपी थी जबकि यह कॉपी अमित के पास नहीं थी।
15 अक्टूबर को आदेश हुआ था लेकिन 17 अक्टूबर को इसे सामने लाया गया ताकि अमित को निर्वाचन आयोग या कोर्ट जाने का मौका न मिले। हुआ भी वहीं और अमित और ऋचा कुछ नहीं कर पाए और वे चुनाव प्रक्रिया से बाहर हो गए। हालांकि चर्चा है कि कहीं न कहीं अमित भी जानते थे कि वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। तभी तो उन्होंने ऋचा से नामांकन दाखिल कराया और साथ ही अन्य अभ्यर्थियों से भी पर्चा भरवाया। इधर इस मामले में अमित के प्रत्याशी होने की घोषणा करने वाले धर्मजीत सिंह के साथ ही रेणु जोगी को छोड़कर पार्टी के अन्य विधायक का कोई बयान नहीं आया है। इधर कांग्रेस ने इस चुनाव में असली आदिवासी बनाम नकली आदिवासी का मुद्दा शुरू से उठाए रखा।
तीन बातों से मिल गए थे एक दिन पहले ही संकेत
- सीएम ने कहा-अमित-ऋचा को उन्होंने बैठने के लिए कहा-जिला निर्वाचन कार्यालय में मुख्यमंत्री का रेणु व ऋचा जोगी से सामना हुआ। मीडिया के सवाल का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा- जब वे अपने प्रत्याशी का नामांकन दाखिल कराने अंदर पहुंचे तो अमित और ऋचा उन्हें देखकर खड़े हो रहे थे, तब मैंने उन्हें बैठा दिया एवं रेणु भाभी को प्रणाम किया। मुख्यमंत्री की यह बात सरल लगती है लेकिन इसके राजनीतिक मायने लगाए गए। लोग इसका अर्थ समझ गए। हालांकि अमित ने सीएम से सवाल पूछा-आदरणीय क्या अकेले ही चुनाव लड़ना चाहते हैं ?
- जिसके पास आदिवासी होने का प्रमाण पत्र वह लड़ेगा चुनाव-
शुक्रवार को जब मुख्यमंत्री मंत्रियों के साथ कांग्रेस प्रत्याशी डॉ.केके ध्रुव का नामांकन दाखिल कराने पहुंचे । उन्होंने अमित जोगी के चुनाव लड़ने नहीं देने के आरोप का पलटवार करते हुए मीडिया से कहा कि सरकार किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोक रही है। जिसके पास आदिवासी होने का प्रमाण पत्र होगा वह चुनाव लड़ेगा।
3.इसलिए कहा-17 अक्टूबर को मरवाही में सब सामान्य हो जाएगा-
वहीं एक वाकया और चर्चा में रहा कि जब बड़े नेताओं के बीच चर्चा हुई कि बिहार चुनाव में किसे-किसे भेजा जाएगा, यहां मरवाही में भी चुनाव है। तब एक प्रमुख नेता ने कहा कि 17 अक्टूबर के बाद मरवाही में सब कुछ सामान्य हो जाएगा। इसके राजनीतिक मायने तो यहीं है कि जो होने वाला था, उसका पता पहले से ही था।
-सुनील शर्मा