कृषि विरोधी विधेयकों के खिलाफ किसानों ने किया प्रदर्शन

केन्द्र की भाजपा सरकार द्वारा “एक देश एक बाजार” की दिवा स्वप्न दिखाने वाली जुमले बाजी के खिलाफ 25 सितम्बर को भारत बंद के आह्वान के साथ देश के किसान सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहें हैं। छत्तीसगढ़ में भी राज्य के विभिन्न हिस्सों में अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के नेतृत्व में गांव से शहरों को जोड़ने वाले सड़कों में तथा गलियों में उतर कर लॉक डाउन के नियमों का पालन करते हुए बेलटुकरी, दुत्कइय्या, परसदा, जिडार, बुढार, कोनारी, कौंदकेरा, परतेवा, देवरी, जेन्जरा, श्यामनगर, बरोडा, कुम्हि, पुरैना, सिर्रीकला, रोबा, खुटेरी, आदि गांवों में अपना विरोध प्रदर्शन किया है।
अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष मदन लाल साहू और राज्य सचिव तेजराम विद्रोही के नेतृत्व में तहसीलदार राजिम को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौप कहा है कि कृषि संबंधित विधेयकों को लोकसभा में बिना सवाल जवाब के तथा राज्यसभा में बिना मत विभाजन के पारित कर दिया गया है, इसलिए इस पर हस्ताक्षर न किया जाए। जून 2020 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कोरोना संकट का अपने उद्योगपति साथियों के हित मे इस्तेमाल करते हुए कारपोरेट परस्त,किसान व कृषि विरोधी तीन अध्यादेशों कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार ( संवर्धन और सुविधा), मूल्य आश्वासन एवं कृषि समझौता और आवश्यक वस्तु अधिनियम( संशोधन) अध्यादेश 2020 लेकर आया था, जिसे वर्तमान मानसून सत्र में भाजपा ने अपने पूर्ण बहुमत का नाजायज फायदा उठाते हुए लोकसभा में पारित करा लिया तथा राज्यसभा में विपक्षी दलों के विरोध को दबाते हुए बिना मत विभाजन के गैर लोकतांत्रिक तरीके से विधेयक के रूप में पारित करा लिया है। जब देश भर में किसानों एवं विपक्षी दलों द्वारा किसानों के खिलाफ पारित किए गए काला कानून का पुरजोर विरोध हो रहा है तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को झूठ बोलना पड़ रहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था समाप्त नहीं होने वाली है। जो मोदी सरकार की सबसे बड़ी असफलता है कि किसानों को सरकारी व्यवस्था के तहत उनके उपज का वास्तविक समर्थन कीमत नहीं दिला पाने के कारण कृषि और किसानों को कारपोरेट के हाथों में सौपने का रास्ता तैयार कर लिया है जो किसानों व कृषि के ऊपर सबसे बड़ी संकट पैदा करेगी।
ज्ञापन में आगे और कहा है कि मोदी सरकार झूठ पर झूठ बोल रही है और उस झूठ का भाजपा के अन्य नेताओं द्वारा एक झूठ को सौ बार कहो सच साबित हो जाएगा की तर्ज पर बचाओ किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि किसान अपने उपज को अपने मन माफिक दाम पर कहीं भी बेच सकता है यह सुनने में अच्छा लगता है लेकिन वास्तविकता ऐसा कुछ नहीं है, क्योंकि किसानों को अपने उपज कहीं पर भी बेचने से पहले भी कही रोक नहीं है। लेकिन विधेयक में यह प्रावधान क्यों नहीं जोड़ा गया कि कोई भी व्यापारी कृषि उपज को तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदेगा और यदि कम मूल्य पर खरीदी करता है तो उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही किया जा सकता है। इसका जवाब मोदी जी के पास नहीं है और उल्टे कानूनी रूप से व्यापारियों को किसानों का आर्थिक शोषण करने अधिकृत किया जा रहा है। यह बिल नाम से तो किसान हितैषी प्रतीत होता है। परंतु यह व्यापारियों, कारपोरेट घरानों को अपनी इच्छानुसार दामों में उपज खरीदी करने, असीमित मॉल जमा करने, आवश्यक वस्तुओं की बनावटी कमी निर्मित करने की कानूनी रूप से खुली छूट देता है।

कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 में किसानों के हित में ऐसे प्रावधान है जिसका ईमानदारी के साथ पालन होने से लाये गए अध्यादेशों की आवश्यकता ही नहीं है। मोदी जी ने ही कहा था कि सभी नागरिकों को 15-15 लाख रुपये देंगे, प्रतिवर्ष 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देंगे, नोटबन्दी से कालाधन वापस आएगा, भ्रस्टाचार समाप्त होगी, महंगाई कम होगी, 18 दिन में महाभारत जीते थे अब 21 दिन में कोरोना को हरा देंगे आदि आदि जो केवल एक जुमला ही साबित हुआ अब किसान इस जुमलेबाजी को समझकर सड़क में उतर कर विरोध कर रहे हैं तो या इसे विपक्षी पार्टियों का राजनीतिक साजिश बता रहा है या फिर किसानों को भ्रमित बताकर उनके मुख्य चिंताओं से मुंह फेर रहा है।
अलग अलग गांवों में हुए प्रदर्शन में मदन लाल साहू, तेजराम विद्रोही, भोजलाल नेताम, मनोज कुमार, उत्तम कुमार, कुबेर राम, गेंदलाल देवांगन, श्रीमती संतोषी, श्रीमती संगीता, धनेश्वरी, राजा सोनी, बसंत, राजकुमार, खेलावन, लखन लाल, राजा सोनी, डोमन, श्रीमती जनिया बाई, अमरीका बाई, रूखमणी, अनुसुइया, केवरा बाई, मीना बाई, परमेश्वर, पदम नेताम, युवराज नेताम, गौकरण, मोती राम साहू, दिनेश कुमार, चुम्मन लाल, गोपाल मंडल, सोमनाथ साहू, कोमल साहू, कुलेश, भैय्या लाल, कार्तिक राम, योगेन्द्र, फलेश्वर यादव, आदि सम्मिलित हुए।

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