बस्तर की तरह कश्मीर में भी जारी है निर्दोषों की हत्याएं
नीचे दो तस्वीरें हैं, पहली तीन बच्चों की जिनके नाम हैं
इम्तियाज अहमद, अबरार अहमद और मोहम्मद इबरार। दूसरी तस्वीर में इन तीनों बच्चों की मां हैं। मां के नाम क्या बताना, ऐसी ही माँ हैं जैसी मेरी अपनी है, जैसी आपकी माँ होंगी। 18 जुलाई, 2020 के दिन कश्मीर के अम्सीपोरा गांव में एक आर्मी ऑपरेशन के दौरान इन तीनों बच्चों की हत्या कर दी गई। सुरक्षा बलों ने दावा किया कि तीनों आतंकवादी थे, जिनसे मुठभेड़ के बाद हथियार और गोला बारूद बरामद किया गया है। लेकिन इन बच्चों के घर वाले कहते रहे कि वे तीनों मजदूर थे जो शोपियां जिले में काम करने आए थे, आंतकवाद से उनका कोई लेना-देना नहीं था। तब किसी ने उनकी नहीं सुनी। टीवी पर खूब दिखाया गया कि 3 आतंकी मारे गए। घर वाले रोते रहे, इन बच्चों के शव भी घर वालों को नसीब नहीं हुए। लेकिन अब जांच में पाया गया कि ये तीनों बच्चे निर्दोष थे। जांच में पाया गया कि जिस कानून आफ्सपा के तहत कार्यवाई की गई थी उसका बेजा इस्तेमाल किया गया है, उसका दुरुपयोग किया गया है। इन तीन बच्चों का आतंकवाद से कोई सम्बंध नहीं है, न ही इनके पास से कोई बंदूक या बारूद बरामद हुआ है। सेना कानून के तहत दोषी सैनिकों पर कार्यवाई होगी।
लेकिन क्या कार्यवाई होगी?
कार्यवाई घटनाओं पर होती है, प्रक्रियाओं पर नहीं। जम्मू कश्मीर में जो कुछ आज घट रहा है वह कोई एक घटना नहीं है, बल्कि वह एक लंबी प्रक्रिया है, वह कोई एक मौत नहीं है। सो इसकी जांच होगी, इसका कोई एक दोषी भी नहीं है। अगर दोषियों को सजा मिलेगी तो कश्मीर से लेकर दिल्ली तक में अपराधी मिलेंगे। जिन्होंने कश्मीर को अपनी घटिया पॉलिटिक्स का गिनी पिग बना दिया है जिसको नोच नोचकर वे अपने राजनीतिक एक्सपेरिमेंट करते हैं।
लेकिन गम्भीर सवाल हम सब से है, कश्मीरियों की जान इतनी सस्ती क्यों हैं? क्या आप उन्हें इंसान तक नहीं मानते?
दोषियों पर कार्यवाई क्या होगी मालूम नहीं। लेकिन क्या किसी भी झूठी-सच्ची कार्यवाई से इन तीनों माओं के बच्चे लौट आएंगे? क्या बीत रही होगी इनकी बहनों पर?,
क्या सोचते होंगे इनके पिता? कितना प्यारा लगता होगा इन्हें हिंदुस्तान? क्या इन बच्चों के खुद के कोई सपने नहीं रहे होंगे? इबरार की तो अभी अभी शादी हुई है, उसकी प्यारी सी बीबी है, दोनों का एक प्यारा सा छोटा सा बच्चा है, उसे हौंसला कौन बँधाए?
इबरार के परिवार ने तो इस देश की आर्मी की सेवा भी की है। उनके चाचा ने कारगिल युद्ध में इस देश की ओर से मोर्चा भी संभाला था। बदले में उन्हें क्या मिला? उनका बच्चा हमने छीन लिया! आखिर किस मूंह से हम कहते हैं हम कि कश्मीर हमारा है? कश्मीर हमारा है तो कश्मीरी हमारे क्यों नहीं हैं? अगर कश्मीरी हमारे नहीं हैं तो कश्मीर पर हमारा कोई हक नहीं है।
इबरार के पिता कह रहे थे “हमें अपने बच्चे के जाने का दर्द है, दर्द इतना है कि कलेजा फटता है, पर जब ये ख्याल आता है कि हमारे देश की ही आर्मी ने हमारे बच्चे की जान ली है तब ये दर्द और अधिक बढ़ जाता है। हमारे परिवार ने पीढ़ियों दर पीढ़ी देश की आर्मी की सेवा की है।”
किसी की हत्या कर देना सामान्य गलती नहीं है, इन निर्दोष बच्चों पर तो हथियार भी नहीं थे, फिर इन्हें मार देने की इतनी जल्दी क्या थी? क्यों आखिर, निर्दोष बच्चों पर बंदूक चलाने से पहले हाथ नहीं कांपे? क्या सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, इस देश की कोई संस्था इन बच्चों को इनकी माओं के पास वापस ला सकती है? अगर नहीं तो शर्म से मर जाना चाहिए हमको।
भगवान इन मासूम बच्चों के परिवारों को धैर्य बख्शे!
श्याम मीरा सिंह