विश्व आदिवासी दिवस पर आज की कविता
जंगल के योद्धा
हम तो जंगल के योद्धा हैं साहेब
हमें डराना नहीं
जेल की सलाखों से
जब से जन्म लिए हैं
तब से हमारा संघर्ष
हमारी लड़ाई शुरू हुई है
अपनी अस्तित्व
अपने आप को बचाने के लिए
जैसे हमारे पुरखे
वर्षों से करते आ रहे हैं।
हम तो जंगल के वीर हैं साहेब
हमें धमकाना नहीं
बंदूक की गोलियों से
बीहड़ों में पैदा हुए
शेर की मांद में पले बढ़े
झरने का पानी पी कर
कंद-मूल खा कर बड़े हुए
हमें मत सीखना
जंगल की गणित
यहां का भूगोल और इतिहास।
हम तो जंगल के दावेदार हैं साहेब
हमें चुनौती देना नहीं
सत्ता की ताकतों से
जंगल हमारी जीविका
जंगल हमारी जीवन धारा
जंगल हमारी युग विरासत
इसे हम हरगिज़ नहीं छोड़ेंगे
ना रुकेंगे ना झुकेंगे
हम जंगल नहीं छोड़ेंगे
हम अपना गांव नहीं छोड़ेंगे।
हम तो जंगल के योद्धा है साहेब
हम लड़ाई लड़ेंगे
एक और हुल करेंगे
जान देने से पीछे नहीं हटेंगे
हमें ख़ून ख़राबा
रक्तपात पसंद नहीं
पर याद रखना
जंगल से बेदखल हमें मंजूर नहीं
हम तैयार हैं
एक और लड़ाई लड़ने के लिए
अपनी अस्मिता बचाने के लिए
जल-जंगल और जमीन के लिए।
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बेसरा ‘बेपारी’