भंगाराम माई के अदालत में होती है देवताओं की सुनवाई….!
कुछ साल पहले की अपनी स्मृतियों के उन सुनहरे पन्नों को पलटता हूं तो अपने आप को एक बेहद ही भीड़ भरे माहौल में बस्तर के सारे देवताओं के दर्शन करते हुए पाता हूं। देवी का दरबार लगा हुआ है और देवता देवी के दरबार में अपनी हाजिरी लगाने के लिये उपस्थित है। फरियादी, देवी के पास देवताओं की शिकायत कर रहे है और देवी निष्पक्ष न्याय करते हुए देवताओं को भी सजा के जंजीरों में कैद करने का आदेश देती है।
यह बेहद ही आश्चर्य की बात है कि न्यायाधीश के रूप में देवी देवताओं को कैद करने की सजा देती है और उसका अक्षरशः पालन भी होता है। बस्तर के केशकाल में स्थित भंगाराम माई के जातरे में मुझे भी देवी दर्शन का लाभ प्राप्त हुआ था। अपनी अनूठी आदिम मान्यताओं को समेटे हुए बस्तर की दुनिया में ऐसों अनेकों अबूझ पहेलियां जिन्हे आज तक नहीं बुझा जा सका है।
ऐसी ही एक अनूठी मान्यता, और अटूट विश्वास ग्रामीणों के दिलों में है कि भंगाराम माई के द्वार में आये हर फरियादी को न्याय मिलता है। भले ही दोषी देवता ही क्यों ना हो उन्हे भी बराबर सजा मिलती है। केशकाल को बस्तर का प्रवेशद्वार कहा जाता है। कोंडागांव जिले में स्थित केशकाल अपने मनभावन दृश्यों एवं केशकाल घाट के लिये विश्वप्रसिद्ध है। इसी केशकाल के पास ही भंगाराम माई की देवगुड़ी अवस्थित है।
प्रतिवर्ष भादो माह की शुक्ल प्रतिपदा को भंगाराम माई के देवगुड़ी में जातरा आयोजित होता है। इस जातरे में सैकड़ो ग्रामीण अपने देवी देवताओं को लेकर माई के अदालत में उपस्थित होते है। भंगाराम माई की देवगुड़ी सैकड़ो वर्ष प्राचीन है। यहां प्रतिवर्ष ग्रामीण अपनी ग्राम में किसी भी प्रकार अपशकुन प्राकृतिक आपदा या किसी अनहोनी की समस्या को लेकर आते है।
इन समस्याओं के पीछे मान्यता होती है कि अमूक देवता के कारण यह समस्या या विपत्ति आयी है जिसमें ग्रामीण फरियादी एवं आरोपित देवता भंगाराम माई के न्यायालय में उपस्थित होते है। भंगाराम माई न्यायाधीश के रूप में सिरहा गायता के माध्यम से दोनों पक्षों के आरोप एवं दलीलों को सुनती है उसके बाद दोषी देवता को बर्खास्तगी या उनकी पूजा बंद करने की सजा सुनाई जाती है। कभी कभी देवताओं को कैद करने की सजा भी दी जाती है । ऐसे देवताओं के मंदिर परिसर में बने कारागार में छोड़ दिया जाता है। और वहीं जो देवता निर्दोष होते है उन्हे ससम्मान दोष मुक्त किया जाता है।
जब मैं 2018 में भंगाराम माई के इसी जातरे मे उपस्थित था तब माई के अदालत में दो कुंअरपाट आंगा के असली नकली होने का विवाद लाया गया था। मांझी मुखियों की सभा में विचार विमर्श के उपरांत वास्तविक कुंअरपाट आंगा की पहचान की गई और असत्य कुंअरपाट को मंदिर के पास स्थित कारागार में लाया गया जहां पर सैकड़ो अमान्य किये गये देवताओं के आंगा और उनके श्रृंगार बिखरे पड़े है। वहां पर असत्य कुंअरपाट को लाया गया और कुल्हाड़ी से आंगा को काटकर उसकी मान्यता सदा के लिये रदद कर दी गई।
देवी देवताओं की दी जाने वाली सजा, उसकी रिहाई से जुड़ी सारी कार्यवाही रजिस्टर में सुरक्षित रखी जाती है। यहां आज भी कई देवता कैद में रखे हुए है। मावली भूमिहार गढ़ की माता 25 साल तक कैद में रही थी। धमतरी के राजपुर ग्राम के देव आज भी कैद में है। कई देवताओं की मान्यता रदद भी की गई है।
ग्राम में किसी व्यक्ति विशेष पर आई आपदा को सिरहा बैगा के माध्यम से शांत कर उसके इच्छा पूर्ति की वस्तुयें जैसे झाड़ू सिल बटटा सोने चांदी के गहने या मुर्गे या बतख को टोकनी मे भरकर भंगाराम माई के कारागार में छोड़ दिया जाता है। दिन भर चलने वाले इस जात्रे में ग्रामीण अपने देवताओं को माई भंगाराम की परिक्रमा कराते है और तुरही की तुर तुर आवाज के साथ दिन भर अनुष्ठान चलते रहते है।
ओम सोनी