“वाजिब प्रश्न है कि यह कैसी पत्रकारिता है ?”- गिरीश जी “मुझे धूलि चन्दन, मुझे शूल अक्षत” – सुशील शर्मा
रायपुर । कांकेर के वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा के खिलाफ रायपुर पुलिस की एकतरफा कार्यवाही को लेकर पिछले 25 मई को ही वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार गिरीश पंकज ने “पत्रकारिता पर हमला, सरकार आगे आकर सम्पादक के साथ न्याय करें “शीर्षक से एक लेख लिखा था जिसे भूमकाल समाचार में ज्यों का त्यों प्रकाशित किया गया था । इसे आप लिंक में जाकर पढ़ सकते हैं ।
इसके दो दिन बाद ही उन्होंने अपने फेसबुक पर अपने पूर्व लेख के विपरीत लिखते हुए बताया कि पहले उन्होंने ने बस्तर बन्धु में प्रकाशित उस खबर को नही पढा था जिसके आधार पर उसके सम्पादक सुशील शर्मा पर कार्यवाही हुई थी । अब उन्होंने बताया कि खबर पढ़कर उन्हें लगा कि बस्तरबन्धु की भाषा आपत्ति जनक है , और उन्हें मानहानि के मुकदमे झेलने तैयार रहने चाहिए । चूंकि आदरणीय गिरीश जी का इस सम्बन्ध में पहला लेख यहां प्रकाशित हुआ अतः जब उसी लेख का खंडन उन्होंने सोशल मीडिया में किया तो यहां हम उनके द्वारा फेसबुक में लिखे पोस्ट को ज्यों का त्यों रख रहे हैं – व इस पर सुशील शर्मा जी का जवाब भी यही प्रस्तुत है ।
*महिला पर अश्लील टिप्पणी पत्रकारिता नहीं
पत्रकारिता पवित्र कर्म है। मैंने अपने जीवन की शुरुआत पत्रकारिता से ही की। फिर साहित्य की दुनिया में सक्रिय हुआ। आज भी दोनों विधाओं में सक्रिय रहने का प्रयास करता हूँ। पत्रकारिता करते हुए इस बात का ध्यान रखा कि खबर बनाते वक्त भाषा की मर्यादा बनी रहे। पिछले दिनों एक साप्ताहिक पत्र में एक वरिष्ठ महिला कलाकार की सरकारी नियुक्ति को लेकर ख़ब छपी। उसमें खबर के बहाने महिला पर ही कीचड़ उछाल दिया गया। उसे बेहद आपत्तिजनक शब्दों से संबोधित किया गया। उसके सम्पादक- पति को भी अमर्यादित शब्दों से सम्बोधित किया गया। इस खबर से आहत हो कर साप्ताहिक अखबार के सम्पादक के विरूध्द एफआईआर दर्ज कराई गई। अब हमारे कुछ मित्र इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बोल रहे हैं। दो दिन पहले मुझे खबर के बारे में पता नहीं था तो मैंने भी अखबार के संपादक के पक्ष में बयान दे दिया था । पर आज जब पूरी खबर पढ़ी तो मुझे अपने आप पर अफसोस हुआ कि मैंने किसका पक्ष ले लिया। अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नहीं किसी महिला और उसके पति पर अश्लील टिप्पणी कीजिए। स्त्रियों के मामले में लिखते वक्त एक तो उसका नाम प्रकाशित नहीं करना चाहिए । और अगर नाम दे रहे हैं, तो भाषा बेहद शालीन होनी चाहिए । खेद है कि उस सप्ताहिक ने भाषा की मर्यादा का उल्लंघन किया।साप्ताहिक के पक्ष में दिया गया बयान मैं वापस लेता हूँ। और महिला के विरुद्ध लिखे गए अपमानजनक शब्दो की कटु निंदा करता हूँ। (विस्तृत विचार दैनिक अखबार साथीसन्देश में पढ़ें) – गिरीश पंकज
उनके इस पोस्ट और साथी सन्देश में प्रकाशित लेख को लेकर बस्तर बन्धु के सम्पादक सुशील शर्मा ने भी अपने फेसबुक पेज पर जवाब पोस्ट किया है । आप सब तय कर सके कि क्या उचित है और क्या अनुचित इस आशय से सुशील शर्मा जी का पोस्ट भी हम ज्यों का त्यों प्रकाशित कर रहे हैं –
“मुझे धूलि चन्दन, मुझे शूल अक्षत”
कल तक आपको एक पत्रकार के विरुद्ध एफ. आई. आर. करने पर आपत्ति थी ,जो शायद किसी भी पत्रकार के लिए वाजिब है ,आज अचानक आपकी सहानुभूति भ्रष्टाचारियों, दलालों के साथ हो गई। ऐसा क्या हो गया कि सद्भावना- दर्पण के संपादक की सद्भावना एक ही रात में बदल गई, कौन आपको आकर दे गया, बस्तर बन्धु की हार्ड काॅपी, और नया पाठ पढ़ा गया। आपका दिमाग इतना गर्म कर गया कि आपने अपने ही पहले पोस्ट का खंडन-मन्डन करने के पहले मुझसे बात करने, मेरा पक्ष लेने की जरूरत नहीँ समझी, इस तेजी से रंग बदलने पर बेचारे गिरगिटों के भी शरमा जाने की परवाह नहीं की। यह बदलाव आश्चर्यजनक जरूर है पर आज के दौर में शायद सफल पत्रकारों की यही पहचान है।
मर्यादा का, शालीनता का जो भी पाठ आपने अपने ताजातरीन पोस्ट में मुझे पढ़ाया, सर आंखों पर कुबूल। सभी पत्रकारों की अपनी-अपनी अलग शैली होती है, अपना एक तेवर होता है। मेरे सारे के सारे लेख मुद्दों के आधार पर इसी खरी-खरी शैली में अच्छे अच्छे तोपचन्दों के खिलाफ लिखे व छापे गये हैं, जिन पर मानहानि के अनेक मुकदमों का हंसते गाते सामना किया है, सारे के सारे मामले मैंने ही जीते, क्योंकि मामले जो भी उठाये गये, सबके सब इस अनुराधा दुबे वाले मामले की ही तरह कांक्रीट थे, हमारा लिखा हमारे अनुसार बड़े अखबार नहीं छाप पाते थे ।
सब अखबारों का संवाददाता बनकर देख लिया,एक- एक समाचार के लिए आये दिन संपादकों से झगड़े से थकहार कर मैंने बस्तर बन्धु समाचार-पत्र का मालिक बनकर निकालने का निर्णय किया, यह शानदार रजत जयंती वर्ष है, पहली वर्षगांठ पर आप भी समारोह में पधारे थे, तब आपने मुझे भाषा शैली को लेकर कोई पाठ नहीं पढ़ाया था, आपके घर के पते पर बरसों बस्तर बन्धु की सौजन्य प्रति डाक द्वारा भेजी जाती थी। सब के सब ऐसी ही साफ- साफ ,खरी-खरी भाषा शैली में प्रकाशित, जिन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते आपके हस्तलिखित पत्र भी जो आपने भेजे हैं, सब में सराहना ही है, भाषा शैली सुधारने का उनमें भी कोई उपदेश नहीं है, कहेंगे तो तो दिखा भी दूंगा, बस जरा ढूंढना पड़ेगा। एक और बात साफ कर दूं गिरीश पंकज जी, मैं अखबार के शीर्षक का ही मालिक हूं, सरकार से टोकन मनी पर भूखंड, छापाखाना जैसे किसी एसेट्स का नहीं। खैर छोडिए- – – – ।
पत्रकारिता के मूल तथ्यों के अनुरूप उठाये गये मुद्दों का भी विश्लेषण और तथ्यों की बिना पर जो सुलगते सवाल दागे गए हैं, इन पर भी आप कुछ कह देते तो और अच्छा लगता ।
आपने लिख दिया है कि आपने पूरा समाचार पत्र पढ़ा तो उसमें सिर्फ शालीनता और मर्यादा पर ही आपका ध्यान गया जो समाचार का शायद एक-दो परसेंट भी नहीं है, समाचार के मूल विषय के जो 98 – 99 परसेंट अंश है कि किस तरह षडयंत्र रचते हुए, चार सौ बीसी करते हुए, एक व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए कैबिनेट जैसी सर्वोच्च संस्था का कितनी होशियारी से भौंरा घुमा कर दुरुपयोग किया गया कि भौरा चलाने के एक्सपर्ट भूपेश बघेल जी भी समझ नहीं पाये और मुख्य सचिव से लेकर मुख्य मंत्री व तमाम मेम्बरान ऐसा निर्णय ले बैठे जो न्यायालय में एक पी आई एल में ही उड़ जायेगा।
ना तो उन अधिकारियों के लिए, ना उस कैबिनेट के लिए, और ना ही उसका लाभ हासिल करने वाले उस पत्रकार और देश विदेश की सैर कर चुकी आपके शब्दों में सफल कलाकारा और बस्तर बन्धु के शब्दों में 420 महिला के लिए आपके मन में कोई प्रश्न कैसे नहीं आया ? और यह स्वाभविक लगता है क्योंकि आपने स्वयं स्वीकार किया कि आप उन्हें 40 साल से जानते हैं।
जो महिला एफ.आई.आर. में अपनी उम्र 35 साल लिखी हैं उन्हें आप 40 साल से यानि उनके जन्म के पांच साल पहले से जानते हैं, यह भी एक ग्रेट शो या विचित्र किस्म की विडंबना ही है। आपने बाई शब्द को गलत माना है, यह बात मुझे दुखी करती है, क्योंकि हमारे देश की बहुत सारी महान महिलाएं हैं, जिनके नाम में अनिवार्य रूप से बाई शब्द जुड़ा हुआ है, जैसे रानी लक्ष्मीबाई, रानी अवंती बाई, शिवाजी की माता जीजाबाई तथा सौतेली माता तुको बाई,,, इंदौर की महारानी राजमाता अहिल्याबाई आपके रायपुर की ही क्रांतिकारी महिला राधाबाई, अब बताइए बाई शब्द कहां गलत है? गुजरात राजस्थान मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ अधिकांश भागों में लड़कियों के नाम के आगे बाई लगाया ही जाता है या आप छत्तीसगढ़िया होने के कारण जानते ही होंगे अतः मेरे द्वारा किसी को बाई जी कहने या लिखने से आपको गंभीर आपत्ति भला क्यों होनी चाहिए ?
आपने यह भी कह दिया कि पत्रकारिता के ऐसे मानदंडों को आप निर्धारित करते हैं जिसमें यदि आप किसी को 40 साल से जानते हैं तो उनके द्वारा किए जा रहे कुकृत्य चाहे वह कानून के उल्लंघन की बात हो या सरकारी मशीनरी और प्रभाव के दुरुपयोग की बात हो आपके लिए मान्य व क्षम्य है। यह कैसी पत्रकारिता है गिरीश जी ,जिसमें आपने पहले तो मुझे शालीनता और मर्यादा के ऊपर काफी अच्छा पाठ पढ़ाया। आपकी वरिष्ठता के, आपके अनुभवों के लंबे- चौड़े व्याख्यान के साथ आपकी महानता स्वीकार्य है, और आपका पढ़ाया हुआ पाठ भी भविष्य में याद रखूंगा, पर निराशा तब होती है, जब मूल मुद्दों पर आपने एक भी टिप्पणी नहीं की, पूरा का पूरा लेख सिर्फ भ्रष्टाचारियों को बचाने में व्यर्थ कर दिया ।
आपके अगले लेख में मुझे उम्मीद है कि आप जरा उन मुद्दों को भी ध्यान में रखेंगे और जिनको आप 40 साल से जानते हैं, उनके बारे में भी, उनके द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार को, पत्रकारिता के मापदंडों के अनुसार नजरअंदाज नहीं करेंगे और अपनी विद्वतापूर्ण टिप्पणी भी जरूर करेंगे। मुझे व देशवासियों को प्रतीक्षा रहेगी। आपसे एक विनम्र अनुरोध यह भी रहेगा कि आप उस समाचार के मूल मुद्दे पर जरूर अपना ध्यान केन्द्रित रखते हुए विश्लेषण कर मुझे और ज्ञान देंगे ताकि मैं अपनी लेखनी में सुधार कर सकूं।
वैसे अभी तो यही लग रहा है कि आपकी संपूर्ण शक्ति तथा विद्वता भ्रष्टाचारियों की वकालत करने में ही व्यर्थ हो रही है। यदि कुछ गलत कहा हो तो क्षमा करेंगे और पहले की तरह प्रेम भाव बनाए रखेंगे।