पत्रकारिता पर हमला !! सरकार आगे आकर सम्पादक के साथ न्याय करे
गिरीश पंकज की कलम से
इसी महीने की तीन तारीख को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। और इसी महीने एक पत्रकार के विरुद्ध कार्रवाई का समाचार भी आ गया ? यह कितनी बड़ी विसंगति है । अभी दो दिन पहले भूमकाल पोर्टल में मैंने यह खबर पढ़ी, जो इस तरह है, ”छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक कमल शुक्ला ने बस्तर बंधु के संपादक कांकेर के वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा के खिलाफ छत्तीसगढ़ सरकार के एक अधिकारी की रिपोर्ट पर बिना जांच-पड़ताल किए और पत्रकार को सफाई का मौका दिए बिना एक तरफा रिपोर्ट दर्ज करने को लेकर कड़ी आपत्ति जताते हुए निंदा की है साथ ही इस मामले को लेकर प्रदेश भर के पत्रकारों से उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार के लगातार पत्रकार विरोधी रवैये के खिलाफ आंदोलन तेज करने की अपील की है। ज्ञात हो कि सुशील शर्मा द्वारा बस्तर बंधु में तथ्य के साथ समाचार प्रकाशित किया गया था कि कैसे छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नियमों को तिलांजलि देकर जनता के पैसे को बर्बाद करने के नियत से पर्यटन मंडल में अलग से पद से सृजित कर उसी विभाग से बर्खास्त हो चुके एक महिला को जनसंपर्क अधिकारी के रूप में नियुक्त कर दिया गया। इस समाचार को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किसी कार्यवाही करने के बजाय उल्टे पत्रकार पर कार्यवाही करने की नियत से अवैध रूप से लाभान्वित उक्त महिला द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराकर एकतरफा कार्यवाही करा दिया गया। इस मामले को लेकर पत्रकार सुरक्षा कानून आंदोलन के मुखिया रहे वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला ने प्रदेश के पत्रकारों से एक अपील जारी किया है।”
इस खबर को पढ़कर मुझे तकलीफ हुई। तकलीफ इसलिए कि मैं भी लंबे समय तक पत्रकारिता से जुड़ा रहा और आज भी प्रकारांतर से पत्रकारिता ही कर रहा हूं । अपनी एक साहित्य पत्रिका सद्भावना दर्पण का प्रकाशन कर रहा हूं और ‘साथी सन्देश’ में फिलहाल नियमित रूप से लिख रहा हूँ। इसलिए मेरा कर्तव्य है अपने किसी भी साथी पर कहीं कोई हमला हो तो उसके विरुद्ध आवाज उठाई जाय। जिस पत्रकार के खिलाफ अधिकारी ने कार्रवाई की है उसे अच्छे से जानता हूं। चार दशकों से जानता हूं । सुशील शर्मा बेहद समर्पित पत्रकार है। दुर्भाग्य है कि जो सच्चा व्यक्ति है साफ सुथरा है, उसे कोई भी व्यवस्था पचा नहीं पाती। फिर चाहे भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की। इन दलों से जुड़े हुए लोग बातें तो अभिव्यक्ति की करते हैं, पत्रकार सुरक्षा की करते हैं लेकिन मौका आने पर सब कुछ भूल जाते हैं। छुट भैया अधिकारी भी पत्रकारों को प्रताड़ित करने की कोशिश में लगा रहता है, और उसका बाल बांका नहीं होता। पत्रकार के खिलाफ फौरन एफ आई आर दर्ज कर ली जाती है । कमल शुक्ला में और उसके साथियों ने लगातार पत्रकार प्रकार सुरक्षा कानून बनाए जाने की मांग की। इस मांग का सरकार में खुले मन से समर्थन भी किया, लेकिन अभी कानून आकार नहीं ले सका है। मुझे लगता है कहीं न कहीं इच्छाशक्ति का अभाव है। उम्मीद की जानी चाहिए कि बस्तर बन्धु के संपादक शर्मा को न्याय मिलेगा। वरना पत्रकार संगठन आंदोलन के लिए मजबूर होंगे। इस वक्त मुख्यमंत्री के जो दो सलाहकार नियुक्त हुए हैं, वे मूलतः पत्रकार ही हैं। इसलिए उनका कर्तव्य है कि उक्त मामले को गंभीरता से लें और दोषी के खिलाफ उचित कार्रवाई भी कराएं।
पत्रकारों के पास ले दे कर एक ही तो अधिकार है अभिव्यक्ति का अधिकार। आईना दिखाने का अधिकार। जब कभी कहीं कोई गड़बड़ी होती है, पत्रकार उसका पर्दाफाश करता है, तो दोषी व्यक्ति उस पर सीधे-सीधे ब्लैकमेलिंग का आरोप लगा देता है। पत्रकार पैसे मांग रहा था , पैसे नहीं दिए तो हमारे खिलाफ समाचार समाचार छाप दिया, यह आरोप बड़ा आसान है। पत्रकार जो समाचार छापता है, वह पूरी तरह सही होता है । सरकार को समाचार तहकीकात करनी चाहिए। उसकी सत्यता परखनी चाहिए। अगर समाचार झूठा है तो बेशक पत्रकार पर कार्रवाई हो। उस पर मानहानि का मुकदमा चले। लेकिन अगर समाचार सही है तो पत्रकार को प्रताड़ित करना दुर्भाग्यजनक है। किसी भी पत्रकार पर कोई कार्रवाई करने के पहले पूरी तहकीकात होनी चाहिए। भले ही उस उसमें थोड़ा समय लगे। जब तक यह साबित ना हो जाए कि समाचार झूठा था, तब तक एकतरफा कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए । समाचार की सत्यता परखने के लिए एक कमेटी भी बननी चाहिए, जिसमें वरिष्ठ पत्रकारों की संख्या अधिक हो। न्याय तभी मिल सकेगा। प्रेस काउंसिल ने कानपुर के एक पोर्टल संपादक के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर के विरुद्ध स्वतः संज्ञान ले कर उत्तरप्रदेश सरकार से जवाब मांगा। सुशील शर्मा के मामले में कांग्रेस सरकार भी आगे आए और दोषी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करे ताकि सुशील शर्मा का अहित न हो।
गिरीश पंकज