आशा तो ये थी कि बघेल मुख्यमंत्री बनेंगे तो अनेक भ्रष्ट चेहरों से उतरेगी नक़ाब, पर ये तो पूरी सरकार ने शुतरमुर्ग सा चेहरा छिपा लिया
एक पत्रकार के दबाव में नियम कानून की धज्जी उड़ाकर, पहले से बर्खास्त पदअयोग्य पत्नी को बना दिया अधिकारी
बस्तर बन्धु की वह रिपोर्ट जिस पर दबाव बनाने के उद्देश्य से एकतरफा एफआईआर दर्ज करा कर सम्पादक सुशील शर्मा को गिफ्तार किया गया
सुशील शर्मा
रायपुर। भूमकाल समाचार। छत्तीसगढ़ की जनता को बड़ी आशा थी कि जब कांग्रेस की सरकार बनेगी और एक सीधे-साधे किसान पुत्र भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बनेंगे तब भाजपा काल के अनेक भ्रष्ट चेहरों से नकाब उतरेगा। उस काल के अफसरों के भी भ्रष्टाचार से कमाए हुए धन को सरकार अपने अधिकार में ले कर जनहित में खर्च करेगी, सरकारी दफ्तरों में भी भ्रष्टाचार रुक जाएगा लेकिन आज हम बड़े आश्चर्य से देख रहे हैं कि विगत 15 वर्षों के भ्रष्टाचार तो सामने आए नहीं,, न जाने कहां दब गए या दबा दिए गए और इस कांग्रेस सरकार के समय में भी वही भ्रष्ट अफसर, वही सप्लायर, वही दलाल, वही पत्रकार, वही व्यापारी, वही मीडिया समूह पहले से कहीं अधिक सुविधाजनक (कम्फर्टेबल) स्थिति में अपना उल्लू सीधा करते जा रहे हैं ।
( वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा की इस तथ्यात्मक खबर को आप पढ़े और खुद तय कर बताईये कि क्या इस खबर पर कोई आपराधिक मामला बनता है ? वह भी प्रदेश में पत्रकारों को सुरक्षा व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ पत्रकारिता करने का मौका देने के वादे के साथ आई सरकार के समय में । पत्रकार सुरक्षा कानून को लगातार किसी न किसी बहाने से टाला जा रहा है जबकि पत्रकारों पर उल्टे गलत तरीके से नियंत्रण के लिए फेक न्यूज़ कमेटी बनाकर प्रदेश के कई पत्रकारों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं, कई को नोटिस जारी की गई है, कई पर दबाव बनाए गए हैं। लगता तो यही है कि इस सरकार को अगले 5 साल बाद खुद ही जनता का सामना नहीं करना है। सम्भवतः इसीलिए इन्होंने अपने आसपास चाटुकारों का घेरा बना लिया है और जो पत्रकार और बुद्धिजीवी इन्हें रास्ता दिखाने की और आईना दिखाने की कोशिश कर रहे हैं उनसे कन्नी काटते जा रहे हैं बल्कि उल्टा उन्ही पर कार्यवाही कर रहे हैं। विनाशकाले विपरीत बुद्धि – सम्पादक )
यह स्थिति प्रदेश के लगभग सभी 28 जिलों की बतायी जा रही है, पार्टी के लिए कमर तोड़ मेहनत करने वाले जोखिम उठाकर पूर्ववर्ती सरकार की पोल खोलने वाले समर्पित कार्यकर्ता, नेता व पत्रकार हाशिये में धकेल दिये गये हैं। न बादशाह की चल रही है न नौकरशाहों की! पेशेवर दलाल आसानी से अपनी तानाशाही व भर्राशाही चलाये चले जा रहे हैं, मनमानी भ्रष्टाचार कर रहे हैं और मंत्रिमंडल ऐसे लोगों को उपकृत करने वाले प्रस्तावों पर अपना अंगूठा (मुहर) लगाये जा रहा है।
पढि़ए, एक जबरदस्त सनसनीखेज भ्रष्टाचार की कथा, जिसमें सत्ता की दलाली करने वाले पत्रकार राजेश दुबे की बर्खास्त पत्नी अनुराधा दुबे की नियुक्ति सरकार के मलाईदार ओहदे में हो चुकी है और उनके द्वारा मनमानी रकम अवैध रूप से कमाने की दूसरी पारी की शुरूआत हो चुकी है।
प्राईवेट नृत्य शिक्षिका को रमन काल में बनाया गया था , बिना योग्यता के पर्यटन अधिकारी , तब पति पत्रकार रमन के थे खास
छत्तीसगढ़ प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में श्रीराम संगीत विद्यालय नामक निजी संस्था में संगीत शिक्षिका रहीं श्रीमती अनुराधा दुबे पति राजेश दुबे पत्रकार (जो उन दिनों रायपुर से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र से जुडे हुए थे) छ.ग. शासन के पर्यटन मण्डल में पर्यटन अधिकारी (टूरिस्ट आफिसर) के पद पर प्रतिनियुक्ति पर भेजी गयीं। स्थापना में एक तो यह पद प्रतिनियुक्ति का नहीं है, साथ ही किसी निजी संस्था के कर्मी को भला शासकीय संस्था में प्रतिनियुक्ति पर कैसे पदस्थ किया जा सकता है? वहीं किसी संगीत शिक्षिका की योग्यता रखने वाले निजी संस्था की शिक्षिका में पर्यटन अधिकारी की योग्यता कथित प्रतिनियुक्ति के दिनाँक तक तो थी ही नहीं। यह बात अलग है कि पर्यटन मण्डल में पिछले दरवाजे से पर्यटन अधिकारी बनी बैठी इस महिला ने देश-विदेश के विभिन्न नगरों महानगरों में जमकर पर्यटन किया और अपने अनुभवों की सूची (रिज्यूम) को बढ़ाती गयीं तथा पर्यटन मण्डल के पैसों से सैर सपाटा करती रहीं।
ज्यादा लोभ के चक्कर में पति के बिगड़े थे सम्बन्ध
तब अनियमितता और फर्जीवाड़े का हुआ था खुलासा
इतना कुछ गैर कानूनी ढंग से आपराधिक तौर तरीके से प्राप्त करने के बावजूद इन्हें संतोष नहीं था और इन्होंने पुनरू पत्रिका समाचार पत्र के बैनर का दबाव बनाते हुए कथित प्रतिनियुक्ति वाले पर्यटन अधिकारी के पद पर पर्यटन मण्डल में तत्कालीन प्रबंध संचालक सुनील मिश्रा से स्वयं की पदस्थापना यानि प्रतिनियुक्ति को एब्जार्व ( समायोजित) करवा लिया। इतनी अंधेरगर्दी होती देख असंतोष का लावा फूटा, कानाफूसी से आगे निकलकर बात शिकवा शिकायत तक जा पहुँची और जाँच करनी पड़ी। जाँच रिपोर्ट में प्रतिनियुक्ति से लेकर एब्जार्वेशन तक सारा कुछ अनियमितता भरा, अवैध व भर्ती नियमों का उल्लंघन, शैक्षणिक योग्यता में कमी जैसी सारी बातें साबित हुई और इन्हें सेवा से पृथक् करने कहा गया। फिर भी इन्हें पर्यटन मण्डल ढोता ही रहा। अंततः मुख्यमंत्री सचिवालय से डॉ. रमन सिंह के हस्ताक्षर से इन्हें हटाने का स्पष्ट आदेश होने के बाद आखिरकार असंतुष्ट आत्मा श्रीमती अनुराधा दुबे को 2012-13 में पर्यटन मण्डल के तत्कालीन एम.डी. संतोष मिश्रा ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के स्पष्ट लिखित आदेश के बाद निकाल बाहर किया। बताते हैं वे उच्च न्यायालय की शरण में भी गयीं और कई स्तरों पर इनकी प्रतिनियुक्ति की जाँच हुई। सब जगह इन्हें मुँह की खानी पड़ी और आखिर वे बैक-टू-पेवेलियन होकर रहीं।
न्यायालय ने भी जिसकी नियुक्ति सही नही ठहराया
उसे अब भोले भूपेश कैबिनेट ने फिर पद पर बिठाया
लापरवाही व मनमानी का आलम तो देखिये इस अंधेरगर्दी के लिए जिसमें मण्डल के करोड़ों रुपए बर्बाद हुए, किसी भी अधिकारी की जिम्मेदारी तय नहीं की जा सकी है, न तो नियोक्ता अधिकारी को नोटिस दी गयी, न चार सौ बीसी का कोई आपराधिक प्रकरण ही दर्ज किया गया, न अपव्यय का निर्धारण कर जिम्मेदारी तय कर वसूली की कोई प्रक्रिया ही शुरू की गयी है।
भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में जमकर चाँदी काटने, मजे करने, घर भरने के बाद प्रदेश में बनी भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समक्ष ऐसी फर्जी तस्वीर पेश की गयी जिस पर सरकार के तमाम मंत्रियों ने आँख मूँद कर भरोसा कर लिया। वह यह कि अनुराधा दुबे के पति राजेश दुबे ने पत्रिका समाचार पत्र में मुख्य मंत्री रमन सिंह व सुपर सी.एस. कहे जाने वाले अफसर अमन सिंह के विरुद्ध काफी समाचार छापे थे इसलिए ही राजेश दुबे की पत्नी अनुराधा दुबे की नौकरी खाकर उन्हें प्रताडि़त किया गया है, यह पत्रकारिता पर हमला है आदि इत्यादि, दुबे दंपत्ति ने बगैर नाखून तक कटाये शहीद का खिताब व ईनाम इकराम पाना चाहा और मजे की बात यह कि वे इसमें सफल भी हो गये।
मौका परस्त पत्रकार के पत्नी के लिए कैबिनेट का प्रयोग
वैसे ही जैसे कि शाहिद परिवार के आश्रितों के लिए हुआ
नक्सली हिंसा में शहीद पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चैबे, शहीद पूर्व मंत्री महेन्द्र कर्मा के पुत्रों का मंत्रीमण्डल ने प्रस्ताव पारित कर योग्यतानुरूप उच्चपदों पर विशेष प्रकरण बता नियुक्ति दी थी जिसका भी कुछेक दलों ने विरोध किया था पर अनुराधा दुबे की विधि विरूद्ध जिस संस्था से वे बर्खास्त की जा चुकीं थी, उसी संस्था में विशेष प्रकरण बता की गई नियुक्ति का कोई विरोध न किया जाना कम आश्चर्यजनक नहीं है। श्रीमती अनुराधा पति राजेश दुबे न तो नक्सली हिंसा पीडि़त परिवार से है, न ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से ही आते हैं पर वर्तमान सरकार की केबिनेट में पूरी तरह विधि विरुद्ध राज्य शासन के पत्र क्र. एफ 1-16ध/2005ध/33/ पर्यं नवा रायपुर दिनाँक 06/02/2020 द्वारा छ.ग. टूरिज्म बोर्ड रायपुर मुख्यालय में जनसंपर्क अधिकारी का एक नवीन पद सीधी भर्ती वेतनमान (छठे वेतनमान) 9300-34800़4400 की स्वीकृति प्रदान की गई है।
अतः मंत्री परिषद के निर्णय के परिपालन में श्रीमती अनुराधा दुबे को छ.ग. पर्यटन मण्डल के सेवा भर्ती एवं पदोन्नति नियम-2015 के निहित प्रावधानों में शिथिलता प्रदान करते हुए जनसंपर्क अधिकारी के पद पर नियुक्ति प्रदान कर पर्यटन मण्डल के मुख्यालय रायपुर में पदस्थापना दी गई।
इफ्फत आरा भा.प्र.से. प्रबंध संचालक छ.ग. टूरिज्म बोर्ड के हस्ताक्षर से जारी उक्त आदेश क्र. 4537/ 1/ स्था./ प्रशा.ध/ पर्य.मं./ 2020 रायपुर, दिनांक 18/02/2020 को जारी हुआ है जिसमें यह भी ताकीद की गई है कि भविष्य में इसे पूर्वोदाहरण नहीं माना जावेगा।
*दलाली की ताकत से शिथिल हुआ नियम कायदा*
नया पद स्वीकृत होता है फरवरी 2020 में अर्थात् रिक्त पद उपलब्ध रहता है फरवरी से और रिक्त पद पर नियुक्ति का निर्णय होता है जनवरी 2020 मे। फिर जनसंपर्क अधिकारी को प्लानिंग (योजना ) का काम सौप दिया जाता है। पूर्व में 2005 से लेकर 2012 तक की अवैध डेपुटेशन और अवैध समाहित नियुक्ति और उच्चस्तर से जांच कर निकाले जाने की कोई जवाबदेही की बात ही नहीं की जाती। पुरानी अवैध बातों को गोल कर उसी संस्था मे नये सिरे से नामजद नियुक्ति का निर्णय केबिनेट द्वारा जनवरी में लिया जाता है जबकि पद स्वीकृत होता है फरवरी में। ऐसी क्या विशेष परिस्थिति और क्या विशेष प्रकरण? गलत नियुक्ति गलत भुगतान पर तो किसी पर भी कार्यवाही होती नहीं और इस नई सरकार से भी ईनाम अलग मिलता है, नवीन पद जनसंपर्क अधिकारी के सृजन के साथ यह है दलाली की ताकत। केबिनट जैसी राज्य की सर्वोच्च पंचायत से हर जांच रिपोर्ट में गलत साबित होने, यहाँ तक माननीय उच्च न्यायालय में भी मुंह की खाने के बाद निर्धारित योग्यता न हुए भी अपने पक्ष में फैसला करवा पूरी केबीनेट की भद्द पिटवा दी गयी है, यह सब देखना व केबीनेट को नियमों प्रावधानों की जानकारी देकर सतर्क करने की जिम्मेदारी रखने वाले शीर्ष अधिकारी यानी मुख्य सचिव छ.ग. शासन आर.पी. मंडल की घोर लापरवाही इस प्रकरण में साफ-साफ दिखती है।
सम्पूर्ण केबिनेट, मुख्य सचिव और तमाम नौकर शाह पत्रकार राजेश दुबे की जेब में है ? क्या इसके पीछे कोई ब्लैकमेलिंग है
राजेश दुबे जैसा पत्रकार छ.ग. शासन के संपूर्ण मंत्री परिषद को चीफ सेक्रेटरी व तमाम नौकरशाहों समेत अपनी जेब में होने का साफ व तगड़ा संदेश देने में कामयाब रहे हैं, क्योंकि निर्धारित योग्यता न होते हुए, पर्यटन मण्डल में जनसंपर्क अधिकारी के पद के न होने के बाद भी मंत्री परिषद की बैठक में प्रस्ताव पारित करा बैठक दिनांक के बाद जनसंपर्क अधिकारी का पद सृजित करा अपनी अर्धांगिनी श्रीमती अनुराधा दुबे को (जिस पर्यटन मण्डल से वे पर्यटन अधिकारी के पद से बर्खास्त की गई थी) वहीं उनकी पदस्थापना कराने में वे सफल रहे। कायदे कानूनों पर चलने वाले प्रदेश की जनता व शासकीय कर्मचारी अधिकारी बगले झाँकने को मजबूर हैं।
दलाली की कीमत में बढ़ोतरी से नेताओं की हुई हानि
इस सफलता के बाद राजेश दुबे की प्रदेश के नौकरशाहों में तूती बोलने लगी है। अब मनचाही जगहों पर अपनी पदस्थापना के लिए लालायित बहुत से अधिकारी कांग्रेसी संगठन के पदाधिकारियों, विधायकों व मंत्रियों के करीबी नेताओं की बजाय पत्रकार राजेश दुबे को अपना काम कराने में अधिक योग्य समझ रहे हैं। इस तरह विभिन्न विभागों में उनकी वसूली और दादागिरी की शुरुआत हो चुकी है। पार्टी का झण्डा उठाकर संघर्ष करने वाले कांग्रेस नेताओं की बजाय ऐसे दलालों की पूछपरख पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा व हताशा का संचार कर रही है। राजेश दुबे जैसे सत्ता के दलालों के मजे भाजपा सरकार में भी थे और अब की भूपेश सरकार में भी पहले से कहीं बढ़कर मजे हो गये हैं।
सुशील शर्मा