बस्तर के आदिवासियों के साथ हुआ छल
एनएमडीसी के सीएसआर फंड का डेढ़ सौ करोड़ रुपये आदिवासियों को धोखे में रख सौंप दिया पीएम केयर को
हिमांशु कुमार
बैलाडीला पर्वतों की श्रंखला दंतेवाड़ा बीजापुर और सुकमा जिलों में फैली हुई है । जैसा कि आपको चित्र में दिखाई दे रहा है । इस पहाड़ की चोटियाँ बैल के डीला जैसे आकार के कारण इसका नाम बैलाडीला पड़ा है ।
इन पहाड़ों में बहुत ऊंची क्वालिटी का लोहा मौजूद है । टीन और कीमती लाल पत्थर रूबी भी इस इलाके में पाया जाता है । आप यह बात तो जानते ही होंगे कि जहां कीमती खनिज होता है वही लड़ाइयां भी होती है ।
पूरा अफ़्रीका खनिजों के कारण हिंसा में धकेल दिया गया था ।
भारत के आदिवासी इलाकों में ही खनिज है और वहीं पर संघर्ष भी है ।
बस्तर के यह खनिज ट्रिलियन डॉलर कीमत के हैं । स्थानीय समुदाय को चुप रख़ने के लिए ( सीएसआर मद )कंपनी अपने लाभ में से 3% स्थानीय लोगों के विकास के कामों के लिए हर साल देती है । पिछली बार यह राशि डेढ़ सौ करोड़ की थी ।
इस पैसे से छत्तीसगढ़ के इस इलाके में आदिवासियों के शिक्षा स्वास्थ्य तथा अन्य विकास के काम किए जाते हैं । इस बार का पूरा डेढ़ सौ करोड़ रुपया सरकारी कंपनी एनएमडीसी ने नरेंद्र मोदी की संस्था पीएम केयर्स को दान दे दिया है ।
ऐसा करने से पहले इस सरकारी कंपनी ने छत्तीसगढ़ सरकार से नहीं पूछा ना ही स्थानीय प्रशासन को कुछ बताया, तो क्या यह स्थानीय आदिवासियों के साथ धोखा नही है ? जानते हैं,
इसके बाद कई स्कूलों के शिक्षकों का वेतन अस्पतालों के लिए दवाइयों की खरीदी सड़कों का निर्माण वगैरह काम बंद हो सकते हैं । वैसे भी कोरोना महामारी के पहले से ही केंद्र सरकार ने। छत्तीसगढ़ राज्य सरकार को दिए जाने वाले कई फंड में कटौती कर दी है।
छत्तीसगढ़ में पिछली सरकार के कार्यकाल में रमन सिंह के समय में भी कई बार इस पैसे को केंद्र इस्तेमाल किया गया था। और दुरुपयोग भी किया गया था। ज्ञात हो कि? रमन सरकार ने तो। अपने राजनीतिक कार्यक्रमों और योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए भी केवल एनएमडीसी ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य उद्योगों के सीएसआर फंड का दुरुपयोग किया था। यहां तक कि। फिर चुनाव से पहले। किसानों को बोनस का लॉलीपॉप दिखाने की योजना का “बोनस तिहार” तक इसी पैसे से मनाया गया था ।
आदिवासियों के हक के राशि का इस तरह से दुरुपयोग करने को लेकर उस समय सोनी सोरी के नेतृत्व में आदिवासियों ने विरोध किया तब यह रुका था । उल्टे बैलाडीला की खदानों के पीछे के कई गांव में यह सरकारी कंपनी अपना लोहा धोकर उसका पानी गिरा देती है । जिसकी वजह से वहां गाद इकट्ठी हो जाती है जिसमें फंसकर 40 से ज्यादा आदिवासी मारे जा चुके हैं । इस गाद और लाल पानी की वजह से हजारों हेक्टेयर जमीन कृषि योग्य नहीं रह गई है। इसके अलावा लगातार हो रहे खुदाई व पानी के दुरुपयोग से अनेक जल स्रोत बंद हो चुके हैं और प्रमुख नदियां शंखिनी डंकिनी भी विलुप्त होने के कगार पर है।
बैलाडीला के नीचे बसे गांवों में ना स्कूल है ना अस्पताल है,
बस मलेरिया, खुजली, गरीबी और भुखमरी है । पूरा विश्व वैश्विक महामारी का सामना तो अभी कर रहा है, पर बस्तर के आदिवासी पहले से ही कई महामारी ओं से त्रस्त हैं। यहां हर साल हजारों की संख्या में लोग बाढ़ से उल्टी-दस्त , मलेरिया व अन्य बीमारी से अथवा सरकार द्वारा अपनी ही जनता के खिलाफ चलाए जा रहे युद्ध से मारे जाते हैं ।
स्थानीय लोगों पर ध्यान ना देकर पीएम केयर्स के लिए पैसा भेज देना बहुत बड़ा अपराध है। इस मुद्दे पर स्थानीय आदिवासी और जनप्रतिनिधि एक बड़ा आंदोलन करने और अदालत जाने के बारे में सोच रहे हैं ।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने भूमकाल समाचार को बताया कि सीएसआर मद का उपयोग क्षेत्र के विकास के लिए ही हो, यह मांग वे उठाते रहें है ।
” बस्तर और आदिवासियों के विकास का झूठा वादा कर लौह अयस्क का खदान शुरू किए गए 50 साल से ज्यादा बीत गए, पर उनके हक की सीएसआर फंड का दुरुपयोग अब तक सभी सरकार करते आई है । यहां के जल जंगल और जमीन बड़े सेठों को देने के बहाने पहले से ही यहां संविधान को निलंबित कर आदिवासियों के सारे हक और अधिकार छीन लिए गए हैं, अब बस्तर के हक का पूरा का पूरा पैसा भी कोरोना के नाम पर छीन लिया गया , यह आदिवासियों के साथ बड़ा धोखा है । ” – सोनी सोरी