भगत सिंह अच्छा हुआ तुम न रहे !! – आज की कविता
हमने तुम्हारी वर्षगाँठ को भी
धंधा बना लिया है, भगतसिंह
हमने तुम्हारी प्रतिमा को भी
कुर्बानी का प्रमाण पत्र थामे रहने के लिए
भली भाँति मना लिया है !
भगतसिंह, दर-असल, हम बड़े पाजी हैं
तुम्हरी यादों के एक-एक निशान
हम तानाशाहों के हाथ बेचने को राजी हैं
दस-पाँच ही बुजुर्ग शेष बचे हैं
वे तुम्हारे नाम का कीर्तन करते हुए
यहाँ वहाँ दिखाई दे जाते हैं
वे उनके साथ शहीद स्मारक
समारोहों के अगल-बगल मंचस्थ
होते हैं उन्हीं के साथ
जिनकी जेलों के अन्दर हजार-हजार
तरुण विप्लवी नरक यातना भोग रहे हैं
और वे उनके साथ भी
शहीद-स्मारक-समारोहें में अगल-बगल
मंचस्थ होते हैं
जिनकी फैक्टरियों के अन्दर-बाहर
श्रमिकों का निरंतर बध होता है
भगतसिंह, क्या वे सचमुच तुम्हारे साथी थे ?
नहीं, नहीं, प्यारे भगतसिंह, यह झूठ है !
ऐसा हो ही नहीं सकता
कि तुम्हारा कोई साथी इन
मिनिस्टरों से, इन धनकुबेरों से
हाथ मिलाये !
दरअसल वे कोई और लोग हैं
उनरी जर्जर काया के अन्दर
निश्चय ही देश-द्रोही-जनद्रोही
दुष्टात्मा प्रवेश कर गयी है
भगतसिंह, अच्छा हुआ तुम न रहे !
अच्छा हुआ, फाँसी के फन्दे पर झूल गये तुम ?
ठीक वक्त पर शहीद हो गये,
अच्छा किया तुमने
बहोऽऽत अच्छा ! बहोऽऽत अच्छा ! !
- नागार्जुन पंचरवाला