ये किस तरह का जनयुद्ध है ?
बीजापुर से दुःखद खबर है , मुखबिरी के शक में माओवादियों ने बासागुड़ा थानाक्षेत्र के तिम्मापुरम गांव में दसवीं के छात्र रमेश कुंजाम की हत्या कर दी है । अपहरण के बाद 16 सितंबर को जनअदालत लगाकर हत्या की गई । माओवादियों के डर से परिजन और ग्रामीण पुलिस तक भी नही पहुंचे। हत्या के बाद गांव में ही परिजनों ने शव का अंतिम संस्कार कर दिया है ।
ये किस तरह का जनयुद्ध है ? जनता में इस तरह का खौफ पैदा कर किस मुंह से दावा कर रहे हैं कि आप जनता के लिए लड़ रहे हो ? 15-16 साल के बच्चे से ऐसा क्या खौफ हो गया, जिस वजह से उसके जीने का अधिकार छीन लिया गया ?
बच्चा अगर दसवीं में पढ़ रहा था तो निश्चित रूप से किसी कस्बे या शहर में पढ़ रहा होगा । बस्तर के अधिकांश गांव में आपकी सरकार है, पर सभी कस्बे और शहर में पुलिस की सरकार है अब वह छोटा बच्चा कब किसके प्रभाव में रहेगा, उसकी क्या मजबूरी होगी ? गांव आते समय और गांव से शहर वापसी के समय वह किस सरकार की सुने ? इसके बारे में भी कोई सोचेंगे ?
बस्तर के रहवासी लंबे समय से हवा में टंगी एक रस्सी में बैलेंस बनाकर चलने की मजबूरी झेल रहे हैं, थोड़ी सी गलती हुई कि तो इस तरफ गिरे या उस तरफ !! स्कूल, बाजार, कचहरी या किसी न किसी काम से शहर की ओर तो आना पड़ेगा ही और जब शहर आओगे तो गांव तो फिर वापस आना पड़ेगा । शहर की ओर आते समय जगह-जगह कैंप में गिद्ध की तरह ताकते पुलिस और पैरा मिलिट्री के जवान उन्हें मारपीट कर, मजबूर कर मुखबीर बनने के बाद करते हैं , फिर उनके पास एक ही रास्ता बचता हैं , अपने घर परिवार गांव जमीन जायदाद सब कुछ छोड़ कर कस्बा शहर में आकर बस जाए । मगर फिर भी किसी दिन गांव लौटने का मन तो हो ही जाएगा ना !! उस दिन आप उसके साथ मारपीट करते हैं या फिर कथित रूप से जन अदालत लगाकर बिना उसकी पीड़ा सुने, बिना उसकी मजबूरी जाने उसे सजा सुना देते हैं । अति दुःखद !!
जिस बच्चे की आप ने हत्या की है निश्चित रूप से उस कथित जन अदालत में उस बच्चे के मां- पिता ,भाई- बहन और परिवार के लोग रहे होंगे आपसे गिड़-गिड़ाये भी होंगे । शायद आपके बंदूक के डर से वे अपना आंसू भी पी लिये होंगे ? पर आपको लगता नहीं कामरेड कि वे अब आपके साथ नहीं होंगे ?
ऐसी कई जनअदालतों का आपके पास कोई इतिहास नहीं है, कोई दस्तावेज नहीं है, सब कुछ मौखिक संपन्न हो गया । कितने लोग ऐसी मार दिए गए ? कितने लोग ऐसे दफना दिया गए ? इस तरह की हत्याओं के लिए आपके पास क्या तर्क है ? मैं तो यह मानता हूं कि दोनों खेमे में जो भी बस्तर के आदिवासी हैं, उनकी अपनी मजबूरी है या उनका अपना नजरिया । पर उनका बस्तर के जमीन जंगल उतना ही हक है, और शांति के साथ जीने का अधिकार भी ।
कमल शुक्ला
Sarkar ko iske bare mein kuchh sochana hai, Agar is tarah hote rahega to desh ka bhavishya mit jaega, Ek to gaon ka vikas Nahin hoga gaon Ke log dar ke rahenge