भाजपा सरकार में आदिवासियों की हत्याओं का घिनौना खेल
बीजापुर के विभिन्न गांव से आई पीड़ित महिलाओं ने पत्रकार वार्ता में अपने साथ हुई पुलिस प्रताडना की सिलसिले वार चर्चा की
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गाँव गाँव हत्याचार, हर घर पीड़ित
बीजापुर में हत्याओं और अत्याचार का दौर लगातार जारी.
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जहाँ एक तरफ सुरक्षा बल बस्तर में तथाकथित नक्सलियों को मारे जाने की नित नई कहानियाँ सुना कर जश्न मना रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ बीजापुर के पीडित आदिवासी इन हत्याओं की सत्यता को चुनौती देते हुए यह कहना चाहते हैं कि ज्यादातर मुठभेड़ फर्जी और निरपराध आदिवासियों के खिलाफ एक पक्षीय प्रताड़ना है। हमने उन सब प्रक्रियाओ से गुजरे है जो एक स्वतंत्र और लोकताँत्रिक देश में नागरिक को गुज़रना चाहिये । हम सब लोग हर घटना के बाद पुलिस थाने गये, प्रशासीय अधिकारियों के पास गये, उच्च न्यायालय और स्रर्वोच्च न्यायालय तक अपनी गुहार लगाई। लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारी कोई सुनने वाला नहीं है।
हम सभी पीडित परिवार छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय अपनी याचिका दायर करने आये है और हमे लगा कि लोकतंत्र के सबसे मजबूत स्तम्भ मीडिया के समक्ष अपनी व्यथा कहने के लिये उपस्थित हैं।
ज्यादातर प्रकरणों में एक सी कहानी दोहराई जा रही है, कि हमारे गाँव में बड़ी संख्या में सुरक्षा बल गश्त पर आते हैं और उन्हें देख कर पुराने अनुभव के आधार पर गाँव के पुरुष गाँव छोड़कर भाग जाते हैं। जो बचे रहते हैं उन्हें घरों से खींच कर पकड़ कर ले जाते है और जंगलो में जा कर हत्या कर दी जाती है। दो तीन दिन बाद जब उनकी जानकारी हमें मिलती है तो पुलिस थाने में उन्हें नक्सली मानकर मारा गया बताया जाता है। पुलिस गाँव में शेष बची महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के साथ मारपीट, अपमानजनक व्यवहार, लूटमार और घरों की तोड़फोड़ की घडनाएँ आम हो गई हैं।
जो महिलाँयें इन सब का विरोध कर रही हैं उनमे से कुछ के साथ पुलिस ने वीभत्स तरीके से बलात्कार किये और बाद में उनकी हत्या कर दी। छोटे बच्चो, युवाओं और महिलाओं की हत्या आमतौर पर की जा रही है।
इन हत्याओं और प्रताड़ना के बाद हमने बड़ी कठिनाई से एक दो दिन पैदल चल कर हम थाने पहुँचते हैं तो थाने में हमारी सुनने वाला कोई नहीं है। थाने से हमको धुतकार कर भगा देते हैं।
हमारे क्षेत्र (बीजापुर) में दो तिहाई लोग अशिक्षित और गरीबी रेखा से जीने वाले, स्वास्थ्य सेवा और प्राथमिक सुविधाओं से वंचित है। वीजापुर जिले में 80 प्रतिशत आदीवासी निवास करते हैं।
हम एक लोकतांत्रिक देश में एक स्वतंत्र नागरिक समूह हैं। लेकिन सरकार और उनके प्रतिनिधि सुरक्षा बल हमारे गाँव में आक्रमणकारी की तरह पेश होते हैं मानो कि हम एक दुश्मन देश के नागरिक हैं। ऐसे में हमारा संविधान, कानून, लोकताँत्रिक हक, और स्वतंत्र नागरिक होने के सारे मूल अधिकार से हम वंचित हैं। संविधान द्वारा दिया गया गरिमा से जीने का हक भी हमारा छीन लिया गया है। इन सब परिस्थितियों मे हम यह कैसे भरोसा करे कि हम इस स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक हैं।
संविधान की सुरक्षा करने वाली सरकार ने अभी तक आदिवासियों के विनाश के कई गैर संवैधानिक तरीके अपनाये जिनमें सलवा जुडूम, एस पी ओ, सामाजिक एकता मंच, आत्म समर्पण के नाम से बड़ी संख्या में आदिवासी नौजवानों को माओवादी के रूप में चिन्हांकित करना, आत्मसमर्पित नक्सलियों को फोर्स मे भर्ती कर के उनका गाँव मे आतंक के लिये उपयोग, और अब अग्नि के नाम पर पूरे समुदाय की प्रताड़ना की जा रही है।
आत्मसमर्पित नक्सली जो कल तक हमारे गाँव में हत्याएँ और आगज़नी किया करते थे, अब शासन ने उन्हें वैधानिक रूप से हथियार दे कर उन्हीं गाँव में प्रताड़ना और हत्याओं का काम सौंप दिया है। जो कि अपने आप में गैर कानूनी है।
बीजापुर तहसील से आये हम पुलिस से प्रताडित लोग निम्न गाँव से उपस्थित हैं – सुनीता पोटाम और तुलसी पोटाम (ग्राम कोरचोली), सुकली हेमला (ग्राम पालनार), हुर्रा सोड़ी (ग्राम अंड्री), सुक्की कोड़मे और शांति कोड़मे (ग्राम पेद्दा कोरमा), बुधरी मोडियाम और मंगली ताती (ग्राम तोड़का).
छत्तीसगढ़ के माननीय उच्च न्यायालय में हमने निम्म घटनाये प्रस्तुत की हैं –
1. ग्राम कोडेनार दिनांक 21.5.2016
मनोज हपका और उसकी पत्नी ताती पाण्डे को शाम को पुलिस और कुछ आत्मसमर्पित नक्सली गाँव मे आये और सब के सामने घर से पकड़ कर ले गये। जब घरवालों ने पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें आत्मसमर्पण के लिये ले जा रहे हैं। उन दोनों के हाथ पीछे रस्सी से बाँधे गये थे और उनसे संबंधित सारा सामान भी परिवार वालों को लाने के लिये कहा गया। दूसरे दिन जब परिवार के लोग थाने में जानकारी लेने पहुँचे तो उन्हें बताया गया कि इस दम्पति को छः लाख की ईनामी नक्सली थी इसीलिये उन्हें मार दिया गया जब कि वे पिछले पाँच साल से इसी गाँव से सामान्य नागरिक की तरह रहे थे।
2. ग्राम पालनार दिनांक 5.7.2016
घटना दिनांक की सुबह सीतू हेमला अपने परिवार के साथ अपने खेत में हल चला रहा था, जब अचानक जंगलों में से भारी संख्या में सुरक्षा बल के जवान आये और उसे घसीटते हुए जंगल ले गये। जब उसके परिजन उसके पीछे आना चाहते थे, तो उनको बुरी तरह से पूरे गाँव के समक्ष पीटा गया। इसके पश्चात् उसकी माँ अपनी बेटियों को लेकर चेरपाल और गंगालूर पुलिस के पास गई पर वे कोई मदद नहीं कर पाये। उसी शाम सीतू को जंगल के मध्य पेड़ों से बाँध कर उसके हाथों में कीले ठोक दी गई और उसे मार दिया गया। जब अगले दिन उसके परिजनों ने उसकी लाश देखी तो उसपर कई प्रकार के प्रताड़ना के निशान थे जबकि वह पूर्ण रूप से निर्दोष था।
इस घटना में मारे गये सीतू की माँ सुकली हेमला उपस्थित हैं।
3. ग्राम कोरचोली दिनांक 25.11.2015
दिनांक 24.11.2015 को ग्राम ईतावर का सुक्कू कुंजाम अपने भाई सोमा कुंजाम के साथ खेत में धान उठा रहा था जब गाँव में पुलिस आई। पुलिस द्वारा प्रताड़ना के भय से अन्य पुरुषों के साथ सुक्कू भी जंगलों मे भाग गया। अगले दिन वह पास के गाँव कोरचोली में अपने रिश्तेदारों के घर खाना खा रहा था, कि पुलिस का गश्त वहाँ भी पहुँच गया। उसी घर से थोड़ी दूर पर जब वह गाँव के दो अन्य युवकों के साथ जा रहा था, पुलिस ने उन पर बिना किसी कारण या किसी घोषणा के गोलियाँ बरसा दी जिस कारण सुक्कू की मौत हो गई और उनके साथी के पाँव में गोली लग गई। इस घटना के कोरचोली में कई चश्मदीद गवाह है।
4. ग्राम अंड्री दिनांक 16-19 फरवरी, 2016
दिनांक 16.02.16 को गंगा कोहड़ामी सहित दो अन्य लड़के जंगल में सियाड़ी पत्ता तोड़ रहे थे जब वहाँ छिपे हुए पुलिस के जवानों ने उन पर गोलियाँ चलानी शूरु कर दी। अन्य दोनों युवक वहाँ से भागने में समर्थ हुए पर गंगा गोलियों से घायल होकर जंगल के ही गड्ढे में गिर गया, और उसकी वहीं मौत हो गई। दो दिनों बाद गाँव वालों को उसकी लाश वहीं मिली। तीसरे दिन पुलिस फिर गाँव आई और लगभग 8-9 साल के बालक सोढी सन्नू, जो उस समय टमाटर की खेती कर रहा था – उसे गोलियों से मार दिया। वह बालक कहाँ मरा, उसकी लाश कहाँ है, उसके परिजनों को आज तक नही पता चला, बीजापुर पुलिस ने उनको थाने के अंदर आने भी नहीं आने दिया।
सोढी सन्नू (बालक) के पिता सोढी हुर्रा आज उपस्थित हैं।
5. ग्राम तोड़का दिनांक 6.9.2016
बरसात के महीने में सुरक्षा बल ग्राम तोड़का आये, जिन्हे देख कर समस्त गाँव वाले जंगलों मे भाग गये। महिलाओ ने देखा कि फोर्स के लोग तीन अन्य महिलाओं के साथ लेकर आ रहे हैं, हमें लगा कि पुलिस के लोग हमारे साथ भी अनाचार कर सकते हैं, यह सोच कर हम लोग भी गाँव छोड़कर भाग गये। शाम के समय फोर्स के वहाँ से जाने बाद हम सब वापस आये और हमने देखा कि पाँच घरों को सुरक्षा बलों ने लूटा था, जिनमें से चार घरों को पूरी तरह से तोड़ा भी गया था, उनके सारे बर्तन भी तोड़ दिये थे, उनके धान के बोरों को भी जमीन पर फेंक दिये थे। उन दिनों बहुत बारिश हो रही थी जिस कारण बिना छत के कच्चे घरों मे भी रहना संभव नही था। धान के अभाव मे और बिना बर्तनों के इन परिवारों को रहने में बहुत कठिनाई हुई। जो साम्न फोर्स ने नष्ट नहीं किया, वह बारिश में भीगकर खराब हो गया।
इस गाँव से बुधरी मडियम और ताती मंगी, जिन दोनों के घर तोड़े गये थे, आज उपस्थित हैं।
6. ग्राम पेद्दा कोरमा दिनांक 22.10.2016
दिनांक 21.10.2016 को मंगू कोड़मे अन्य गाँववालों के साथ जंगल में बंदर भगाने और बाँस काटने गया था। बंदर को देखकर उसके पीछे मंगू पेड़ पर चढ़ गया, और उसके अन्य साथी चिल्ला चिल्ला कर बंदर को डराने की कोशिश कर रहे थे। तभी आवाज सुनकर वहाँ अचानक पुलिस वाले आ गये जिन्हें देखकर बाकी गाँववाले भाग गये, परंतु मंगु पेड़ से उतर नहीं सका और पुलिस द्वारा पकड़ं गया। पुलिस उसे एक पूरा दिन गाँव गाँव घुमाती रही, उसके साथ बहुत मारपीट की, और फिर दिनांक 22.10.2016 को उसे गोलियों से मार दिया गया।
मृतक मंगू कोड़मे के परिवार से उसकी भाभियाँ सुक्की कोड़मे और शान्ति कोड़मे आज उपस्थित हैं।
हम सरकार से माँग करते है कि
1. नक्सली मुठभेड़ के नाम पर की गई सभी हत्याओं की स्वतंत्र एजंसी द्वारा जाँच कराई जाये, और घटनाओं के लिये प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जिम्मेदार व्यक्तियों पर आपराधिक मुकद्दमें दर्ज कर उन्हें दंडित किया जाये।
2. बस्तर में हो रही हत्याओं के लिये पुलिस महानिरीक्षक एस आर पी कल्लूरी को जिम्मेदार मान कर उनके विरुद्ध आपराधिक मुकद्दमा दर्ज किया जाये और उन्हें दंडित किया जाय।
3. आत्मसमर्पित नक्सलियों का प्रयोग सैनिक के रूप में नहीं कर उन्हें दी जाने वाली अन्य सुविधायें दी जायें।
विनीत
डा. लाखन सिंह,
अघ्यक्ष छत्तीसगढ़ पीयूसीएल
फो – 7773060946
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सुधा भारद्वाज, एडवोकेट
महासचिव, छत्तीसगढ़ पीयूसीएल
फो — 9926603877