हर किसी की सीमा तय करने का वक़्त है– आज की कविता
साकलदीपी ब्राह्मण बताते हैं उत्स मगह
मगह के बाहर के साकलदीपियों को खदेड़ दिया जाए
कान्यकुब्जों को भेजा जाए कान्यकुब्ज
सरयूपारीण को सरयू पार किया जाए
चतुर्वेदी, त्रिवेदी, द्विवेदी से ली जाए
उनके वेदी होने की परीक्षा
मिश्र से पूछा जाए किसका मिश्रण?
पाठक का जाँचा जाए पाठ
भूमिहार हों भूमिगत
क्षत्रियों में चंद्रवंशियों को भेजा जाए चाँद पर
सूर्यवंशियों को छठपर्व में अर्घ्य के साथ
समर्पित किया जाए सूर्य को
अग्निवंशियो! क्या तैयार हो अपने अंजाम के लिए?
यदुवंशी रहें मथुरा या
भागें द्वारिका
मारवाड़ियों! तुम्हारा मारवाड़ कहाँ है
सिन्हा! अग्रवालो! श्रीवास्तवो!
यहाँ हर किसी को देना है सबूत।
कोल्हू पेरें पेरनेवाले
मोदी रहें बैठे अपनी-अपनी दूकानों में
सैय्यद-शेख जाएँ अरब
मुगल उज़बेकिस्तान
पठान! है कहीं पख़्तूनिस्तान
पारसी ढूँढ़ें अपना पारस
कौन जाएगा येरुशलम?
कौन वेटिकन?
बौद्ध चुनें श्रावस्ती कि कुशीनगर
जैनियो! सजाओ अपना वज्जी गणराज्य
हर किसी की सीमा तय करने का वक़्त है
सभी लौटें अपनी-अपनी जड़ों की ओर
और दफ़्न हो जाएँ उसी इतिहास में
‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के लोग
वसुधा के तल में वास लें