विकास के नाम पर सामूहिक हत्या स्वीकार नहीं
सरदार सरोवर बांध के डुबान प्रभावितों के संघर्ष में छतीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने एकजुटता प्रदर्शित की
रायपुर । छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला नंद कुमार कश्यप और रमाकांत बंजारे ने आज एक विज्ञप्ति जारी कर सरदार सरोवर बांध के डुबान प्रभावितों के संघर्ष के साथ एकजुटता प्रकट की ।
आज मेघा पाटकर एवं नर्मदा बचाओ आन्दोलन के साथियों के द्वारा नर्मदा चुनौती सत्याग्रह एवं आमरण अनशन के नौ दिन पूरे हो गए। मेघा जी की हालत दिनों दिन बिगड़ती जा रही है। परंतु केंद्र और गुजरात सरकार सरदार सरोवर बांध के गेट बंद करने और उसके भरने की खुशियां मना रहे हैं। प्रधानमंत्री ने तो लोगो से सरदार सरोवर पर्यटन करने का सार्वजनिक आमंत्रण भी दे दिया। परंतु उस बांध से डुबान क्षेत्र के एक शहर और 102 गांवों के लोगों की जिंदगी इनके लिए कोई मायने नहीं रखती ऐसा प्रतीत होता है।यह पूरा क्षेत्र आदिवासी बहुल है और इस समय जो गांव टापू बने हुए हैं उनमें 80 फीसदी आदिवासी आबादी रहती है।
वस्तुत जब सरदार पटेल की याद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में जब सरदार सरोवर परियोजना की नींव रखी तो मध्यप्रदेश गुजरात और राजस्थान में जल बंटवारे पर एक राय नहीं बन पाई। और जब जल बंटवारे पर सहमति बनी तो 1979 में 37000 हेक्टेयर भूमि के डुबान से 248 गांवों के एक लाख से अधिक लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था कैसे होगी। इन तमाम सवालों एवं सरदार सरोवर परियोजना की खामियों को ठीक करने की मांग के साथ मेघा पाटकर ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की शुरुआत करते हुए विस्थापितों के पुनर्वास हेतु आंदोलन शुरू किया।
1994 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके पास इतनी बड़ी संख्या में विस्थापितों के पुनर्वास हेतु जमीन नहीं है। तब से लेकर आज तक सुप्रीम कोर्ट के बेहतर और पूर्ण पुनर्वास उपलब्ध कराने के आदेश के बावजूद न ही केंद्र सरकार ने और न ही गुजरात सरकार ने विस्थापितों को पुनर्वास और राहत दिया है और बिना पुनर्वास दिए सरदार सरोवर बांध के गेट बंद कर दिए जाने से लाखों लोगों की जिंदगी दांव पर लगी हुई है। परंतु असंवेदनशील मोदी सरकार ने अपने देश के संकटग्रस्त नागरिकों से कोई सहानुभूति नहीं जताया न ही उनके पुनर्वास की व्यवस्था की। इसलिए मेघा पाटकर अनशन पर हैं।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का मानना हैं कि केंद्र सरकार और विभिन्न कारपोरेट मीडिया समूहों द्वारा सरदार सरोवर बांध के लाभ गिनाकर आंदोलन को नीचा दिखाने की कोशिश कर रही हैं जो कि बेहद ख़तरनाक है। यह ऐसा संदेश दे रहा है कि विकास के लाभ के नाम पर यदि कुछ लोगों को मरना पड़े तो उन्हें मर जाना चाहिए। यह संविधान में सम्मान से जीने के मूल अधिकार का उल्लंघन है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन छत्तीसगढ़ में विकास के इसी अवधारणा के खिलाफ आंदोलन रत है जहां कोयला सहित अन्य खनिज दोहन के नाम पर घने जंगलों को काटा जा रहा है और लाखों आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है।
आलोक शुक्ला , नंद कश्यप और रमाकांत बंजारे ने कहा है कि छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन नर्मदा चुनौती अभियान के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करता है और देश के तमाम जनांदोलनों से एक जुट होकर इस विकास अवधारणा के खिलाफ सड़कों पर उतरने का आव्हान करता है।