यौम ए विलादत मुबारक़ मेरे मुल्क़
मेरी हत्या
एक भीड़ ने की
अदालत में जिरह हुई
कि आरोपी छह थे
मैं सबके नाम जानता हूं
योर ऑनर…
पर आप नहीं मानेंगे
पर कम से कम सुनिए
क्योंकि ये
मेरा डेथ डिक्लेरेशन है
यानी कि
मरने से पहले
आख़िरी बयान
हालांकि ये मेरा
पहला बयान भी हो सकता था
अगर मैं ज़िंदा होता
क्योंकि इसके पहले
मुझसे पुलिस ने कभी
बयान नहीं मांगा था
मैं न केवल शरीफ़ था
बाकी सब इंसान भी थे
फिर भी अफ़सोस
अपने पहले और
क़ानूनी तौर पर आख़िरी बयान में
मैंने दर्ज किया था
छह नामों को
मैं फिर दोहरा देता हूं
नफ़रत
पवित्र किताबें
डर
सियासत
स्कूल
और
परिवार
नहीं-नहीं…गाय ने मुझे नहीं मारा
वो तो जानती भी नहीं
कि मुझे मारते वक़्त
उसका नाम लिया गया
वो तो मेरे गर्दन पर हाथ लगाते ही
अपना सिर रख देती थी
चाटने लगती थी मेरी हथेली
चारा और सानी देने के बाद
नहलाते वक़्त अक्सर
वो देर तक झूमती थी
मेरी आवाज़ पर
ख़ैर
मैंने आपको नाम बता दिए हैं
मरने के बाद
मैं नाम बताने नहीं आ सकता था
लेकिन आज
आज एक खास दिन है
आज मेरी सालगिरह है
और मरने से पहले
मुझे बताना था
उनके नाम
जिन्होंने मेरे क़त्ल किया
हालांकि मुझे पता है
कि ये छह के छह
बरी हो जाएंगे
लेकिन
जब मेरा इतिहास लिखा जाएगा कभी
तो दर्ज होगा
कि मक़तूल का नाम
मुल्क़ था
और उसके हत्यारे
छह के छह
बाइज़्ज़त बरी हो गए
इसको ख़बर को लिखते वक्त
इतिहास ‘बाइज़्ज़त’ को लिख कर
कलम की निब तोड़ देगा
और आगे की बात
समय ख़ुद पढ़ लेगा
हमारे समय में
आरोपियों को इज़्ज़त
और पीड़ित को
ताजीरत ए हिंद दफ़ा 302 में
सज़ा ए मौत मिली थी
ये दर्ज हो
एक मुल्क़ को मिली थी
सज़ा एक मौत
और बाहर खड़ी भीड़ चिल्लाई थी
भारत माता की जय…
तारीख थी
मुल्क़ की यौम एक विलादत
यानी कि जन्मदिन
क्या संयोग है
मुल्क़ जिस रोज़ पैदा हुआ
उसी रोज़ दुनिया से चला गया देखिए…
बड़े लोगों का ही नहीं
बड़े विचार
बड़े आदर्श
बड़े लोकतंत्र
बड़े मुल्क़ का जनाज़ा भी
धूम से निकलना चाहिए
ये कहा मुझसे
अभी एक नौजवान ने
जिसने मेरे पहचाने हुए एक झंडे में
पोंछे खून से सने अपने हाथ
और पीछे हो लिया उस शवयात्रा के
जिसके आगे सफ़ेद कपड़ों में
एक दाढ़ी वाला तानाशाह
अपने सतर्क साथी के साथ
रोता हुआ जा रहा था
हर लालकिला
लाल पत्थर का नहीं होता
कुछ किलों के पत्थर
ख़ून से लाल किए जाते हैं
मयंक सक्सेना