अन्याय व शोषण के खिलाफ लड़ने के लिए प्रसिद्ध सामाज सेवी प्रियंका को बदनाम करने हुई थी फर्जी शिकायत

शिकायतकर्ता को नही ढूंढ पायी पुलिस

राजकुमार सोनी की रिपोर्ट

रायपुर. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रहने वाली प्रियंका शुक्ला एक अधिवक्ता होने के साथ-साथ एक प्रतिबद्ध सामाजिक कार्यकर्ता भी है. कई सामाजिक मुद्दों पर जूझते रहने की वजह से प्रियंका ने बेहद अल्प समय में ही अपनी एक अलग पहचान कायम कर ली है, लेकिन उनकी यही पहचान परेशानी का सबब बन गई है.कतिपय असामाजिक तत्व उनकी पहचान को मटियामेट करने के खेल में लग गए हैं. पिछले दिनों प्रियंका के खिलाफ बिलासपुर के गोंडपारा में रहने वाली एक महिला विमला लहरे ने पुलिस अधीक्षक से शिकायत में यह आरोप लगाया था कि प्रियंका सामाजिक कार्यों की आड़ लेकर किसी दूसरे तरह के कामधंधों में लिप्त है जिसे समाज खुले तौर पर स्वीकार नहीं कर सकता. जाहिर सी बात है कि कोई महिला सामाजिक विद्रूपताओं के खिलाफ संघर्ष करती है तो आरोप चारित्रिक हनन के भंयकर आरोपों से ग्रसित ही होगा. इस शिकायत के बाद पुलिस भी ताबड़तोड़ ढंग से सक्रिय हुई क्योंकि वह भी प्रियंका के आंदोलन से लगातार परेशान चल रही थी. समय-असमय कुछ पुलिसकर्मी उन्हें सबक सिखाने की धमकी भी दे चुके हैं. खैर… पुलिस ने जबरदस्त ढंग से छानबीन की तो पता चला कि गोंडपारा में विमला लहरे नाम की कोई महिला ही नहीं रहती है और शिकायत झूठी है. इस झूठी शिकायत के बाद भी पुलिस ने प्रियंका को बयान देने के लिए थाने बुलवाया और मनोवैज्ञानिक ढंग से दबाव बनाते हुए कहा- मैडम…अब शिकायत मिली है तो जांच करनी ही पड़ती है.

बहरहाल झूठी शिकायत और पुलिस की छानबीन के बाद सोमवार को बिलासपुर के सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता आनंद मिश्रा, नंद कश्यप, लाखन सुबोध, रजनी सौरेन, गायत्री सुमन, निकिता, सोनिया, दिव्या जायसवाल, मनोज अग्रवाल, राधा श्रीवास, निलोत्पल शुक्ला, संपा सिकंदार, इंदु यादव, तुषार बीके और डाक्टर लाखन सिंह ने पुलिस अधीक्षक अभिषेक मीणा से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा है. पुलिस अधीक्षक ने प्रतिनिधि मंडल से कहा कि जो कोई भी सामाजिक क्षेत्र में काम करता है उसे ऐसी विचित्र स्थितियों का सामना करना ही पड़ता है. अव्वल तो पुलिस की कार्रवाई ही संदेह के घेरे में है. जब एक शिकायत को पुलिस ने अपनी स्वयं की छानबीन में गलत पा लिया तो फिर प्रियंका को बयान देने के लिए थाने क्यों बुलवाया. पुलिस प्रियंका का बयान लेकर क्या यह संदेश देना चाहती थी कि ज्यादा आंदोलन करने से इसी तरह की जांच-पड़ताल से गुजरना होता है. पुलिस अधीक्षक मीणा का यह बयान भी चौकाने वाला है जब वे कहते हैं कि कोई सामाजिक कार्य करता है तो उसे इसी तरह की परिस्थितियों का सामना करना ही होता है. बेहतर होता कि पुलिस अधीक्षक कहते- हमने शिकायत को झूठी पाया है अब हम यह पता लगाने की कोशिश करते है कि इस गुमनाम चिट्ठी के खेल के पीछे कौन है. पुलिस अधीक्षक अगर इस तथ्य पर काम करते तो बेहतर स्थिति होती और फिर कोई दोबारा जनहित के मसलों पर काम करने वाली किसी महिला के खिलाफ झूठी शिकायत करने की हिम्मत नहीं जुटाता.

कौन हो सकता है साजिशकर्ता

इस गुमनाम चिट्ठी के बाद यह सवाल उठ रहा है कि आखिरकार प्रियंका से किसको दिक्तत है. कौन है मुख्य साजिशकर्ता. प्रियंका कहती है- पिछले कुछ समय से वह महिला एवं बाल विकास विभाग के मामलों को देख रही थी. इस विभाग की भर्राशाही से परेशान कतिपय लोगों ने उनसे संपर्क किया था. एक बच्चे को गोद लेने वाले मामले में भी एक वकील ने फोन करके कहा था कि कहां पचड़े में पड़ रही हो. माना जा रहा है कि इस गुमनाम, लेकिन आरोपों से भरे सनसनीखेज खत के पीछे इसी विभाग के एक कद्दावर अधिकारी की भूमिका है. चारित्रिक आरोपों के जरिए प्रियंका को बदनाम करने के खेल में धारा 376 के केस में फंसे एक युवक और पुलिस की भूमिका को भी जोड़कर देखा जा रहा है. प्रियंका ने कहा कि इधर-उधर जो पत्राचार हुआ है उसकी भाषा से यह तो समझ में आ गया है कि खेल के पीछे कौन है…. जल्द ही पर्दाफाश भी हो जाएगा.

अपना मोर्चा डॉट कॉम से साभार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!