अंततः किसानों के हित को नुकसान पहुंचाने के पीछे कार्पोरेट को फायदा पहुंचाने की नीति का हुआ पर्दाफाश
वित्त आयोग की सोच पूरी तरह जनविरोधी है : किसान सभा
रायपुर । छत्तीसगढ़ किसान सभा ने वित्त आयोग द्वारा कॉर्पोरेट खेती का सुझाव दिए जाने की तीखी आलोचना की है तथा कहा है कि वित्त आयोग एक स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था के रूप में काम करने के बजाए मोदी सरकार के कॉर्पोरेट एजेंडा को आगे बढ़ने वाली एजेंसी के रूप में काम कर रहा है, जबकि वित्त आयोग का मुख्य काम देश के संतुलित विकास और विभिन्न राज्यों के बीच व्याप्त असमानता को दूर करने के लिए करों का न्यायसंगत बंटवारा करना है।
आज यहां जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि कॉर्पोरेट खेती का एकमात्र मकसद किसानों की कीमत पर कॉर्पोरेट पूंजी के मुनाफे को सुनिश्चित करना है। ऐसे में यदि इस देश में कॉर्पोरेट खेती को बढ़ावा दिया जाता है, तो लघु और सीमांत किसान, जो इस देश के किसान समुदाय का 75% है और जिनके पास औसतन एक एकड़ जमीन ही है, पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा और उसके हाथ से यह जमीन भी निकल जायेगी। यह नीति देश की खाद्यान्न आत्म-निर्भरता को भी खत्म कर देगी।
उन्होंने कहा कि साम्राज्यवादी देश और बहुराष्ट्रीय कंपनियां छोटे और विकासशील देशों में खाद्यान्न पर-निएभर्त को राजनैतिक ब्लैकमेल का हथियार बनाये हुए हैं और वहां केय संसाधनों पर कब्जा करने के लिए राजनैतिक अस्थिरता फैलाने का ही उनका इतिहास रहा है। यह खतरा भारत के लिए भी मौजूद है। किसान सभा ने उन किसान संगठनों की भी आलोचना की है, जो कॉर्पोरेट फार्मिंग को को-ऑपरेटिव और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के समान बताते हुए इसका समर्थन कर रहे हैं।
किसान सभा नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2500 रुपये प्रति क्विंटल देने की वित्त आयोग की आलोचना भी जायज नहीं है, क्योंकि स्वामीनाथन आयोग के सी-2 लागत फार्मूले के अनुसार समर्थन मूल्य 3150 रुपये बनता है, जो केंद्र की मोदी सरकार देने के लिए तैयार नहीं है। देश के किसानों को बदहाली में रखकर देश और अर्थव्यवस्था का विकास करने की वित्त आयोग की सोच पूरी तरह जनविरोधी है।