कांकेर जिले में पोस्टमार्टम करने वाली सन्तोषी खा रही दर दर की ठोकरे, शराबी पिता की लत छुड़ाने जिद में कर चुकी है 600 पोस्टमार्टम..
कांकेर(नरहरपुर) – छत्तीसगढ़ प्रदेश के उत्तर बस्तर कांकेर अंतर्गत नरहरपुर ब्लाक में एक महिला ने अपने पिता से शर्त लगाया था कि वो बिना शराब पिये भी पोस्टमार्टम कर सकती है.इसी जिद व शर्त के चलते आज नरहरपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्वीपर पद पर कार्यरत 30 वर्षीय सन्तोषी दुर्गा 600 से अधिक पोस्टमार्टम कर चुकी है। सड़े-गले, अंग-भंग व जले पुराने लाश को देखकर कई महिलाए बेहोश हो जाती है, किन्तु नरहरपुर की संतोषी संभवत: देश की पहिली महिला है। जो पोस्टमार्टम के लिए ऐसी ही लाशों पर हथौड़ी और छुरा चलाती है।
संतोषी दुर्गा बताती है कि संतोषी के पिता रतन सिंह इसी कार्य के लिए शासकीय चिकित्सालय नरहरपुर में नौकरी करते थे। किन्तु जब भी पोस्टमार्टम के लिए लाश चीरघर में आता वह शराब के नशे में बेहोश-सा हो जाता। समझाने पर जिद करता कि लाश की चीरफाड़ होशो-हवाश में हो ही नही सकता। बाप की इस लत से परेशान संतोषी ने एक दिन उससे शर्त लगा ली कि बिना नशा किये वह पोस्ट मार्टम कर सकती है। तब बाप ने भी जिद में आकर उसे लाश की चिर-फाड़ सीखा दी संतोषी कहती है कि उसने पहला पोस्ट मार्टम वर्ष 2004 में किशनपुरी ग्राम से पांच दिन पुरानी कब्र खोद कर निकाली गई छत-विक्षत लाश का किया था। शराब के प्रति नफरत और बाप से लगाये शर्त की वजह से लाश का सिर फोड़ते हुए ना तो उसके हाथ कांपे और ना ही बदबू की वजह से वह पीछे हटी। बाप ने बेटी के आगे झुककर शराब तो बंद कर दी पर कुछ ही दिनो के बाद दुनिया से चला गया और यह काम उसके लिए जीवन-यापन की मजबूरी बन गयी। सन्तोषी 14 वर्षो से नरहरपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पोस्टमार्टम का काम कर रही है ।
पोस्टमार्टम कर छह बहनों का लालन-पालन जवाबदारी निभाती है सन्तोषी।
बाप की मृत्यु के बाद संतोषी पर अपनी छह बहनों के लालन-पालन की जवाबदारी आ गई। उसके स्वयं के दो बच्चे है। बेबस जिन्दगी जीने के लिए मजबूर संतोषी दुर्गा 150 रुपये की रोजी में आठ परिवार में आठ लोगों का पेट पालती है.
बता दे कि नरहरपुर तहसील के अमोड़ा और दुधावा के अस्पताल में भी पोस्टमार्टम के लिए स्वीपर नही होने के कारण संतोषी के ही हवाले है। संतोषी अब-तक 600 से अधिक लाश की चीर-फाड़ कर चुकी है।
संतोषी कहती है कि नरहरपुर चिकित्सालय में जीवन दीप योजना के तहत 26 सौ रूपये वेतन पर संविदा में रखा गया है। बाकी दिनो में उसका उपयोग एक नर्स या स्वास्थ्य सहायिका के रूपये होता है, इन 14 वर्षो में उसने अपनी एक बहन की शादी भी है, जबकि शेष सभी की पढाई उसने बंद नही होने दी। अभी हाल ही में एक बहन की और शादी होने वाली है।
संतोषी दुर्गा बताती है कि वर्ष 2004 में ही स्वीपर के पद पर नियुक्त किये जाने का सिफारिश पत्र भी मिला मगर जिले के अधिकारियों ने अब तक मुख्यमंत्री के आदेश को दरकिनार कर दिया।सन्तोषी दुर्गा के घर जब हम पहुंचे तो घरों की दीवारे सन्तोषी को मिले सम्मानों से सजा हुआ था। महिला सशक्तिकरण से लेकर नारी साहस तक सम्मान सन्तोषी को मिला हुआ है। सन्तोषी कहती है कि सम्मान से पेट नही भरता, घर चलाने के लिए कुछ चाहिए रहता है, सन्तोषी आगे बताती है उन्होंने कई मीडिया को अपना इंटरव्यू दिया है अब वाह थक चुकी है , उन्होंने अपना पहला इंटरव्यू कांकेर के पत्रकार अमित चौबे को दिया था, उसके बाद से ही उन्हें कुछ घर चालने के लिए पैसे मिलना शुरू हुए थे इससे पहले वाह सिर्फ सेवा दे रही थी। सन्तोषी के पति और और उनकी छह बहनों को सन्तोषी के ऊपर गर्व है।