तानाशाह से मत डरो – 5

तानाशाह
बचपन में
खाता था मूंगफली
तो गिनता जाता था दाने
और छिलके
लाशों और सिर की गिनती
करने के लिए
आदमी रखे हैं उसने

तानाशाह
बचपन में अकेले में
छिप कर
घंटों बनाता था उंगलियों से
दीवार पर पहाड़ों के चित्र
और डरता था
पकड़ लेंगे पिता और पीट देंगे

तानाशाह
को पसंद था
कि कोई उससे भी बात करे
पर उसके बहुत कम दोस्त थे
तानाशाह ने
इकट्ठे कर लिए हैं
तमाम लोग
जो महज उसकी ही बात करते हैं

तानाशाह
हमेशा से होना चाहता था
साहसी और ताक़तवर
और इस इच्छा ने बनाया
उसे और कमज़ोर
अब तानाशाह
तस्वीरें खिंचाता है
रौब से ऐंठी
फुलाता है छाती, नापे गए इंचों में
दिखना चाहता है अब भी
साहसी और ताक़तवर
कम अज़ कम तस्वीरों में

तानाशाह को
संगीत पसंद था
और नृत्य भी
खाना भी और पकाना भी
सजना संवरना भी
वो ये सब कर लेना चाहता है
किसी भी कीमत पर
अपने देश के सारे संगीत
नृत्य और भोजन की कीमत पर

तानाशाह
डरता था अंधेरे से
उसे लगता था
कि कोई अंधेरे में उसे क़त्ल कर देगा
तानाशाह ने
पूरा राजपथ
जगमगा दिया है
बांट रहा है इतने बिजली के लट्टू
कि वो असली होते अगर
तो धरती करती उसके ही चारों ओर परिक्रमा

तानाशाह
हमारी तरह ही तो है
बस अब वो तानाशाह है
लेकिन अंदर से
हमारे जैसा ही
कायर, कमज़ोर, कुंठित
और रोशनी के लिए
तरसता हुआ
उसे आज भी नहीं पता
कि रोशनी झिर के आती है
तो ही वो रोशनी है
वरना महज चमक है

तानाशाह से
क्यों डरते
हैं आप
कहीं इसलिए तो नहीं
कि आपको भी उस में
अपना ही अक़्स दिखता है
मैं तानाशाह से नहीं डरता
दरअसल करोड़ों लोग हैं
जो उससे नहीं डरते
तानाशाह डरता है
उसे ही डरना चाहिए
ठीक आपकी तरह…

मयंक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!