बंदूकों का दोष नहीं है
हाथ में जिनके हैं बंदूकें
चाहे जिसको मारें, फूंकें
उनका कोई दोष नहीं है
मरे निहत्थे जितने लोग
लगा जिन्हें सरकारी रोग
वे ही सबके सब दोषी थे
बंदूकें सब सरकारी थीं
बंदूकों का दोष नहीं है.
हत्यारों का दोष नहीं है
मुर्दों में ही जोश नहीं है
शौक था उनका शौक में मरे
नेता जी को दोषी कहने-
वालों तुम पर बजर परे.
पूछो दोषी कौन-कौन है?
जिंदा जलने वाला दोषी
रोटी और निवाला दोषी
सरकारी संगीनों द्वारा
मारा जाने वाला दोषी
लूट को लूट कहा है जिसने
ऐसा कहने वाला दोषी
जिसके गुप्तांगों में पत्थर
भरा गया वह महिला दोषी
देशद्रोह में गोली खाया
पांच बरस का बच्चा दोषी
आठ बरस से खटिया पर थे
लूले-लंगड़े चच्चा दोषी
मरा भूख से तड़प-तड़पकर
इसी चैत में कलुआ दोषी
सूखी फसल, लगाकर फांसी
चला गया है ललुआ दोषी
दिल्ली से गुजरात तलक
जो कत्ल हुए हैं वे थे दोषी
भागलपुर से मलियाना तक
मारे गए हजारों दोषी
कब्रों में लाशें दोषी हैं
मुर्दे औ’ कब्रें दोषी हैं
जली हुई रूहें दोषी हैं
कटे हुए सब सर दोषी हैं
नुचे हुए सब पर दोषी हैं
जो दिल्ली की कुर्सी पर है
जो-जो सबसे ताकतवर है
उसका कोई दोष नहीं है
मरे हुए सपनों से पूछो
चले गए अपनों से पूछो
सारा दोष उन्हीं का होगा.
कृष्ण कांत