आदिवासियों के पलायन और शोषण के लिए दोषी है छत्तीसगढ़ सरकार
कमल शुक्ला @ भूमकाल समाचार
किशोर होते ही बस्तर के आदिवासी युवक – युवतियाँ ज्यादातर बोर गाड़ियों या अन्य मजदूरी कम के लिए पलायन कर जातें हैं | उनके साथ जब किसी भी प्रकार का शोषण या अत्याचार होता है तो अधिकाँश पत्रकार और लेखकों का ध्यान इसके मूल कारण की तरफ नहीं जाता | फेश बुक में मेरे मित्र माखन लाल शोरी ने इस विषय पर मेरा भी ध्यान खींचा है |हालाकि इस पर काफी मेहनत और शोध की जरुरत है | पर मेरे विचार से सबसे पहले तो दोष पलायन के कारणों का है , जिसके लिए और कोई नही सरकार की कथित विकास बनाम विनाश कीनीति ही जवाबदार है | कांग्रेस और अब भाजपा दोनों ने सत्ता में रहते केवल जल, जंगल और जमीन को सेठों के पास बेचने को ही विकास बताया है | अब तक के सभा सत्ताधीशों ने अपार प्राकृतिक संपदा को लुटने का ही रास्ता अपनाया और इसी रास्ते ने बस्तर के मूल निवासियों का ना केवल सब-कुछ छीन लिया बल्कि उन्हें इसी से पैदा हुए दावानल ( नक्सलवाद) में झुलसने केलिए मजबूर कर दिया |
किशोर होने पर आदिवासी युवक और युवती पलायन नहीं करें तो उनके पास तीन ही रास्ता है या तो पुलिस की प्रताड़ना से बचने के लिए पुलिस या एसपीओ बन जाए , या अधिकार की लड़ाई के लिए नक्सलियों के साथ तथाकथित युद्ध में शामिल हो जाये या फिर उन्ही शोषकों के यहाँ चाकरी करे जिन्होंने उन का सब कुछ लूट लिया है , आज बस्तर का सबसे बड़ा मुद्दा तो सभी साहित्यकारों और पत्रकारों का यही होना चाहिए | पर ये सभी इन मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए लगातार कोशिश करते आ रहें है | अकेले सलवा जुडूम नाम के सरकार प्रायोजित कार्यक्रम से कम से कम पांच सौ से ज्यादा आदिवासी बिना पोस्टमार्टम के दफन हुए हैं जबकि घोषित मौतों की संख्या भी इससे ज्यादा ही है | कई हजार आदिवासी घर जला दिये गए , अपने देवगुड़ी , गाय-बैल , बकरी , मुर्गे, खेतखार और घरबार छोड़ कर कमसे कम दो लाख से ज्यादा आदिवासी शबरी और गोदावरी के पार उड़ीसा , आन्ध्र और तेलंगाना में भटक रहे हैं | जहाँ उन्हें ना केवल अपनी संस्कृति छोड़नी पड़ेगी बल्कि सरकार से प्राप्त अपने संवैधानिक अधिकारों को भी छोडनी पड़ी है |
सहयोग करने के नाम पर धर्म से जोड़ने वाले कुछ एनजीओ के माध्यम से इनमे से कुछ तो अब हिदू तो लाखों की संख्या में ईसाई बन गए हैं वहीँ कुछ लडकियों ने मस्लिम युवकों से विवाह कर धर्म बदल लिया है | इन सबके के लिए अगर कोई दोषी है तो वह भाजपा की यही सरकार है | नाम लूँ तो सबसे ज्यादा आरएसएस के नीति निर्माताओं सहित रमन सिंह , बृजमोहन अग्रवाल , राजेश मूणत , और सरकार के सभी मंत्री , मरहूम महेंद्र करमा , दिनेश कश्यप , केदार्रकश्यप , राम विचार नेताम , राम सेवक पैकरा और ननकी राम कंवर सहित सारे आदिवासी नेता जो महज अपने स्वार्थ के लिए इनकी हाँ में हाँ मिलाते रहे | इन सब सभी के खिलाफ तो न्यायालय में मुकदमा दर्ज होना ही चाहिए | आप स्वयं महसूस कर रहें हैं कि भाजपा सरकार की आदिवासी नीति और नक्सली उन्मूलन नीति से नक्सलवाद पिछले बारह वर्षों की तुलना में कई गुना बढ़ गयी है | मै हिंसा का विरोधी हूँ पर इस पूरे मामले में एक दुर्दांत पुलिस अधिकारी कल्लू मामा के लिए हजारों आदिवासियों और पुलिस जवानों की ह्त्या के कारक के अपराध में मृत्यु दण्ड तो जरूर मांगूंगा | इन सभी मुद्दों पर एक किताब लिख रहा हूँ , जिसके लिए आपकी मदद की जरुरत भी होगी |