तो क्या सर्व आदिवासी समाज के नेता सरकार और कल्लूरी से डर गए ?
जो हर रोज 24 घंटे आदिवासियों के लिए लड़ने तैयार रहेगा उसे ही आदिवासियों का मुखिया होना चाहिए…
बस्तर का यह पहला आदिवासी आन्दोलन नहीं है जिसे आदिवासी नेताओं की वजह से दिशाहीन होना पड़ा | इससे पहले तमाम आदिवासी संगठनों, राजनैतिक दलों और जनसंगठनों ने मिलकर बस्तर संयुक्त संघर्ष समिति के नाम से एक मंच पर आकर तिरंग-यात्रा करने की घोषणा की थी| यह यात्रा दंतेवाड़ा से गोमपाड़ तक विश्व आदिवासी दिवस के दिन मड़कम हिड़में को न्याय दिलाने के लिए होनी थी| सर्व आदिवासी समाज ने सोनी सोढ़ी और लिंगा राम कोड़ोपी की घोषणा के बाद इस आन्दोलन में शामिल होने की इच्छा जताई थी| लेकिन सर्व आदिवासी समाज के नेताओं ने ऐन मौके पर किनारा कर लिया|
विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर तिरंगा-यात्रा को असफल करने के लिए छत्तीसगढ़ भाजपा सरकार ने कई हथकंडे अपनाए | जिसके तहत विकासखंड स्तर पर सरकारी फंड से भव्य आयोजन भी करवाया गया| इस मौके पर गाँव-गाँव के लोगों को लाने वाहन भी उपलब्ध करवाए गये | सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारियों ने मड़कम हिड़में की न्याय यात्रा के बजाय सरकारी आयोजन की तरफ रुख किया | जिसके कारण इस न्याय यात्रा में पूर्ण तैयारियों के बावजूद विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा|
अब यह दूसरी घटना है, करीब दो माह पहले सोहन पोटाई ने हमारे संवाददाता से साक्षात्कार में यह कहा कि हम छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा आदिवासी आन्दोलन 21 नवम्बर 2016 को करने जा रहे हैं | जिसमें…
“बस्तर में सरकारी आंतकवाद जिस तरह से चरम सीमा में पहुच कर मौत का तांडव मचा रहा है उससे पूरे आदिवासी समुदाय का अस्तित्व, जीवन संकट में पड़ गया जिनसे मुक्ति पाने के लिए सामाजिक रूप से संगठित हो कर प्रजातांत्रिक व्यवस्था में अपनी पीड़ा को व्यक्त करने हेतु दिनांक 21 नवम्बर को बस्तर संभाग के प्रत्येक जिलों के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय व राज्य मार्ग में हजारों की संख्या में सड़कों पर उतर कर एक दिन की आर्थिक नाकेबंदी (चक्का-जाम) किया जायेगा। जिसमें निम्न मांगों को शामिल किया जायेगा।
1. नक्सली उन्मूलन के नाम पर बस्तर में गठित आदिवासी बटालियन भर्ती को रद्द किया जाये।
2. आदिवासी क्षेत्र में लागू 5वीं अनुसूची कानून का कड़ाई से पालन क्रियान्वय किया जाये।
3. भूमि अधिग्रहण प्रकरण में पीड़ित किसानों को शेयरधारी के रूप में उनकी पुर्नवास, व्यवस्थापन किया जाये।
4. बस्तर संभाग के सभी विभागों में तृतीय व चर्तुथ के पदों पर 100 प्रतिशत आदिवासियों की भर्ती हेतु आरक्षण सुनिश्चित किया जाये।
5. पांचवी अनुसूची क्षेत्र में गैर आदिवासियों को दिये जाने वाले आबादी भूमि पट्टा मालिकाना हक को रद्द किया जाये।
6. पूरे बस्तर संभाग को एक अलग बस्तर राज्य बनाया जाये।
7. अभी तक हुए नक्सली मुठभेड़ एवं नक्सली गिरफ्तारी के प्रकरण में केन्द्रीय स्तर पर जांच कमेटी का गठन कर फर्जी मुठभेड़, फर्जी आत्मसमर्पण व फर्जी गिरफ्तार मामले में दोषी अधिकारी कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही किया जाये।“
लेकिन ऐन मौके पर इन नेताओं के सुर बदलने लगे अंत में इस आन्दोलन की दिशा ही बदल दी गई| आज आन्दोलन के समय पोस्टर में आदिवासियों की हत्याओं का मुख्य मुद्दा गायब था, मुद्दा था तो नगरनार इस्पात संयंत्र के निजीकरण का विरोध जिसमें तमाम विपक्षी दल शामिल हुए|
सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारियों के ढुलमुल निर्णय से आदिवासी छात्र संघ से जुड़े युवा छात्र काफी आहत है | छात्र संघ से जुड़े युवा खुलकर सामने नहीं आना चाहते लेकिन कहते हैं कि जब हमारे वरिष्ठ नेता आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ने में असमर्थ है तो उन्हें रिटायरमेंट ले लेना चाहिए| हमारी लड़ाई अब करो या मरो की है एक तरफ आदिवासी भाइयों को नक्सली मार रहे हैं तो दुसरे तरफ पुलिस| ऐसे में हम अपने आन्दोलन की समय सीमा किसी राजनीतिक स्वार्थ के लिए बढायें ये हमारे लिए ठीक नहीं हैं| छात्र संघ से जुड़े युवा छात्र यह भी कह रहे हैं कि जिनको अपनी नौकरी प्यारी है वे लोग आदिवासीयों के नाम पर राजनीति न करें| वे आदिवासी समाज के विभिन्न पदों को त्याग दें और अपनी नौकरी संभाले | जो आदिवासियों के लिए हर रोज 24 घंटे आन्दोलन करने के लिए तैयार रहेगा उसे ही आदिवासी समाज का मुखिया होना चाहिए|
तो ऐसे में प्रश्न उठाना लाजमी है कि क्या सर्व आदिवासी समाज के शीर्ष नेता जिनका सम्बन्ध कहीं न कही भाजपा या कांग्रेस जैसे दलों से रहा है वे केवल आदिवासियों के नाम पर अपनी विलुप्त हो चुकी राजनीति चमकाना चाहते हैं ? क्या उन्हें कल्लूरी और सरकार से भय लगता है ? कहीं कोई बड़ी डील आदिवासी नेताओं ने सरकार से तो नहीं कर ली ? इन सारे सवालों का जवाब आदिवासियों को चुनाव के करीब आते आते नजर आने लगेगा|
इस विषय पर क्या कहते हैं सर्व आदिवासी समाज के नेता…
यह स्टेप बाई स्टेप निर्णय है, प्रदर्शन तो हो ही रहा है, सामाजिक आन्दोलन में कई उतार चढ़ाव होता रहता हैं, परिस्थिति के हिसाब से बदलना पड़ता है, एक बार फैसला कर दिए वो पत्थर की लकीर थोड़ी है जैसे वही होना चाहिए | रायपुर में बहुत सी पार्टियों का यहाँ धरना था इसलिए मैं यहाँ हूँ जगदलपुर में क्या बैनर था वो मैं देखा नहीं हूँ|
अरविन्द नेताम संरक्षक एवं महामंत्री सर्व आदिवासी समाज
एसटी, एससी और ओबीसी के साथ हुए मीटिंग में तीनों वर्ग का समर्थन मिल रहा है | इसलिए आज के आन्दोलन का समय बदल दिए हैं | तीनों मिलकर 11 से 14 के बीच करेंगे |
सोहन पोटाई संरक्षक सर्व आदिवासी समाज
आर्थिक नाकेबंदी के सम्बन्ध में प्रदेश के नेताओं से कोई जानकारी नहीं मिली थी| हो सकता है यहाँ के कार्यक्रम को लेकर लिए निर्णय के कारण वे केंसल कर दिए हों |
प्रकाश ठाकुर सर्व आदिवासी समाज