पहले से अधिक अमानवीय परिस्थियों के विरुद्ध रचनात्मक प्रतिरोध- ‘एक देश बारह दुनिया’
ऐसे समय जब ‘नगरीय नक्सली’ प्रायोजित प्रताड़ना का पर्याय बन चुका है, जहां असहमतियों को कुचलने की प्रक्रिया पहले से कहीं तेज हो रही है और हम पहले से ज्यादा अमानवीय स्थितियों में तो प्रवेश कर रहे हैं, लेकिन बस्तर और देश के दूसरे अदृश्य संकटग्रस्त जगहों पर चर्चा के बहाने भी प्रवेश करने के लिए मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, तब पत्रकार शिरीष खरे ने ऐसे ही छत्तीसगढ़ सहित देश की दर्जन भर जगहों से प्रवेश करते हुए अपनी पुस्तक ‘एक देश बारह दुनिया’ के जरिए अपना रचनात्मक प्रतिरोध दर्ज कराया है.
जब मुख्यधारा की मीडिया में अदृश्य संकटग्रस्त क्षेत्रों की जमीनी सच्चाई बताने वाले रिपोर्ताज लगभग गायब हो गए हैं, तब पिछले दिनों ‘राजपाल एंड सन्स, नई दिल्ली’ से प्रकाशित इस पुस्तक का सम्बन्ध एक बड़ी जनसंख्या को छूते देश के इलाकों से है, जिसमें शिरीष खरे ने विशेषकर गांवों की त्रासदी, उम्मीद और उथल-पुथल की परत-दर-परत पड़ताल की है.
पिछले कुछ वर्षों में हमारे शहरों और दूरदराज के गांवों के बीच भौतिक अवरोध तेजी से मिट रहे हैं, तब एक सामान्य चेतना में गांव और गरीबों के लिए सिकुड़ती जा रही है. ऐसे में बतौर एक ग्रामीण पत्रकार शिरीष अपनी पुस्तक में देश के बारह जगहों के उपेक्षित लोगों की आवाजों को तरहीज देते हैं. यहां लेखक ने सांख्यिकी आंकड़ों के विशाल ढेर में छिपे आम भारतीयों के असली चेहरों पर रोशनी डाली है. पुस्तक में देश के सात राज्यों के कुल बारह रिपोर्ताज शामिल किए गए हैं, जो गए एक-डेढ़ दशक की अवधि में भारत की आत्मा कहे जाने वाले गांवों से जुड़े अनुभवों पर आधारित हैं.
इस दौरान महाराष्ट्र में कोरकू जनजाति और तिरमली व सैय्यद मदारी जैसी घुमन्तु या अर्ध-घुमन्तु समुदाय बहुल क्षेत्रों, मुंबई, सूरत जैसे बड़े शहरों में बहुविस्थापन की मार झेलनी वाली बस्तियों, नर्मदा जैसी बड़ी और सुंदर नदी पर आए नए तरह के संकटों के अलावा छत्तीसगढ़ और यहां के बस्तर, राजस्थान के थार और मराठवाड़ा के संकटग्रस्त गांवों के बारे में विस्तार से विवरण रखे गए हैं. लेखक अपनी प्रस्तावना में लिखते हैं कि उन्होंने अधिकांश पात्र और स्थानों के नाम ज्यों के त्यों रखे हैं.
पुस्तक: एक देश बारह दुनिया
लेखक: शिरीष खरे
प्रकाशक: राजपाल एंड सन्स, नई-दिल्ली
पृष्ठ: 208
मूल्य: 196 (पेपर-बैक)
अमेजॉन पर लिंक: