रैनपुर : किसान सभा द्वारा पंचायत घेराव के बाद सतपंच ने लिया वनाधिकार आवेदन, दी पावती
कोरबा। कोरबा जिले के पाली विकासखंड के रैनपुर ग्राम पंचायत का सुबह से शाम तक 7 घंटे घेराव करने के बाद सरपंच भजनसिंह टेकाम को आदिवासियों के वनाधिकार के आवेदनों को लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। इन आवेदनों पर उसे पावती भी देनी पड़ी है।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार द्वारा वनाधिकार के दावों को तेजी से निपटाने और आदिवासियों को वन भूमि पर अधिकार दिए जाने का दावा तो किया जा रहा है, लेकिन पूरे प्रदेश से यही शिकायतें आ रही हैं कि आदिवासियों के आवेदनों को लिया ही नहीं जा रहा है। उल्टे उन्हें बेदखली का सामना करना पड़ रहा है। यही नजारा आज रैनपुर ग्राम पंचायत में देखने को मिला, जब सरपंच ने आवेदनों को लेने और पावती देने से इंकार कर दिया। इससे गुस्साए सैकड़ों आदिवासी ग्रामीणों ने छत्तीसगढ़ किसान सभा के बैनर पर पंचायत का ही घेराव कर दिया और पंचायत भवन में सरपंच को कैद कर लिया। अपनी मांगों पर अड़े आदिवासियों ने जब रात को भी घेराव जारी रखने की घोषणा की, तब कही जाकर सरपंच ने उनके आवेदनों को लिया और पावती भी दी। पंचायत घेराव का नेतृत्व माकपा के कोरबा जिला सचिव प्रशांत झा, किसान सभा नेता जवाहर कंवर, दीपक साहू, सालिकराम मरकाम, प्रसाद सिंह मरावी, जयसिंह नेटी आदि ने किया।
इस घेराव में शामिल रैनपुर के मुखराम, वेदप्रकाश, चंदर सिंह आदि ने जानकारी दी है कि इसके पूर्व भी वे तीन-चार बार आवेदन कर चुके हैं, लेकिन उन्हें इन आवेदनों की कोई पावती नहीं दी गई और क्या कार्यवाही हुई, आज तक पता नहीं। उल्टे उन्हें जंगल जमीन से बेदखल करने की कोशिश में उनके घरों पर बुलडोज़र चलाये गए हैं, जबकि कई घर प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत पंचायत ने ही बनाकर दिए थे। अब इस जमीन पर गौठान बनाने की मुहिम चल रही है, जबकि इसके पहले गौठान के लिए अन्यत्र भूमि चिन्हित की गई है। उन्होंने बताया कि वे इस भूमि पर पीढ़ियों से बसे है और पिछले कुछ सालों से, पहले भाजपा और अब कांग्रेस राज में, उन्हें बेदखल करने का खेल चल रहा है। उन्होंने कहा कि इसी कारण आज वे अपने आवेदनों की पावती लेने पर अड़े थे और किसान सभा के संघर्ष के कारण वे इसमें सफल भी रहे।
किसान सभा नेता जवाहर कंवर और दीपक साहू ने कहा है कि लड़ाई की तो यह शुरूआत है। जब तक आदिवासियों को उनका वनाधिकार नहीं मिल जाता, तब तक किसान सभा का संघर्ष जारी रहेगा। व्यक्तिगत पट्टों की दावेदारी के बाद अब सामुदायिक वनाधिकार का दावा ठोंकने की भी तैयारी की जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन की आदिवासियों को वनाधिकार देने में कोई दिलचस्पी नहीं है और वास्तव में तो वे इस कानून को निष्प्रभावी करने पर ही तुले हुए हैं। लेकिन इस क्षेत्र के आदिवासियों को संगठित कर उनके वनाधिकार की लड़ाई को आगे बढ़ाया जाएगा।
संजय पराते