राम वन गमन पथ आदिवासियों पर RSS के सांस्कृतिक आक्रमण को धार देती बघेल सरकार
छोटू भाई वसावा
“स्थानीय आदिवासियों का कहना है कि “हमारा एक आंगा देव होता है, जिसकी यात्राओं में कभी राम का जिक्र नहीं हुआ। हमारे गीतों में कभी राम का जिक्र नहीं हुआ। हमारी भाषा बोली सब अलग है, तो भूपेश बघेल सरकार जबरदस्ती राम वन गमन योजना के तहत मंदिर निर्माण क्यों कर रही है?”
सुकमा-कोंटा क्षेत्र के आदिवासियों को अचानक एक दिन पता चलता है कि उनकी पुरखों की चिटपीन माता का घर वास्तव में राम का घर है। एक दिन सरकार के आदेश पर राम वन गमन का बोर्ड लगा दिया गया। दरअसल यह छत्तीसगढ़ में राम के कथित चिन्हों को आदिवासियों के चंगुल से मुक्त कराने का अभियान है। इसके लिए राम वन गमन विकास के नाम पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। पहले यह खेल भाजपा खेल रही थी, अब सत्ता में आने के बाद उदार हिंदुत्व के नाम पर कांग्रेस खेल रही है।
पेनगुड़ी आदिवासी देवों का प्राकृतिक आवास है। यह एक घर (झोपड़ी) होता है, जहां आदिवासियों के देव प्रकृति-चिन्हों के रूप में रहते हैं। आदिवासी समुदाय प्रकृति पूजक है। वे पहाड़, नदी, जंगल पूजते हैं। इन पेनगुड़ियों में किसी देव की मूर्ति नहीं मिलेगी। कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार अब इन पेनगुड़ियों को मंदिरों में बदलने जा रही है।
तब भाजपा की सरकार थी, तो राम को केंद्र में रखकर एक आक्रामक सांप्रदायिकता की नीति पर अमल किया जा रहा था। इसके लिए शोध का पाखंड रचा गया। राम के वन गमन की खोज पूरी की गई। बताया गया कि छत्तीसगढ़ के धुर उत्तर में कोरिया जिले के सीतामढ़ी से लेकर धुर दक्षिण में सुकमा जिले के रामाराम तक ऐसी कोई जगह नहीं है, जो कि राम के चरण-रज से पवित्र ना हुई हो।
संघ के स्वघोषित इतिहासकारों का महान शोध है कि राम के स्थान पर आदिवासी देवों ने कब्जा कर लिया है। अनार्यों के इन देवों से ‘आर्य’ राम को मुक्त कराना है। यह छत्तीसगढ़ में राम के कथित चिन्हों को आदिवासियों के चंगुल से मुक्त कराने का अभियान है। इसके लिए राम वन गमन विकास के नाम पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। पहले यह खेल भाजपा खेल रही थी, अब सत्ता में आने के बाद उदार हिंदुत्व के नाम पर कांग्रेस खेल रही है।
कांग्रेस के उदार हिंदुत्व का दावा है कि वह राम के 51 इतिहास-चिन्हों को आदिवासियों से मुक्त करने जा रही है। इसके लिए छत्तीसगढ़ के 29 जिलों में से 16 जिलों में हिंदुत्व की पताका फहराई जाएगी। कोरिया में 6, सरगुजा में 5, जशपुर में 3, जांजगीर में 4, बिलासपुर में 1, बलौदा बाजार-भाटापारा में 4, महासमुंद में 1, रायपुर में 3, गरियाबंद में 8, धमतरी में 4, कांकेर में 1, कोंडागांव में 2, नारायणपुर में 2, दंतेवाड़ा में 3, बस्तर में 4 और सुकमा में 4 — इस प्रकार आदिवासियों के 51 स्थलों को मंदिरों में बदला जा रहा है।
आदिवासियों की सभ्यता व संस्कृति पर आक्रमण कोई नया नहीं है। वनवासी कल्याण आश्रम के जरिए संघ दशकों से यह काम आदिवासियों को शिक्षित करने के नाम पर कर रहा है। इस अभियान में उन्होंने रामायण का गोंडी व अन्य आदिवासी भाषाओं में अनुवाद कर उसे बांटने का काम किया है। जगह-जगह ‘मानस जागरण’ के कार्यक्रम भी हो रहे हैं। हिंदुओं के त्योहारों को मनाने व उनके देवों को पूजने, हिंदू धर्म की आस्थाओं पर टिके मिथकों को आदिवासी विश्वास में ढालने का काम भी किया जा रहा है। इस आक्रामक अभियान में आदिवासियों के आदि धर्म व उनके प्राकृतिक देवों से जुड़ी मान्यताओं, विश्वासों व मिथकों पर खुलकर हमला किया जा रहा है और जनगणना में आदिवासियों को हिंदू दर्ज करवाने का अभियान चलाया जा रहा है।
कॉरपोरेट पूंजी के हिंदुत्व की राजनीति के साथ गठजोड़ होने के बाद से यह अभियान और ज्यादा आक्रामक हो गया है। इतना आक्रमक कि अब समूची आदिवासी सभ्यता व संस्कृति को लील जाना चाहता है। अपने मुनाफे के लिए इस कारपोरेट पूंजी को आदिवासियों के स्वामित्व वाले जंगल चाहिए, ताकि उसे खोदकर उसके गर्भ में दबे खनिज को निकाल-बेच कर मुनाफा कमा सके। लेकिन बस्तर में टाटा को उल्टे पांव वापस लौटना पड़ा है। सलवा जुडूम अभियान भी आदिवासियों की हिम्मत नहीं तोड़ पाया। जिन जंगलों-गांवों से उसे भगाया गया था, अब वे फिर वापस आकर उस पर काबिज होने लगे हैं। जिन गांव-घरों को उसने जलाया था, उस पर फिर झोपड़ियां उगने लगी है।
आदिवासियों की प्रतिरोधक क्षमता को खत्म करके उन्हें जिंदा मांस के लोथड़ों में तब्दील कर देना चाहते हैं, ताकि कारपोरेट मुनाफे की भट्टी में उन्हें आसानी से झोंका जा सके।
राम वन गमन के खिलाफ पेनगुड़ियों को राम मंदिर में बदलने के खिलाफ आदिवासियों का सांस्कृतिक प्रतिरोध विकसित हो रहा है। 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के सरकारी कार्यक्रम में जब मुख्यमंत्री बघेल आदिवासी विकास की लफ्फाजी मार रहे थे, तभी कांकेर में कांग्रेसी विधायक शिशुपाल शोरी व मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार राजेश तिवारी के पुतले जल रहे थे और मानपुर में भगवा ध्वज का दहन किया जा रहा था। आदिवासियों के इस सांस्कृतिक प्रतिरोध का दमन जिस तरह तब की भाजपा सरकार ने किया था, उसी तरह कांग्रेस भी कर रही है। यही कारपोरेट मुनाफा है, जो पक्ष और भाजपा को आपस में जोड़ रही है और चाहे बोधघाट हो या राम वन गमन, दोनों मुद्दों पर हम निवाला – हम प्याला बना रही हैं।
( छोटू भाई वसावा गुजरात विधान सभा में विधायक हैं )