बसों के न चलने के पीछे का ‘खेल’
प्रफुल्ल ठाकुर
पिछले दो दिनों से इस बात को समझने में लगा था कि मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद दर्जनों बसें खड़ी तो कर दी गई हैं, मगर उन्हें भेजा क्यों नहीं जा रहा ? इस दो दिनों में आरटीओ और फ़ूड विभाग के जिन आधिकारिक सूत्रों से बातचीत हुई, उससे पता चला कि इसके पीछे बहुत बड़ा खेल है।
सूत्रों की मानें तो जिला प्रशासन ने आरटीओ को बोलकर प्राइवेट ऑपरेटर्स की बसें लगाई हैं। बताया जा रहा है कि जिला प्रसाशन के बड़े अधिकारी अपने मातहत छोटे अधिकारियों के जरिये आरटीओ और फ़ूड विभाग के अधिकारियों के माध्यम से बसों में खुद ही डीजल डलवाने बस ऑपरेटर्स पर दबाव डाल रहे हैं। मतलब उनकी बसों का किराया तो मिलना नहीं है, ऊपर से डीजल डलवाने भी कहा जा रहा है।
मतलब बस का किराया और डीजल का पैसा जिला प्रशासन बस ऑपरेटर्स को नहीं देगा। लेकिन बताया जा है कि इसका पूरा बिल सरकार को सबमिट होगा और इसका पैसा जिला प्रसाशन की जेब में जायेगा। अगर कोई बस ऑपरेटर हो-हल्ला किया तो लॉकडाउन के बाद चलना तो उसे रोड पर ही है, बोलकर धमकाया जा रहा है। बसें इसलिए नहीं चलाई जा रही हैं कि बस ऑपरेटर्स को ज्यादा खर्च न करना पड़े। आख़िर बिल तो उन्हीं का लगेगा न। इसलिये उनका भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
बताया जा रहा है कि खड़ी बसों की गिनती भी चल रही बस में की जा रही है। उसके डीजल का बिल भी बकायदा जमा हो रहा है। हजारों बेबश- लाचार मजदूर सड़क पर परेशान हैं और अधिकारी, जेब भरने में लगे हैं। गजब बेशर्म अधिकारी हैं भाई। ये पैसों से नहीं, मजदूरों की हाय से अपनी तिजोरी भर रहे हैं। सब निकलेगा एक दिन। देख लेना।।
मुख्यमंत्री जी देखिए आपके अधिकारी कौन सा खेल खेल रहे हैं ? ये सिर्फ जनता के साथ नहीं, आपके साथ भी खेल रहे हैं।
प्रफुल्ल ठाकुर