कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई आओ कहीं शराब पिएं, रात हो गई
सुभाष मिश्र
लंबे अरसे के बाद आज से सरकारी दफ्तरों, बाजार और उद्योग-धंधों, सड़कों पर रौनक लौटेगी। सबसे ज्यादा रौनक होगी, शराब दुकानों में। शराबी सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए सुबह 8 बजे से शराब ले सकेंगे। जो लोग भीड़भाड़ से, लाईन में लगने से घबराते हैं, उनके लिए इस बार होम डिलेवरी की विशेष व्यवस्था होगी ताकि कोरोना वायरस के संक्रमण से वे बच सके। शराब पीने वाले तो बार-बार यही कहते हैं कि सबसे अच्छा सेनेटाईजर वो होता है जिसमें 80 प्रतिशत अल्कोहल होता है। शराब ही कोरोना को मार सकती है। अब आज सुबह से कोरोना की खैर नही, उसका मरना तय है। देशव्यापी तालाबंदी के दौरान तीसरे चरण में केन्द्र सरकार द्वारा दी गई छूट के अनुसार 4 मई से ग्रीन और आरेंज जोन और रेड जोन के कंटेनमेंट से बाहर के इलाके में शराब की दुकानें खोली जा सकेंगी। छत्तीसगढ़ में भी आज सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे शराब दुकानें खुल जाएंगी।
हमारे आदि ईश्वर द्वारा प्रदत्त और सेवन किया जाने वाला सोमरस बहुत दिनों बाद लोगों को नसीब होग । सरकार ने तीसरे चरण की तालाबंदी के दौरान जिन जरूरी चीजों को चालू करने की इजाजत दी है, उसमें मदिरालय भी हैं। एक महीने से ज़्यादा हो गया, बहुत से लोगों को मदिरा दुकान जाये हुए। आज जैसे ही दुकान के पट खुलेंगे, पीने वालों का रैला उमड़ पड़ेगा। मदिरालय में सोशल और फिजिकल डिस्टेंसिंग के बहुत ज़्यादा मायने नहीं होते। यही वो जगह हैं जहां आकर सारी दूरियां खत्म हो जाती हैं। हरिवंशराय बच्चन की मधुशाला में इसे बहुत अच्छी तरह से व्याख्यायित किया है।
दुत्कारा मस्जिद ने मुझको, कहकर है पीने वाला
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने, देख हथेली पर प्याला
कहां ठिकाना मिलता जग में, भला अभागे काफिर को
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि, अपना लेती मधुशाला
दोनों रहते एक न जब तक, मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर, मेल कराती मधुशाला!
अभी मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारे सभी जगह पुजारियों द्वारा पूजा—अर्चना हो रही है पर वहां पर भक्तों का जाना मना है। बहुत सारे भक्तगण जो दूध पीते हैं और शराब से नफरत करते हैं, उन्हें सरकार के उदारवादी निर्णय से नाराजी हो सकती है। अब सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए पीने वाले मधुशाला में जा सकते हैं, अपने पसंद का ब्रांड ले सकते हैं। श्रद्धालुओं को अभी अपने-अपने पूजा घर जाने की इजाजत नहीं है। भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं है, थोड़े दिन में भगवान, अल्लाह सबको बुलाएंगे। शराब पूरी दुनिया में पी जाती है। हर मौक़े पर, चाहे वो खुशी का हो, ग़म का हो, उसे पीना जरूरी है। शादियों की रौनक़, नागिन डांस और बहुत सारी मस्ती खत्म हो जाये, यदि शराब ना हो। बहुत लोगों में शराब पीने के बाद ही ‘कान्फिडेंश आता है। जितनी यारी हम प्याला हम निवाला में होती है, उतनी दूसरों में नहीं।
हमें अंग्रेजों की बहुत सी चीजें पसंद हैं, उसमें एक है अंग्रेजी शराब। शराब जितनी पुरानी होती है, सिंगल माल्ट की होती है, उतनी मंहगी मिलती है। शराब के स्तर से आदमी का स्तर जाना जाता है। शराब यदि बुरी होती तो हमारी मिलिट्री कैंटिन में हमारे सैनिकों को कन्सेशन में क्यों दी जाती? एलिट क्लास के लिए देश की हर बड़ी होटल, क्लब में बार नहीं खोले जाते, यदि शराब बुरी होती तो। शराब सरकार के रेवेन्यू का बहुत बड़ा जरिया है। दुनिया के शायर, कवि, लेखकों ने शराब को लेकर बहुत कुछ लिखा है। सबसे ज़्यादा मिर्जा ग़ालिब का लिखा दोहराया जाता है:
जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा न हो।
साहिर लुधियानी ने भी कहा है : बे पिए ही शराब से नफरत, ये जलालत नहीं तो फिर क्या है।
केन्द्र सरकार द्वारा दी गई शराब बिक्री की छूट पर सुप्रसिद्ध फिल्म लेखक, शायर, चिंतक जावेद अख्तर ने आपत्ति दर्ज करते हुए कहा है कि लॉकडाउन के बीच शराब की दुकानें खोलने का अंजाम बर्बादी होगा। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कहा है कि जब छत्तीसगढ़ की अधिकांश महिलाएं शराब दुकाने खोलने के खिलाफ हैं तो फिर दुकानें खोलने की बात क्यों हो रही है? जोगी जी सक्रिय राजनीति में हैं। छत्तीसगढ़ की स्थापना के समय वर्ष 2000 में शराब बिक्री से मिलने वाला राजस्व जहां सौ करोड़ रूपये था, आज बढ़कर पांच हजार करोड़ रूपये से अधिक हो गया है। वर्ष 2017 से सरकार अपनी दुकानों से शराब की बिक्री कर रही है ताकि ठेकेदारी प्रथा के समय गांव-गांव में कोचियों के माध्यम से बेची जा रही शराब की अवैध बिक्री पर रोक लग सके।
जिस तरह शराब पीने के लिए शराबी छटपटा रहे हैं, वैसे ही सरकार बिक्री के लिए। कोरोना कालखंड में जब राजस्व के सारे स्रोत बंद हो गए हैं तो सबसे बड़े स्रोत को कैसे छोड़ दें? सरकार और सरकार से जुड़े बहुत सारे लोगों को शराब बिक्री से फायदा होता है। कई राज्यों में तो ‘शराब है तो सरकार है’ यह पंचलाईन है। हमारे प्रदेश में भी शराब कारोबारियों से राजनीतिज्ञों की गलबहियां किसी से छिपी नहीं है। बहुत सारे सरकारी लोग शराब इसलिए भी पीते हैं कि उन्हें यह सरकारी काम लगता है। उन्हें सरकार के राजस्व की चिंता है। वे किसी भी कीमत पर सरकार को राजस्व की क्षति नहीं पहुंचाना चाहते हैं।
शराब बिक्री के पक्ष में अपनी दलील देते हुए, नशों की लत से सबसे ज्यादा परेशान ‘उड़ता पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरीन्द्रर सिंह ने पिछले लॉकडाउन के समय ही बहुत ही तार्किक तरीके से शराब दुकानें खोलने की अनुमति देने की मांग करते हुए कहा था कि शराब तो बंद बोतल में होती है, इससे कैसे कोरोना का इंफेक्शन फैलेगा। हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने हरियाणा में पूर्व में हुई शराब बंदी का हवाला देते हुए कहा कि बंशीलाल सरकार के समय 1995 से 1999 तक जो शराबबंदी की गई थी, उस समय बड़े पैमाने पर अवैध और जहरीली शराब की बिक्री से लोगों की सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ा था। हरियाणा में नकली शराब का माफिया तंत्र खड़ा हो गया था जिससे सरकार को रेवेन्यु का और जनता की सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ा था।
लोगों की सेहत के साथ नकली जहरीली और अवैध शराब बिक्री का हवाला देकर दबेस्वर में ही सही, अधिकांश सरकार यही चाहती है कि शराब दुकाने खुलें और मोदी जी ने उदारता का परिचय देते हुए शराब दुकानें खोलने की अनुमति दे दी। वे जनभावना को बखूबी समझते हैं, यही वजह है कि जब वे कहते हैं तो लोग ताली बजाते, थाली बजाते, दीये जलाते हैं। शराब बिक्री, सरकार और उससे जुड़े नेता और अधिकारियों के लिए आय का बड़ा जरिया होती है। अभी गुजरात, बिहार में शराबबंदी है। गुजरात में बड़े पैमाने पर अवैध रूप से शराब बिक्री से कोई इंकार नहीं कर सकता। शनिवार, रविवार को गुजरात से लगे दमनदीव में शराब पीने के लिए लगने वाले गुजराती मेले को देखकर ये आसानी से समझा जा सकता है कि बापू के राज्य के लोगों की आदत छुड़ाना कठिन है।
बिहार में भी नकली और अवैध शराब की समानांतर इंडस्ट्रीज खड़ी हो रही है। नेपाल से लेकर छत्तीसगढ़ बंगाल से लेकर उत्तर प्रदेश बॉर्डर से शराब की सप्लाई जारी है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी जनजाति के लोगों को अपने उपयोग के लिए पांच लीटर शराब बनाने की छूट है। लॉकडाउन के दौरान गांव-गांव में अवैध रूप से महुए की शराब बनाने की सूचना है। धीरे-धीरे गांवों में अवैध शराब बनाने वालों का एक माफिया तैयार हो रहा है जिससे सरकार और ग्रामीणों क्षेत्रों को नुकसान है। हाल ही में कई जगहों से महुए से भरे ट्रक पकड़ाए हैं। लॉकडाउन’ के दौरान भी पीने के शौकीन लोगों को सरकारी रेट से चार गुना रेट पर शराब मिलती रही है। सवाल यह भी है कि यह शराब कहां से आई और पुलिस की तमाम चौकसी, निगरानी के बावजूद लॉकडाउन में इसकी बिक्री कैसे हुई?
रायपुर में दो शराब दुकानों में ताले तोड़कर शराब की चोरी भी हुई। ये सही कि शराबबंदी और बिक्री का सबसे ज्यादा विरोध महिलाएं करती हैं। महिलाओं का विरोध जायज है क्योंकि महिलाएं ही सबसे ज्यादा शारीरिक, मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना की शिकार होती हैं। समाज के गरीब और कमजोर तबके में शराब का चलन बहुत ज्यादा है। यहां के पुरूष शराब पीकर महिलाओं के साथ मारपीट करते हैं। घर का सामान बेच देते हैं। कोरोना कालखंड में सरकार और समाजसेवी संस्थाओं द्वारा दिये गए सूखे अनाज और मदद की सामग्री बेचकर अवैध रूप से बिक रही शराब अन्य नशे की सामग्री को पीने की शिकायतें कई जगह से मिली हैं।
पूर्ण शराबबंदी और शराबबिक्री की निरंतर जारी बहस के बीच यह सही है कि शराब भी एक पेय पदार्थ है, जैसा कि अन्य पेय पदार्थ है. चूंकि इससे नशा आता है इसीलिए इसके पीने को अच्छा नहीं समझा जाता है। मदिरापान सभी देशों में सभी कालों में प्रचलित रहा है। हमारे समय में शराब पीने को सामाजिक बुराई के रूप में देखा जाता है क्योंकि मादक द्रव्य का पान एवं अनैतिकता व्यवहार का अपराध का सीधा संबंध स्थापित किया जाता है। यह बहुत हद तक वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में सही भी है। लोगों का तर्क है कि शराब को पूर्ण रूप से बंद नहीं किया जाना चाहिए बल्कि सही प्रकार से इसका विनिमय किया जाना चाहिए क्योंकि आदतन शराबी, कच्ची शराब या अन्य नशे की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान अवैध शराब के निर्माण, अवैध विक्रय तस्करी के मामले बढ़े हैं। अन्य राज्यों से आसानी से छत्तीसगढ़ में शराब, तस्करी के माध्यम से पहुंच रही है।
वर्तमान में शासन के पास नशाबंदी, शराबबंदी के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। ना ही आदतन व्यसनी व्यक्ति के पुर्नवास की ही कोई व्यवस्था, ना ही ढंग के नशा मुक्ति केन्द्र ही है। आदिवासी क्षेत्रों में भी जहां रीति-रिवाज, संस्कृति में शराब का प्रचलन है, वहां भी शराब सेवन के कारण बहुत सी बुराईयों के साथ लोगों का जीवनस्तर कम औसत दर्जे का है। यदि सरकार सही में लोगों के बीच शराब का सेवन कम करना चाहती है तो उसे शराब के व्यवसाय को इस प्रकार ‘रेगुलाईज करना चाहिए कि यह जनता में व्यसन का रूप न ले। बहरहाल आज की शाम तो बहुत से लोग निदा फाजली की तरह यही कहते मिलेंगे :
कुछ भी बचा न कहने को, हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएं, रात हो गई.
सुभाष मिश्रा जी दैनिक आज की जनधारा के सम्पादक है