भारत को कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए तैयारी कैसे करनी चाहिए ?
भारत कोविड-19 पैंडेमिक की सबसे ख़राब स्थिति से बच निकला है। अप्रैल 2020 के अन्त तक तैंतीस हज़ार मामलों और एक हज़ार सत्तर मौतों की पुष्टि हुई है। पर ज्यों देश लॉकडाउन में ढील देने की ओर अग्रिम सप्ताहों में अग्रसर है , यह समझना महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि ( क्या और ) किस तरह से जन-स्वास्थ्य-तन्त्र दूसरी कोविड-लहर के लिए स्वयं को तैयार रख सकेगा।
कोविड-19 की पहली लहर से सीखे गये कुछ पाठ भविष्य की योजनाओं को गढ़ने में महत्त्वपूर्ण रहेंगे।
शुरू से समझते हैं। भारत ने भौतिक दूरी बनाने की जो रणनीति जल्दी शुरू कर दी , उसने सकारात्मक परिणाम दिये और आपदा को नियन्त्रित स्वरूप में रखा जा सका। सम्पूर्ण लॉकडाउन , मामलों का आयसोलेशन और संक्रमित लोगों के सम्पर्क में आये लोगों ( कॉंटैक्टों ) को क्वॉरन्टाइन करना पिछले पाँच सप्ताह में सफल रहा है। इन उठाये गये क़दमों से लोगों में जागरूकता भी बढ़ी है और लोग खाँसी-सम्बन्धी शिष्टाचार और स्वच्छता के प्रति सजग हो गये हैं , जिसका देश को आगे लाभ अवश्य होगा।
सांख्यिकी के अनुसार इन उठाये गये क़दमों के कारण कर्व को चपटा रखने ( फ्लैटनिंग दि कर्व ) में और कोविड-19 के फैलाव को न्यूनतम रखने में मदद मिली है। यद्यपि संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते गये हैं , स्थिति सन्तुलित बनी हुई है। भारत के स्वास्थ्य व परिवार-कल्याण-मन्त्रालय के अनुसार संक्रमण की वृद्धि लगभग रैखिक ही रही है , घातीय नहीं। हालांकि भारत में कोविड-संक्रमण की जाँच पर्याप्त नहीं की गयी है , जिससे सही आँकड़े प्राप्त किये जा सकें।
भारत में मृत्यु-दर कम रही है , इसके अनेक कारक सम्भावित हैं। दस लाख में एक मृत्यु , जहाँ स्पेन में 416 , इटली में 316 और यूके में 215 का आँकड़ा सामने है। हमारा देश युवा है , यह एक वजह है। कोविड-19 में मृत्यु का जोखिम 60 वर्ष के ऊपर के लोगों में अधिक है : भारत में केवल 3.4 % प्रतिशत जनसंख्या 70 की उम्र के ऊपर है। ( इटली में 16 % लोग 70 की उम्र के ऊपर थे। ) अन्य पिछले कोरोनावायरसों के कारण शरीर में बनी एन्टीबॉडियों के कारण भी कुछ रक्षण प्राप्त हुआ है , जिससे कोविड-19 लक्षणहीन अथवा मामूली लक्षणों के साथ देखने को मिला है। लेकिन अभी और व्यापक-विस्तृत शोध की ज़रूरत बनी हुई है।
1.3 बिलियन की आबादी वाले देश में यह समय ढीला पड़ने का नहीं है। महामारी से आगे चलते रहना है और दूसरी आशंकित लहर की तैयारी पहले से करनी है। भारत को त्रिस्तरीय तैयारी रखनी है : परिवार , समाज और अस्पताल के स्तर पर।
परिवार के स्तर पर सबसे अधिक चपेट में आने वाले की रक्षा सबसे अधिक करनी है। 60 से ऊपर उम्र वालों की और उनकी जो बीमारियों से ग्रस्त हैं अथवा जो छोटे बच्चे हैं। यह ज़िम्मेदारी परिवारों को निभानी होगी : यह रिवर्स क्वॉरन्टाइन है , जिसमें इन लोगों को घरों में नज़रबन्द रखना है। इन्हें बाहर नहीं निकलने देना है , आगन्तुकों की संख्या कम-से-कम रखनी है और भौतिक दूरी बनाये रखने पर ज़ोर देना है।
समाज के स्तर पर लॉकडाउन को चरणबद्ध ढंग से प्लानिंग के अनुसार हटाना चाहिए , ताकि भारत के निर्धनतम का जीविकोपार्जन सुनिश्चित किया जा सके जो अभी मानवीय विपदा से गुज़र रहा है। सरकार को कोविड-जाँच बढ़ानी चाहिए ताकि महामारी की वृद्धि की सही स्थिति लॉकडाउन उठाने के बाद जानी जा सके। प्रशासकों को जनता को लगातार हर स्तर पर सशक्त स्वास्थ्य-सन्देश देते रहना पड़ेगा। व्यक्तिगत स्वच्छता के उपाय जैसे हाथ धोना , अकारण आँखें-नाक-मुँह न छूना और खाँसने-छींकने-सम्बन्धी शिष्टाचार की शिक्षा देनी पड़ेगी। हॉटस्पॉट-इलाक़ों में सरकार को सामाजिक दूरी बनाये रखने और आयसोलेशन को प्रोत्साहित करना और बड़े जनसमूहों के न होने देने पर ध्यान देना पड़ेगा।
अस्पताल के स्तर पर संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए क़दम उठाने पड़ेंगे। अस्पताल में प्रवेश के समय ट्रायज , जाँच अधिक आसानी से करना , मरीज़ों को आयसोलेट करके समूह बनाना ( विशेषकर उन्हें जो अन्य रोगों से ग्रस्त हैं ) , स्वास्थ्यकर्मियों को पीपीई ( पर्स्नल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट ) मुहैया कराना और वेन्टीलेटरीय व अन्य जीवनरक्षक सुविधाएँ उन्हें उपलब्ध कराना , जिनके बच सकने की उम्मीद अधिक है — ऐसे ही महत्त्वपूर्ण क़दम हैं।
हम कोविड-19 रोगियों के उपचार और स्वास्थ्य-कर्मियों के रक्षण पर फ़ोकस करने में लगे हैं , ऐसे में अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों का इलाज चुनौती बन गया है। अस्पतालों में पूरी या अधूरी तरह से सेवाओं को रोके रखना अनेक लोगों के लिए मृत्युकारी हो सकता है। टेलीमेडिसिन या सचल स्वास्थ्य-सेवा के द्वारा घर-बैठे मरीज़ों का इलाज के तरीके 1.3 बिलियन लोगों के लिए पर्याप्त साबित नहीं होंगे।
पैंडेमिक को बांधने के लिए भारत के पास अनेक खूबियाँ हैं। उन्नत फार्माकोलॉजीय दक्षता , निर्माण-क्षमताएँ और सरकार जो तेज़ी से शोध को प्रोत्साहित कर रही है ताकि फ़ास्ट-ट्रैक करके कम क़ीमत वाली जाँच व टीकों को बनाया जा सके — इनमें शामिल हैं। भारत अनेक अनुभवी टीका-निर्माताओं का देश है : इनमें से कई कोरोनावायरस का टीका बनाने में लगे हुए हैं। अनेक क्लीनिकल ट्रायल विभिन्न इलाजों पर चल रहे हैं , इनमें कॉन्वैलेसेन्ट प्लाज़्मा-थेरेपी भी शामिल है।
किन्तु ये सभी आवश्यक और प्रभावशाली प्रयास बिना सहयोग और सामंजस्य के चल न सकेंगे। मानकीकृत उपचार-प्रोटोकॉल और निर्णयों और एविडेंस-आधारित-उपचार की गाइडलाइन का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाना बहुत ही ज़्यादा आवश्यक हो गया है।
तीस देशों के सत्तर संस्थानों के वैज्ञानिकों , डॉक्टरों , फंड-प्रदाताओं और नीतिनिर्धारकों ने कोविड -19 क्लीनिकल रिसर्च कोअलीशन का अप्रैल 2020 में गठन किया है। यह कोअलीशन कम व मध्यम आय वाले देशों में तेज़ी से उच्चस्तरीय क्लीनिकल रिसर्च लॉन्च करने और रोकथाम-निदान-उपचार-सम्बन्धी उत्तर खोजने का काम करेगा। इस कोअलीशन ने वेब-आधारित शोधकों के स्रोतों को साझा करने , प्रोटोकॉलों को गढ़ने और तेज़ी से फंडिंग , संसाधन व तकनीकी दक्षता ढूँढने के साथ बाधाओं और नियमनों से पार पाने पर काफ़ी काम किया है।
ऐसा सहयोग ज़रूरी है। यह सरकार को आवश्यक आँकड़े उपलब्ध कराकर निर्णय लेने में भूमिका निभाएगा कि किस तरह तेज़ी से पैंडेमिक की अगली लहर से निबटा जाए। वैज्ञानिक शोधों के मामले में सरकार को ऐसे जन व निजी सहयोगों को बढ़ावा देना चाहिए , निवेश बढ़ाना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि वैज्ञानिक प्रयासों का लाभ सभी को मिल सके।
परिवार-समाज-अस्पताल के स्तरों पर किये गये ऐसे साझे प्रयासों से ही भारत इस आपदा से जूझते हुए न्यूनतम कष्टों को झेलकर निकल सकेगा।
( —- जॉर्ज एम. वर्गीज़ क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज , वेल्लोर के संक्रामक रोग-विभाग के अध्यक्ष हैं और सुमन रिजाल ड्रग्स फ़ॉर नेग्लेक्टेड डिज़ीज़ेज़ इनिशियेटिव की निदेशक हैं। यह लेख इन्होंने नेचर-इण्डिया के लिए लिखा है। )
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