इस बार कोई भी जुमला, एक्टिविटी, सलाह बची नहीं थी, इसलिए सीधे लॉक डाउन बढ़ा दिया , उल्टी गिनती शुरू
सौमित्र राय
गृह मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि दोपहर में मोदीजी जब कैबिनेट से चर्चा कर रहे थे तो उनके चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें थीं।
रघुराम राजन ने पिछले दिनों क्या कहा था? बिना रोडमैप के लॉक डाउन बढ़ाना खुदकुशी होगा।
लेकिन मोदीजी की एक बुरी आदत है। वे सारी ताक़त अपने हाथ रखना तो चाहते हैं, पर बुरे नतीज़े की जिम्मेदारी लेना नहीं।
राज्यों पर ठीकरा फोड़ना अब केंद्र की आदत सी हो रही है।
मोदीजी को क्या करना था?
उन्हें जीडीपी का कम से कम 5% यानी 10 लाख करोड़ की राहत छोटे, मझोले उद्योगों को देनी थी।
अब भी अगर ये नहीं दी गई तो आप देश की इकॉनमी के लिए अभी से मर्सिया पढ़ सकते हैं।
राहत का ऐलान करने में देरी क्यों? साफ दिख रहा है कि मोदीजी कोई रोडमैप बना नहीं पाए हैं। पैसा कहां से आएगा, सबसे बर्फ सवाल तो यही है।
लेकिन अगर वे चाहें तो 10 में से 7 लाख करोड़ वे आसानी से जुटा सकते हैं। बैंकों के पास 7 लाख करोड़ की लिक्विडिटी बेकार पड़ी है। लॉक डाउन में 75% व्यापार बंद है। इस लिक्विडिटी का उपयोग हो सकता है।
बाकी के 3 लाख करोड़ जुटाना RBI के लिए कोई बड़ी बात नहीं।
इससे क्या होगा?
भारत में 43.4 करोड़ कामगार हैं। 6.7 करोड़ छोटे और मझोले उद्योग हैं। करीब 97% उद्योगों में 10 या इससे कम कर्मचारी हैं।
असंगठित क्षेत्र के 85% उद्योग एक व्यक्ति के स्वामित्व में है। इनमें भी 70% का सरकारी दफ्तरों में कोई रिकॉर्ड नहीं है।
असंगठित क्षेत्र की 67% इकाइयां सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हैं।
देश में 2.80 लाख ऐसी छोटी इकाईयां भी हैं, जो बड़े उद्योगों को सप्लाई करती हैं। इनके अलावा 5600 निर्माण इकाईयां भी हैं।
इन्हें राहत की सख़्त ज़रूरत है। मोदीजी के नोटबन्दी के कथित मास्टरस्ट्रोक से टूटी इनकी कमर जुड़ भी नहीं पाई थी कि मोदीजी ने फिर लॉक डाउन की लात मार दी।
दूसरा है होटल, एयरलाइन इंडस्ट्री। इन्हें 1% की राहत मिलने पर ये 80 लाख नौकरियां पैदा करते हैं।
इसी तरह कंस्ट्रक्शन में 1% की राहत 50 लाख, लोजिस्टिक्स 11 लाख, मैन्युफैक्चरिंग करीब 4 लाख और रिटेल साढ़े 4 लाख नौकरियां पैदा कर सकता है।
मोदीजी और उनके मत्रिमंडल के नगीने लॉक डाउन को मैनेज करने में फेल हो चुके हैं।
मुद्रा लोन जैसी बैंक और माइक्रो फाइनेंस योजनाओं को नए सिरे से डिज़ाइन करने की ज़रूरत है, जो नहीं हो रहा है। नतीज़ा मुद्रा लोन में भी अब NPA दिखने लगा है।
बहरहाल, बिना राहत पैकेज के गृह मंत्रालय के लॉक डाउन बढ़ाने के आज के ऐलान ने इंडिया इंक, यानी कॉर्पोरेट को बेहद निराश किया होगा।
लुट्येन्स जोन के कई बड़े राजनीतिक पत्रकार मित्र और बीजेपी के भीतर भी नेता यह मानते हैं कि ये निराशा 2014 से पहले UPA2 के समय की निराशा से भी गहरी है।
यकीन मानिए, इस सरकार की उल्टी गिनती आज से शुरू हो चुकी है।
सौमित्र राय