पूरे प्रदेश में किसान-आदिवासी सड़कों पर उतरे, गांवबंदी से 2000 गांव प्रभावित, धमतरी में 1000 लोगों ने दी गिरफ्तारियां, नागरिकता कानून भी बना मुद्दा
◆ अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, भूमि और वन अधिकार आंदोलन तथा जन एकता जन अधिकार आंदोलन सहित अनेक साझे मंचों से जुड़े देश के सैकड़ों संगठनों के आह्वान पर छत्तीसगढ़ में एकजुट हुए किसानों, आदिवासियों और दलितों के संगठनों ने केंद्र की मोदी और राज्य की बघेल सरकार की किसान और कृषि विरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदेश में जबरदस्त कार्यवाहियां की है। धमतरी में लगभग 1000 मजदूरों और आदिवासी किसानों ने अपनी गिरफ्तारियां दर्ज कराई है। किसान संगठनों ने दावा किया कि उनके आह्वान पर जहां 1000 से ज्यादा गांवों के किसान सड़कों पर उतरे हैं, वहीं गांवबंदी से 2000 से ज्यादा गांव प्रभावित हुए हैं। अधिकांश स्थानों पर किसानों ने असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के साथ मिलकर प्रदर्शन किए है। इस आंदोलन के दौरान खेती-किसानी के मुद्दों के साथ ही नागरिकता कानून और एनआरसी प्रक्रिया को वापस लेने का मुद्दा भी छाया रहा। किसान आंदोलन के नेताओं ने इसे राज्य की गरीब जनता और आदिवासी-दलितों के हितों के खिलाफ बताया, जिनके पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कोई कागजी पुर्जा नहीं है।
◆ छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रांतीय अध्यक्ष संजय पराते और किसान संगठनों के साझे मोर्चे से जुड़े विजय भाई ने जानकारी दी कि आज की हड़ताल में प्रदेश में सबसे बड़ी कार्यवाही धमतरी में हुई, जहां असंगठित क्षेत्र से जुड़े मजदूरों के साथ सैकड़ों आदिवासियों और किसानों ने अपनी गिरफ्तारियां दी। इसका नेतृत्व छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और सीटू नेता समीर कुरैशी ने किया।
◆ राजनांदगांव, अभनपुर, अम्बिकापुर, रायगढ़ में भी विशाल मजदूर-किसान रैलियां निकाली गई और उन्होंने कलेक्टर को ज्ञापन दिया। दुर्ग में सैकड़ों किसानों ने गांधी प्रतिमा पर छग प्रगतिशील किसान संगठन के आई के वर्मा और राजकुमार गुप्ता के नेतृत्व में धरना दिया। रायपुर जिले के अभनपुर में क्रांतिकारी किसान सभा के तेजराम विद्रोही और सौरा यादव के नेतृत्व में धरना दिया गया। रायपुर के तिल्दा ब्लॉक में बंगोली धान खरीदी केंद्र पर, सरगुजा जिले के सखौली और लुण्ड्रा जनपद कार्यालय पर, सूरजपुर जिले के कल्याणपुर और पलमा में, कोरबा में कलेक्टोरेट पर, चांपा में एसडीएम कार्यालय पर, महासमुंद में, रायगढ़ के सरिया में भी विशाल किसान धरने आयोजित किये गए। इसके अलावा आरंग सहित दसियों जगहों पर प्रशासन को ज्ञापन सौंपे गए है। इन जगजों पर आंदोलन का नेतृत्व जिला किसान संघ के सुदेश टीकम, बाल सिंह, ऋषि गुप्ता, सुरेंद्र लाल सिंह, कृष्णकुमार, सुखरंजन नंदी, राकेश चौहान, एन के कश्यप, पीयर सिंह, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ल, राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति के पारसनाथ साहू, एस आर नेताम, दलित-आदिवासी मंच की राजिम केतवास, नंद किशोर बिस्वाल, सोहन पटेल
आदि ने नेतृत्व किया।
◆ उन्होंने बताया कि 2000 से ज्यादा गांव गांवबंदी से प्रभावित हुए हैं, जहां किसानों और ग्रामीण लघु व्यवसायियों ने अपना कामकाज बंद रखकर अपने कृषि उत्पादों को शहरों में ले जाकर बेचने का काम नहीं किया। धमतरी और अभनपुर की कृषि उपज मंडियां पूरी तरह बंद रही, तो 50 से अधिक मंडियों में आवक रोज की तुलना में बहुत कम रही।
◆ किसान नेताओं ने बताया कि उनका ग्रामीण बंद मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ तो था ही, राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ भी था। उनकी मुख्य मांगों में मोदी सरकार द्वारा खेती और कृषि उत्पादन तथा विपणन में देशी-विदेशी कारपोरेट कंपनियों की घुसपैठ का विरोध, किसान आत्महत्याओं की जिम्मेदार नीतियों की वापसी, खाद-बीज-कीटनाशकों के क्षेत्र में मिलावट, मुनाफाखोरी और ठगी तथा उपज के लाभकारी दामों से जुडी स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर अमल के साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य सरकार से किसानों को मासिक पेंशन देने, कानून बनाकर किसानों को कर्जमुक्त करने, पिछले दो वर्षों का बकाया बोनस देने और धान के काटे गए रकबे को पुनः जोड़ने, फसल बीमा में नुकसानी का आंकलन व्यक्तिगत आधार पर करने, विकास के नाम पर किसानों की जमीन छीनकर उन्हें विस्थापित करने पर रोक लगाने और अनुपयोगी पड़ी अधिग्रहित जमीन को वापस करने, वनाधिकार कानून, पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने, मनरेगा में हर परिवार को 250 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, मंडियों में समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने, सोसाइटियों में किसानों को लूटे जाने पर रोक लगाने, जल-जंगल-जमीन के मुद्दे हल करने और सारकेगुड़ा कांड के दोषियों पर हत्या का मुकदमा कायम करने की मांग भी शामिल हैं। ये सभी किसान संगठन नागरिकता कानून को रद्द करने और एनआरसी-एनपीआर की प्रक्रिया पर विराम लगाने की भी मांग कर रहे है।
( सभी किसान संगठनों और नेताओं की ओर से संजय पराते)