सारकेगुड़ा कांड की न्यायिक जांच रिपोर्ट सार्वजनिक, सुरक्षा बलों की एकतरफा गोलीबारी में मारे गए थे 17 ग्रामीण, नक्सली बैठक नही बल्कि बीज पंडुम मना रहे थे ग्रामीण
“सरकार के पास एक महिने पहले आ चुकी थी रिपोर्ट, पर गृह विभाग ने छूपा रखी थी रिपोर्ट ”
रायपुर। वर्ष 2012 में बीजापुर के सारकेगुड़ा में CRPF और ज़िला पुलिस के द्वारा कथित मुठभेड़ में 17 ग्रामीणों के मारे जाने और 10 के घायल होने के मसले पर गठित न्यायिक जाँच रिपोर्ट सार्वजनिक हो गई है। इस रिपोर्ट को लेकर यह तथ्य कि, रिपोर्ट सरकार के पास एक महिने पहले पहुँच चुकी थी, की वजह से कल देर रात करीब दस बजे हुई कैबिनेट बैठक में आला अधिकारियों को तीखे सवालों का सामना करना पड़ा।
कैबिनेट में शामिल दो मंत्रियों ने जिसमें से एक बस्तर क्षेत्र से हैं उन्होंने कहा “यह मुठभेड़ फ़र्ज़ी थी.. हम लोग शुरु से जानते हैं.. पर रिपोर्ट को लेकर पहले ग़लत जानकारी क्यों दी गई”
मंत्रिमंडल के एक वरिष्ठ सदस्य ने पूरी रिपोर्ट के कई हिस्सों को पढ़कर सुनाना शुरु किया.. क़रीब पंद्रह मिनट तक मंत्री रिपोर्ट के हिस्सों को पढ़ते रहे और अधिकारियों को देखते रहे।
सरगुजा ईलाके से आने वाले वरिष्ठ मंत्री ने सवाल किया
“ठीक है कि, यूपीए की सरकार थी, यह भी है कि सुरक्षा बल केंद्र के थे,पर मामला हमारे नेता नंद कुमार पटेल ने उठाया था..और यह रिपोर्ट सेव. नंद कुमार पटेल के आरोप को सही बताती है..”
वरिष्ठ मंत्री ने कहा –
“ कैबिनेट है ये, तथ्यों को छूपा देंगे तो कैसे होगा.. रिपोर्ट एक महिने पहले आ चुकी थी.. और आप लोगों ने यह जानकारी दे दी कि, सर रिपोर्ट में कुछ है ही नहीं.. जबकि रिपोर्ट पूरी तरह बताती है कि मुठभेड़ फ़र्ज़ी थी, मरने वाले ग्रामीण थे”
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों को पढ़ते हुए वरिष्ठ मंत्री ने आगे कहा
“यह रिपोर्ट हम सदन पर रख सकते थे.. जो कि रखा जाना चाहिए था.. पर बीति कैबिनेट में इस रिपोर्ट के निष्कर्षों को लेकर ग़लत जानकारी दी गई.. वजह क्या थी .. कौन जवाबदेह है”
अब यह रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी जाएगी, कैबिनेट ने कल इसे मंजुरी दे दी।
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में साढ़े सात साल पहले हुए बहुचर्चित सारकेगुड़ा कांड की न्यायिक जांच रिपोर्ट जस्टिस वीके अग्रवाल आयोग ने छत्तीसगढ़ शासन को सौंप दी है। पिछले माह 17 अक्टूबर को जांच रिपोर्ट शासन के मुख्य सचिव को सौंपी गई है। बस्तर में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद पुलिस-नक्सल मामलों से जुड़ी जिन पांच बड़ी घटनाओं की जांच के लिए विशेष न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया है, उनमें सबसे पहली जांच रिपोर्ट सारकेगुड़ा कांड की आई है।
ग्राम सरकेगुड़ा, थाना बसागुड़ा, जिला बीजापुर में हुई मुठभेड़ की न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 28-29 जून 2012 को, सारकेगुडा, कोट्टागुडा और राजपेंटा के ग्रामीणों पर सीआरपीएफ और पुलिस कर्मियों की एक संयुक्त टीम ने गोलीबारी की थी। इसमें 7 नाबालिग समेत 17 ग्रामीण मारे गए और दस अन्य घायल हो गए। घटना के तुरंत बाद, इन तीन गांवों के ग्रामीणों ने आरोप लगाया था कि यह मौतें और चोटें सुरक्षा बलों की ओर से एकतरफा गोलीबारी के कारण हुई है। इस घटना की एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की गई थी।
रिपोर्ट इस नतीजे पर पहुंची है कि सुरक्षा बलों ने बैठक के सदस्यों पर एकतरफा हमला किया। इससे कई लोग मारे गए और घायल हो गए। बैठक के सदस्यों द्वारा कोई फायरिंग नहीं की गई। एक दूसरे की गोलीबारी के कारण ही छह सुरक्षाकर्मियों को चोटें आईं। संभवत: रात में अचानक ग्रामीणों की बैठक देखकर कुछ सुरक्षाकर्मी दहशत में आ गए, जिस कारण उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी।
घटना गोलीबारी पर समाप्त नहीं हुई। सुरक्षा बलों ने उसके बाद ग्रामीणों के साथ मारपीट की, और अगली सुबह एक व्यक्ति को घर में घुस कर भी मार डाला। रिपोर्ट के अनुसार इस घटना की पुलिस जांच में भी गड़बड़ी है। ग्रामीणों ने दावा किया है कि वे अगले दिन के बीज पांडुम (बुवाई त्योहार) की तैयारी के लिए रात में एक खुले मैदान में बैठक कर रहे थे। सुरक्षा बलों ने उन्हें अचानक घेरा और बिना किसी चेतावनी के फायरिंग की। उन्होंने कहा कि गोलीबारी समाप्त होते ही सुरक्षा बलों ने उन्हें बेरहमी से राइफल बट्स और बूटों से पीटा और एक ग्रामीण को अगले दिन सुबह उसके घर में घुसकर मार डाला।
दूसरी ओर, सुरक्षा बलों ने दावा किया कि घने जंगल में गश्त करते हुए उन्हें अचानक नक्सली लोग मिले जो बैठक कर रहे थे। उन्हीं नक्सलियों ने गोलीबारी शुरू की, जिस कारण छह सुरक्षाकर्मी घायल हो गए। सुरक्षा बलों के बयान अनुसार उन्होंने केवल आत्मरक्षार्थ रात में फायरिंग की थी, जिस कारण सारी मौतें हुई हैं।
कई राजनीतिक दलों और मानवाधिकार दलों ने क्षेत्र का दौरा किया और एक स्वतंत्र जांच के लिए ग्रामीणों की मांग का समर्थन किया। इसलिए 11 जुलाई 2012 को छत्तीसगढ़ सरकार ने सरकेगुडा की घटना की सच्चाई स्थापित करने के लिए जांच आयोग का गठन किया। यह प्रमाणित नहीं किया गया है कि कोई मृतक या घायल ग्रामीण नक्सली था, या कि नक्सलियों ने बैठक में भाग लिया।