पानी के सवाल पर प्रदर्शन के बाद एसईसीएल प्रबंधन हुआ पानी-पानी, मांगें मानी
कोरबा। पेयजल संकट से परेशान ग्राम मड़वाढोढा के सैकड़ों ग्रामीणों ने आज मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में एसईसीएल मुख्यालय का घेराव कर दिया। मुख्य गेट के दो घंटे तक जाम रहने के बाद एसईसीएल प्रबंधन ने आंदोलनकारी नेताओं से वार्ता के बाद खनन प्रभावित इस गांव में पेयजल संकट का स्थायी समाधान होने तक टैंकरों से जल आपूर्ति की घोषणा की। माकपा ने चेतावनी दी है कि यदि अपनी इस घोषणा से एसईसीएल प्रबंधन मुकरेगा, तो आगे कोयला का उत्पादन ठप्प किया जायेगा।
उल्लेखनीय है कि बांकीमोंगरा क्षेत्र में एसईसीएल द्वारा कोयला उत्खनन के लिए डि-पिल्लरिंग के कारण इस क्षेत्र का जल स्तर बहुत नीचे जा चुका है और इस क्षेत्र के गांव गंभीर पेयजल संकट और निस्तारी के पानी के अभाव से जूझ रहे हैं। इस क्षेत्र में जब खदानें चालू थीं, तो कोल प्रबंधन पाईपों के जरिये जलापूर्ति करता था, लेकिन कोल खदानों के बंद होने के बाद एसईसीएल प्रबंधन ने इन यहां के ग्रामीणों को अपने रहमो-करम पर छोड़ दिया। अब वे पेयजल और निस्तारी दोनों के संकट से जूझ रहे हैं और उनकी खेती-किसानी चौपट हो चुकी है।
इस समस्या से प्रबंधन को कई बार अवगत कराया गया, लेकिन नतीजा सिफर रहा। इससे आक्रोशित सैकड़ों ग्रामीणों ने आज माकपा जिला सचिव प्रशांत झा, सीटू नेता वी एम मनोहर, जनकदास कुलदीप, किसान सभा नेता दिलहरण बिंझवार, जवाहर सिंह कंवर, नंदलाल और जनवादी महिला समिति की नेता झुलबाई, संतोषी, शाकुन्तल,राजकुमारी आदि के नेतृत्व में मुख्यालय का घेराव कर गेट से आवाजाही रोक दी।
प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए माकपा नेता झा ने आरोप लगाया कि खदान बंद होने के बाद एसईसीएल खनन प्रभावित गांवों के प्रति अपनी नैतिक जिमेदारियो से भाग रही है, जबकि इस क्षेत्र से उसने हजारों करोड़ रुपयों का मुनाफा कमाया है। खदान बंद होने के बाद उसे इन ग्रामों की पेयजल संकट जैसी मूलभूत समस्या का समाधान करने में भी रुचि नहीं है। उन्होंने कहा कि ग्राम मड़वाढोढा में पीने के पानी की विकराल समस्या बनी हुई है और महिलाओं को पानी लेने कई किलोमीटर चलना पड़ता है। उन्होंने कहा कि एसईसीएल जैसा सार्वजनिक उद्योग यदि अपनी सामाजिक-जिम्मेदारियों के निर्वहन से पीछे हटेगा, तो इस क्षेत्र की जनता में अपने संगठन की ताकत के बल पर उसे यह अहसास दिलाने की क्षमता है।
एसईसीएल प्रबंधन द्वारा पेयजल संकट से ग्रस्त गांवों में टैंकरों द्वारा नियमित जल आपूर्ति करने की घोषणा करने के बाद ही आंदोलनकारी अपने घर लौटे।