हिरनों के गोश्त के साझेदार – आज की कविता
‘हिरनों’ को मिला
सरकारी अभ्यारण में
सुरक्षित बाड़ा कि ‘यहां रहो,
चौगान भरो, बढ़ाओ अपना झुण्ड।’
दूब का मैदान मिला,
पानी का सोता मिला चौरस जमीन पर
धूप और पेड़ों की छांव मिली।
जिन शावकों ने
जन्म लिया सुरक्षित बाड़े में
उन्होंने जाना नहीं
जंगल, पहाड़, नदियों
और घास के मैदान को,
उनके लिये
संकट नहीं हिंसक जानवरों की दहाड़।
उन्हें तजुर्बा नहीं
तेंदुवे की तेजी, चीते की फुर्ती
और बाघों के धावे का।
नहीं देखा उन्होंने
भरहरा कर गिरते,
खूर रगड़ते हिरनों को,
बाघ के जबड़े में झूलते शावक को।
उनके लिये
आदमी कोई बड़ा खतरा नहीं
जो निगलता है
जंगल की आबादी को
जंगल की पहचान के साथ।
हिरनो ने जाना नहीं
अभ्यारण सुरक्षित शिकारगाह है
बाघों के अलावा
हिरनों के गोश्त के कई साझेदार हैं।
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