समय नहीं है : आज की कविता

फोटो : गांव कनेक्शन डॉट कॉम

मैं अभी शामिल नहीं होना चाहता
आपकी अकादमिक बहस में
आपकी शास्त्रीय पुनर्व्याख्याएं
कर सकती हैं इंतज़ार
आपकी बहसें
मुल्तवी हो सकतीं हैं
आप कभी भी पाला लांघ
सुरक्षित ज़ोन में जा सकते हो
पर वे पेड़ हैं
वह भी हज़ारों
अपंग हैं
हिल तक नहीं सकते
अपनी जगह से
न चीख़ सकते हैं
न रो चिल्ला सकते हैं
मुझे अभी तुरंत पहुंचना है
उनका शुक्रिया अदा करने
पापों की माफ़ी मांगने
अदम्य इच्छा के बावजूद
बचा नहीं पा रहा उन्हें
आजकल बड़ी तेज़ी से हो रहे
फ़ैसले सरकार के
इतनी तत्परता तब नहीं देखी
जब मर रहे थे बच्चे
भूख और बीमारियों से
या डूब रहा था शहर
या बरस रही थी लाठियाँ
अन्यायग्रस्त शिक्षकों पर
जितनी तत्परता से
होता है फ़ैसला
पेड़ों के कटने का
हत्यारे पहुंचें
उससे पहले पहुंचना चाहता हूँ
हर उस बलिवेदी तक
जहाँ हैवानी सुविधाओं के
शैतानी यज्ञ में
दी जाएगी आहुति
बेकसूर बेज़ुबान बेबस पेड़ों की
आप जारी रखिए
अपनी बहस
अपने सेमिनार, गोष्ठियाँ
अपने बौद्धिक उत्सव
और टुच्ची उपलब्धियों के
महामहोत्सव
मैं वृक्षों के श्मशान होकर
लौटता हूँ शीघ्र ही
यह बताने
कि कब आएगी बारी हमारी

   - हूबनाथ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!