अस्पताल माफिया के आगे घुटने टेके सरकार ने : माकपा
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने लिपिकीय त्रुटि के नाम पर कोरोना महामारी से निपटने के लिए निजी अस्पतालों के अधिग्रहण का आदेश निरस्त किए जाने की तीखी आलोचना की है तथा इसे स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे माफिया के दबाव में लिया गया फैसला बताया है।
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिव मंडल ने कहा है कि सभी जानते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में राजनेताओं, अधिकारियों तथा धंधेबाजों की अवैध कमाई लगी हुई है। स्वास्थ्य के निजीकरण की नीतियों के चलते यह क्षेत्र सेवा भाव की जगह मुनाफा कमाने के धंधे में तब्दील हो गया है और संगठित माफिया की तरह पनप रहा है, जो समय-समय पर सरकार को ब्लैकमेल भी करता है।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहाल हैं और जिला अस्पतालों में 71% चिकित्सा विशेषज्ञों के पद रिक्त हैं। प्रदेश में कोरोना संदिग्धों की जांच के लिए केवल दो अस्पताल हैं, वह भी रायपुर में और यहां भी चिकित्सकों के लिए जीवन रक्षक चिकित्सा उपकरणों का घोर अभाव है। निजी अस्पताल तो कोरोना संदिग्धों की जांच तक करने से इंकार कर रहे हैं। ऐसे में इस विशेष उद्देश्य के लिए निजी अस्पतालों का अधिग्रहण स्वागत योग्य था। लेकिन अस्पताल माफिया के दबाव में इस फैसले को निरस्त करने से सरकार की किरकिरी हुई है और यह दिखाता है कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए राज्य सरकार में राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है।
माकपा नेता ने पूछा है कि सरकार यह स्पष्ट करें कि अधिग्रहण का आदेश किस तरह लिपिकीय त्रुटि हो सकती है, जबकि स्वयं स्वास्थ्य विभाग ने इस बात को जाहिर करने के लिए पत्रकार वार्ता की थी। उन्होंने कहा कि सरकार यह बताएं कि आज जब यह वैश्विक महामारी भारत में तीसरे चरण में, जिसे सामुदायिक संक्रमण कहते हैं, प्रवेश कर गया है — बिना पर्याप्त बिस्तरों, चिकित्सकों और चिकित्सा सुविधाओं के बिना इस संकट से छत्तीसगढ़ में किस तरह लड़ा जा सकता है?
उन्होंने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि प्रदेश के सभी संसाधनों का उपयोग इस प्रकोप से लड़ने के लिए और लॉक डाउन की स्थिति में आम जनता को राहत पहुंचाने के लिए किया जाना चाहिए, राज्य सरकार का अस्पताल माफिया के आगे घुटने टेकना दुर्भाग्य जनक है। इससे प्रदेश में इस बीमारी के हमले का खतरा और बढ़ गया है।