सलवार की गांठ
अम्मा ने समझाया बार-बार
जिनगी में बहुत जरूरी हो गयी गांठ
खींच कर लगाई गांठ पर गांठ
बांध-रखना अच्छे से
खुल न जाये यहाँ- वहां
खेलते- कूदते हुए
उठते बैठते हुए ,आते समय ,जाते समय
देख लेना, समझ लेना, जान लेना, बूझ लेना
टोय टोय लेना गांठ, कस कस लेना गांठ
सखी दोपदी !
कैसे बताऊँ अम्मा को!
कैसे समझाऊं अम्मा को!
खेत में, खलिहान में, रास्ते में, स्कूल में
परिवार में, पड़ोस में
गांव में देश में
कितनी तेज़ तेज़ धार वाली आँख
बाँधू संभालू लाख
कहाँ- कहाँ ! कैसे-कैसे!!
खुल-खुल जाती गांठ
खोल खोल दी जाती गांठ
अम्मा लगाती जाती गांठ पर गांठ
खुल खुल जाती गांठ खोल दी जाती गांठ।
©दोपदी सिंघार