दुनिया को जलवायु संकट से बचाने के लिए एक हजार अरब पेड़ों को लगाए जाने की जरूरत है.
कबीर संजय ,जंगल कथा से
दुनिया को जलवायु संकट से बचाने के लिए एक हजार अरब पेड़ों को लगाए जाने की जरूरत है। इतने पेड़ अगर लगाए जाएं तो वे 830 अरब टन कार्बन डाई आक्साइड को सोख लेंगे और दुनिया जलवायु संकट के घातक परिणामों से बच जाएगी। मौसम का चक्र फिर से पहले जैसा हो जाएगा।
लेकिन, हो क्या रहा है। ब्राजील में हर मिनट एक फुटबॉल के मैदान जितना एमेजॉन का जंगल काटा जा रहा है। भविष्य में शायद एमेजॉन के जंगल का नाम भर रह जाएगा। पर हमारे भारत में क्या हो रहा है।
आपने हसदेव अरण्य का नाम सुना है। यह जंगल छत्तीसगढ़ में है। भारत के सबसे ज्यादा घने और अनछुए जंगलों में हसदेव अरण्य का नाम लिया जाता है। हाथी, लेपर्ड जैसे न जाने के कितने जानवरों का यह घर है। लेकिन, आने वाले दिनों में शायद यह घर बचेगा नहीं है। इस जंगल की जमीन के नीचे कोयला दबा हुआ है और इसी वर्ष मार्च के महीने में केन्द्र सरकार ने इसके खनन की अनुमति दे दी है।
हसदेव अरण्य भारत के सबसे पुराने जंगलों में शामिल है। यह कितना बड़ा जंगल है यह इससे समझा जा सकता है कि दिल्ली, बेंगलुरू और मुंबई जैसे शहरों को मिलाकर भी इसका क्षेत्रफल ज्यादा बैठता है। यहां के एक लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में कोयला खनन को सरकार ने मंजूरी दी है। खनन वही करेंगे जो सरकार के सबसे बड़े दोस्त पूंजीपति हैं।
सवाल यह है कि राष्टपति भवन के नीचे अगर कोयला मिलने की उम्मीद हो तो क्या उसे भी ऐसे ही खोदा जा सकता है।
दूसरी सूचना महाराष्ट्र से है। यहां पर बुलेट ट्रेन परियोजना 54 हजार मैंग्रोव के पेड़ों को खाने जा रही है। समुद्र तटों के लिए मैग्रोव के जंगल बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। समुद्र में आने वाली तेज लहरों और सुनामी से वे तटों की रक्षा करते हैं। यहां पर एक पूरा का पूरा ईकोसिस्टम पनपता है और सांस लेता है। मैंग्रोव के जंगल साफ करने का मतलब है इस ईकोसिस्टम को नष्ट करने के साथ ही सुनामी के रक्षा कवच को भी नष्ट करना है। इस पर हो रहे विरोध के बाद अब इनमें से 21 हजार पेड़ कम काटने की बात कही जा रही है।
तीसरी सूचना भी महाराष्ट्र से है। मुंबई-नागपुर एक्सप्रेस के निर्माण के लिए 258 किलोमीटर के हिस्से में एक लाख पेड़ों को काटा जाएगा। सड़क चौड़ी हो सके और तेज रफ्तार गाड़ियां भाग सकें, इसके लिए इन पेड़ों की बलि दी जाएगी। इस तरह की सूचनाएं पूरे भारत में बिखरी पड़ी हैं। तमाम परियोजनाओं के लिए पेड़ों की बलि लिए जाने की जरूरत है। पेड़ों की हत्याएं होंगी तो इन विकास योजनाओं को बल मिलेगा। व्यापार बढ़ेगा।
अंत में एक सवाल—
“व्यापार मेरे खून में है”
यह कथन किस महापुरुष का है।
(हसदेव अरण्य की फोटो इंटरनेट से साभार। कोयले की खुदाई के बाद इस हरियाली पर धूल उड़ेगी और वह भी काली।)