पीने के पानी के लिए झरिया का सहारा , वह भी 2 किमी दूर
पखांजुर – कहते है “जल ही जीवन है” परंतु पिछले 40 सालों से इसी जल से अपनी प्यास बुझाने के लिए कोयलीबेड़ा ब्लॉक के ईरकबूटा पंचायत के नवागांव ग्राम के ग्रामीण रोजाना अपनी ज़िन्दगी ख़तरे में डालते आ रहे है ।
ग्रामपंचायत ईरकबूटा के 40 परिवार के लगभग 350 सदस्य नवागांव में रहते है और जिनके लिए सरकार द्वारा आज तक एक हैंडपम्प तक की व्यवस्था नहीं की गयी है बरहाल ये ग्रामीण आज़ादी के 71 साल बाद भी झरिया का पानी पीने को मजबूर है । नवागांव के ग्रामीण पीने के पानी के लिए गांव से 2 किलोमीटर दूर स्थित बने एक गढ्ढे के पानी पर निर्भर है परंतु ईस गढ्ढे के पानी में कई जहरीले जीव तैरते है और यहां पानी बेहद दूषित है ।
ग्रामीणों को मजबूरन अपनी प्यास बुझाने के लिए इसी गढ्ढे के पानी को पीना पड़ता है , जिससे आये दिन ग्रामीण गंभीर बीमारियों का शिकार होते है । अब तक इसी दूषित पानी के चलते कई जाने भी जा चुकी है पर इन ग्रामीणों की समस्या यही खत्म नहीं होती जिस गढ्ढे से ग्रामीण पानी निकालते है उसकी गहराई बहुत ज़्यादा है लिहाज़ा ग्रामीणों को अपनी जान जोखिम में डालकर गढ्ढे की दीवार के सहारे नीचे उतरना होता है ।
गढ्ढे में पानी की मात्रा इतनी कम होती है कि चंद बर्तनों में पानी भरने के बाद खाली हो चुके गढ्ढे में फिर से पानी भरने के लिए ग्रामीणों को कई घंटे इन्तेज़ार करना होता है । पानी के अभाव में ग्रामीण यहां पिछले 40 सालों से पक्के मकान तो दूर बाँस से बने अपने झोपड़ों में मिट्टी का लेप तक नहीं लगा पाते ।
यह विकलांग भी पानी की समस्या के आगे इस कदर मजबूर है कि घुटनों के बल मिलों तक सर पे पानी से भरे बर्तन ढोकर अपनी प्यास बुझाने के लिए मजबूर है । ग्रामीणों के ऊँगलियों पर लोकतंत्र की स्याही अब भी मौजूद है । साथ ही उनका कहना है कि उन्हें देश के लोकतंत्र पर विश्वास है इसलिए वो प्रत्येक चुनाव में अपना मतदान करते और उम्मीद करते है कि कभी न कभी उनकी समस्याओं का समाधान किया जाएगा ।
परंतु आज 40 साल बाद भी ये बेबस ग्रामीण झरिया का पानी पीने को विवश है ।। यह गांव वर्तमान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विक्रमदेव सिंह उसेण्डी के चुनाव क्षेत्र में आता है और लगातार उनके पास नल की व्यवस्था की गुहार लगाई जाती रही है परंतु हर बार उनकी फ़रियाद सत्ता के गलियारों में खो गयी है । 15 साल बाद प्रदेश में सरकार बदली है ,नयी सरकार ने कई घोषणाएं भी की है पर ये देखना होगा कि बड़ी-बड़ी घोषणाओं के बीच इन ग्रामीणों की ये छोटी सी फ़रियाद आख़िर कब सुनी जाएगी और कब ईस गाँव की तस्वीर बदल पायेगी ।
कोयलीबेड़ा से राजेश हालदार की रिपोर्ट