पीएम की यात्रा भी नहीं बदल सकी जांगला की तस्वीर, लांचिंग के साथ ही ध्वस्त हो गया मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट
बीजापुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में आयुष्मान भारत योजना की लांचिंग 14 अप्रैल 2018 को छत्तीसगढ़ में स्थित बीजापुर के जांगला गांव से की थी। उनके दौरे के समय दुल्हन की तरह सजाया गया यह गांव अब फिर से अपनी किस्मत पर रो रहा है। 11 महीने बाद भी इस गांव को लेकर बनाया गया पीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट न केवल अपनी जगह खड़ा है बल्कि अब दम भी तोड़ने लगा है।
हालांकि जांगला को कागजों में शौच मुक्त ग्राम घोषित कर दिया गया है। मगर यहां की जमीनी सचाई यह है कि 80 फीसदी आबादी आज भी खुले में शौच जाने के लिए मजबूर है। ग्रामीणों का कहना है कि आज से 3 साल पहले ग्राम पंचायत द्वारा शौचालयों का निर्माण करवाया गया था। निर्माण के एक महीने बाद ही शौचालय खंडहर में तब्दील हो गए। शौचालय के गड्ढे पट चुके हैं। और वो किसी भी रूप में इस्तेमाल के लायक नहीं रहे। इससे इस बात को समझा जा सकता है कि नेशनल हाईवे से सटे जिस गांव में पीएम मोदी गए थे अगर उस गांव की स्थिति ऐसी है तो फिर देश के दूसरे गांवों में हालात क्या होंगे उसे समझना कठिन नहीं है।
जांगला के रहने वाले आसू कोरसा कहते हैं कि दो साल से शौचालय बना हुआ है। हम लोग तो जंगल में ही शौच के लिए जाते हैं। इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं। सब खराब हो गया है, बाकी घरों में भी इसी तरह की स्थिति है। सभी जंगल में जाते हैं। बच्चे भी जंगल की तरफ ही जाते हैं। हालांकि वहां लगातार जंगली जानवरों से जान का खतरा बना रहता है। बावजूद इसके उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। और जो तैयार किया गया था वह काम नहीं कर रहा है।
जांगला की एक महिला ने बताया कि हम लोगों को भी जंगल की तरफ ही जाना पड़ता है। यहां बने सारे शौचालय खराब हैं। सरपंच-सचिव बना के दिए थे। यह अब मुर्गियों के पालने के लिए इस्तेमाल होता है। उनका कहना था कि जंगल में जानवरों से बहुत डर लगता है।
हालत केवल शौचालय की बदतरी तक ही सीमित नहीं है। आने-जाने के साधनों और मार्गों की स्थिति भी ठीक नहीं है। जांगला से होकर गुजरने वाला नेशनल हाईवे चमचमाता तो ज़रूर नजर आता है। लेकिन उसके करीब 10 गांवों के ग्रामीणों के लिए एक पक्की सड़क तक मयस्सर नहीं है। नेशनल हाईवे से महज़ 1 किमी की दूरी पर स्थित गांव के ग्रामीण आज भी एक अदद पक्की सड़क की आस में बैठे हुए हैं। ऊपर से दुश्वारी यह कि इन गांवों तक पहुंचने से पहले बरसाती नाले को पार करना पड़ता है। नालों में पुल-पुलियों का निर्माण तक नहीं हो पाया है। बारिश में हालात और भी बदतर हो जाते हैं। यहां से गुजरने का मतलब होता है जान को हथेली पर लेकर चलना। लेकिन लोगों को फिर भी जाना पड़ता है। क्योंकि जिंदगी तो रुकती नहीं।
मोदी के दौरे के समय की तस्वीर को याद करते हुए जांगला के स्थानीय दुकानदार राम प्रसाद ने बताया कि उस दिन रोड के किनारे-किनारे समेत पूरे इलाके को सजाया गया था। लेकिन उनके जाने के साथ ही सजावट भी चली गयी। उनका कहना था कि मोदी के आने से जांगला में बदलाव की उम्मीद थी। लेकिन शायद वह हम लोगों का भ्रम था। क्योंकि जांगजा जहां था आज भी वहीं खड़ा है। उसमें किसी तरह का बदलाव नहीं आया है।
जंगला के एक दूसरे ग्रामीण कमलू लेकाम का कहना है कि मोदी यहां भले आए लेकिन उन्होंने किया कुछ नहीं। केवल बातें उन्होंने बड़ी-बड़ी कीं। न सड़क बनीं और न ही नदी-नालों में पुल-पुलिया बन पाया। बारिश के समय तो बहुत परेशानी होती है, नाले का पुल पार करना मुश्किल हो जाता है। किसी के बीमार होने पर तकलीफ और बढ़ जाती है। लेकिन मजबूरी जो न कराए। जान का जोखिम लेकर पार ही करना पड़ता है। यहां तक कि एक गांव से दूसरे गांव जाने के लिए सड़कें तक नहीं हैं।
इस पूरे मामले में ग्रामीणों के अपने आरोप हैं और ज़िम्मेदारों की अपनी दलील। ग्राम पंचायत जांगला के सचिव कोमल निषाद का कहना है कि शौचालयों का निर्माण 2015 में करवाया गया था। कुछ जगहों पर पानी की कमी के कारण शौचालय खराब हो गये हैं। बड़ा सवाल ये है कि पानी की कमी के कारण शौचालय कैसे खराब हो जायेंगे? वहीं ग्राम पंचायत सचिव का कहना है कि नेशनल हाईवे के अलावा जंगला के आस-पास के गांव सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाए हैं। हालांकि उनके पास इसका भी जवाब है। उन्होंने बताया कि ग्राम पंचायत द्वारा सड़कों के लिए प्रस्ताव भेज दिया गया है और आचार संहिता के हटने के बाद सड़कों का निर्माण कार्य भी शुरू हो जाएगा।
( तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट )