बस्तर के जंगलों को पुलिस छावनी में तब्दील करने के खिलाफ खड़े होईये
रूपेश कुमार सिंह इस वीडियो को गौर से देखिये और गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज सुनिए। इस वीडियो को देखने
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Read moreमार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार पर कोरोना संकट से निपटने के लिए केंद्र द्वारा भेजे गए
Read moreकॉ. गणेश तिवारी नही रहे, कोरोना ने उन्हें भी ग्रस लिया। यह समाचार स्तब्धकारी है और उनका मुस्कुराता चेहरा हमेशा
Read moreसुबह-सुबह दो बड़ी खबरें आ रही हैं। पहली खबर असम से है। असम की पत्रकार शिखा
Read moreदीपक पाचपोर छत्तीसगढ़ एक बार पुनः रक्तरंजित है। बस्तर में हुई नक्सली हिंसा ने फिर से सबको झकझोर तो दिया
Read moreछत्तीसगढ़ के जंगलों में तीन एप्रिल को माओवादियों व अर्धसैनिक बल के बीच भीषण संघर्ष हुआ है। इस संघर्ष में अर्धसैनिक बलव पुलिस के 23 सैनिकों के मरने की खबर आ रही है। एक सैनिक अभी भी माओवादियों के कब्जे में हैं। 23 सैनिकों की मौत ने एक बार फिर मुल्क में हलचल पैदा कर दी है। सोशल मीडिया पर सैनिकों के पक्ष में पोस्ट लिखी जा रही है।अखबार सैनिको की मौत की खबरों से भरे पड़े है। न्यूज चैनल लाल आतंक-लाल आतंक चिल्ला रहे है। लेकिन सोशल मीडिया से लेकर अखबार, न्यूज़ चैनल कोई भी ईमानदारी से इस मुद्दे पर बहस नही कर रहा है, न ही खबर दिखा रहा हैकी लाखों की तादात में अर्धसैनिक बल व पुलिस को जंगल में क्यों भेजा गया है। क्यों जंगल को सत्ता द्वारा खुली जेल व आदिवासियोंको कैदी बना दिया गया है। इस युद्ध की जड़ में क्या है? इस दुनिया की सबसे शांत कहे जाने वाले आदिवासियों ने क्यों हथियार उठायेहुए है। क्या कभी ये जानने की कोशिश की गई है या कोशिश की जाएगी? शायद नहीं 23 सैनिकों की मौत पर जिनको दुःख होता है। उनको क्यों नही उस समय दुःख होता जब आदिवासियों के खून से रोजाना जंगल लालहोता है। क्योंकि दोनो तरफ से मरने वाला आखिरकार इंसान ही तो है। इसलिए एक इंसान के मरने पर वो चाहे फोर्स का जवान हो याआदिवासी हो। एक संवेदनशील इंसान को बराबर दुःख होगा। लेकिन अगर आपको आदिवासी के मरने पर खुशी व फोर्स के जवान केमरने पर दुःख होता है तो आप मानसिक रोगी हो। गृहमंत्री अमित शाह ने बदला लेने की बात कही है तो वहीं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री जो कॉग्रेस से है, ने ब्यान दिया है कि जल्द बदलालिया जाएगा। जल्दी ही नक्सलियों का सफाया कर दिया जाएगा। UPA अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी ऐसा ही ब्यान दिया है। सभीपार्टियों के नेताओ के ऐसे ही मिले-जुले ब्यान आये है। आप उनके ब्यानों से समझ सकते हो कि लुटेरे पूंजीपतियों की दलाली करने वाली पार्टियां एक ही थाली के चट्टे-बट्टे है। ये पार्टियांजनता की दुश्मन है। इनको शांति नहीं, बदला लेना है उन आदिवासियों से जो जल-जंगल-जमीन, प्राकृतिक संसाधन व पहाड़ लुटेरे पूंजीपतियों से बचाने केलिए लड़ रहे है। सभी राजनीतिक पार्टियां आज लुटेरों के साथ मजबूती से खड़ी है। क्यों, क्योंकि इन सबको लूट में हिस्सा मिलता है। जब केंद्र में कॉग्रेस (UPA) थी उस समय छत्तीसगढ़ में भाजपा (NDA) सत्ता में थी। अब ठीक इसके विपरीत भाजपा केंद्र में है तो कॉग्रेसराज्य की सत्ता में विराजमान है। दोनों के शासन कालो में कार्पोरेट व साम्राज्यवादी पूँजी को जल-जंगल-जमीन, पहाड़, खान को लूटनेकी खुली छूट दी गयी। जब इस लूट के खिलाफ जनता ने आवाज उठाई तो सत्ता ने पुलिस और गुंडों की मदद से जनता के खिलाफदमन चक्र शुरू किया। सलवा जुडूम जिसमें लोकल गुंडों के हाथों में सरकार ने हथियार थमा दिए। इन हथियार बंध गुंडों ने सैकंडो गांव को जला दिया, हजारोंमहिलाओं से बलात्कार किये। कत्लेआम का नंगा नाच किया। इन गुंडों को सरकार का सरकारी समर्थन मिला हुआ था। पुलिस गुंडों केसाथ नंगा नाच में शामिल होती थी। इन सलवा जुडूम के गुंडों का काम कॉर्पोरेट के लिए जमीन खाली करवाना था। मुल्क के बुद्विजीवियों की लंबी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के सरकारी गुंडा गैंग को बंद तो करवा दिया। लेकिन इस समय तकबहुत देर हो चुकी थी। लाखो आदिवासी उजाड़े जा चुके थे, हजारों को जेल में डाला जा चुका था। आतंक की इबारतें लिखने वाले अफसरों, गुंडो, नेताओं को सत्ता द्वारा मान-सम्मान दिया जा चुका था। वही दूसरी तरफ जल-जंगल-जमीन, पहाड़ को बचाने के लिए आदिवासियों ने सवैधानिक लड़ाई छोड़ हथियार उठा लिए थे। जब सत्ता आप के खिलाफ हथियार बंध युद्ध छेड़ चुकी हो उस समय युद्ध के मैदान में बन्दूक के खिलाफ आप बन्दूक से लड़ कर ही अपने आप को जिंदा रख सकते हो। छतीसगढ़ के जंगलो में फोर्स रोजाना जो जुल्म की नई-नई इबारतें लिखती है। उन इबारतों को अगर साधारण इंसान को सुना दिया जाएतो वर्तमान व्यवस्था से उसको नफरत हो जाये। आदिवासी महिलाओं से बलात्कार करना तो जैसे फोर्स का जन्मसिद्ध अधिकार है। फेक एनकाउंटर तो फोर्स वहां ऐसे करती है जैसे पुतले को मारने का अभ्यास कर रही हो। फोर्स द्वारा 24 आदिवासियों को लाइन में खड़ाकरके गोलियों से छलनी करने की खबर ने बर्तानिया हुकूमत की यादें ताजा कर दी थी। क्या इसी आजादी के लिये लाखो मजदूर-किसानों ने शहादते दी थी।
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