आदिवासियों की जमीन बिल्डरों को बांटने के लिए राजस्व न्यायालय का खुलेआम हो रहा दुरुपयोग
नियंत्रण करने में असक्षम कलेक्टर और सरकार ने उल्टे पत्रकार को भिजवाया न्यायालय की अवमानना का नोटिश
कोरिया जिले के जिलामुख्यालय बैकुंठपुर के अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) ने देश के इतिहास में पहली बार अजब कारनामा कर डाला, सिविल और दांडिक मामले में लगाई जाने वाला न्यायालय अवमान अधिनियम 1971 के तहत राजस्व न्यायाल को कलंकित करने वाला बता कर जिले के पत्रकार चंद्रकांत पारगीर को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, जिस पर पत्रकार ने समय पर नोटिस का जवाब ना देकर उन्हें उनके द्वारा भेजे नोटिस का विरोध करते हुए 6 पन्नों को पत्र भिजवाया है। अब देखना है कि एसडीओ राजस्व अब मामले में क्या रूख अख्तियार करते है।
इन पंक्तियों को बनाया अवमानना का आधार
कोरिया जिले के पत्रकार चंद्रकात पारगीर ने अपनी खबर में बताया था कि मामले में सबसेे पहले वर्तमान तहसीलदार ऋचा सिंह ने बिल्डर के खिलाफ रामपुर की आदिवासी महिला की भूमि के इस मामले को सामने लाया, अभी तक बिल्डर के खिलाफ सिर्फ ऋचा सिह ने मामले में सबसे ज्यादा कार्यवाही कर चुकी है। जब मामले को उन्होनें उजागर किया तो उनके द्वारा किए नामांतरण को निरस्त करने पुर्नविलोकन की अनुमति की मांग एसडीएम से की। उन्होने तत्कालीन तहसीलदार टीआर देवांगन के समय के 5 और अपने कार्यकाल मंें किए 7 नामांतरण को निरस्त करने की अनुमति एसडीएम से मांगी, परन्तु एसडीएम ने अनुमति प्रदान नही की, अब सवाल उठता है कि आखिर एसडीएम ने नियम होने के बाद भी अनुमति प्रदान क्यो नही की, क्या उन पर राजनैतिक दबाव था या प्रशासनिक, यह समझ से परे है। उपरोक्त बातों को अनुविभागीय अधिकारी ने अदालत को कलंकित करने वाला बता कर चंद्रकांत पारगीर को न्यायालय के अवमानना का दोषी बताते हुए नोटिस जारी कर दिया। नोटिस मंे उन मामलों का जिक्र करते हुए एसडीओ ने लिखा है कि प्रकरणो में सुनवाई पश्चात गुणदोष के आधार पर निर्णय लिया जाता है, असंतुष्ट होने पर उसे अपील करने का अधिकार होता है, उक्त प्रकरण में कहीं अपील नही की गई है, बावजूद पत्रकार के द्वारा न्यायालय को कलंकित करने के लिए इस तरह का लेख किया गया है, जो न्यायालय अवमान अधिनियम 1971 के तहत दंडनीय है। 27 मार्च 2021 का उनका नोटिस पत्रकार को 1 मार्च 2021 को प्राप्त हुआ, और 3 मार्च 2021 को उन्होने एसडीओ को जवाब भी दे डाला।
क्या था मामला
वर्ष 2013 में सबसे पहले रामपुर स्थित आदिवासी महिला की भ्ूामि खसरा 107/1 रकबा 3.101 को सामान्य जाति के बिल्डर के ड्रायवर के नाम विक्रय का प्रतिवेदन तत्कालीन तहसीलदार ने दिया, जिसके आधार पर अपर कलेक्टर एडमंड लकडा ने आदिवासी की भूमि को सामान्य जाति व्यक्ति को बेचने की अनुमति प्रदान कर दी। जो कि विधि विरूद्ध था, बावजूद इसके रजिस्ट्री हो गई। जब मामले में शिकायत हुई और मामला चर्चा में आ गया, जिसके बाद उन्होने धारा 32 के तहत अपने ही आदेश को निरस्त कर दिया, ऐसा उनका करने का नियम मंे अधिकार भी था, परन्तु उन्होने रजिस्ट्री को शून्य करने किसी भी तरह की कदम नहीं उठाए और उसी रकबे को दुबारा आदिवासी के नाम रजिस्ट्री करवाने की अनुमति प्रदान की, इसी अपराध के कारण उन्हें पुलिस ने जेल में निस्द्ध कर रखा है। इधर, जिस तत्कालीन तहसीलदार ने प्रतिवेदन दिया था उन्होनें नामांतरण भी कर दिया, जबकि भूल सुधार के दौरान उन्हें नामातरण नहीं करना था। जिसके बाद आदिवासी की भूमि सामान्य हो गई फिर शिकायत हुई। नियमानुसार तत्कालीन तहसीलदार को पुर्नविलोकन में लेकर नामांतरण को निरस्त करना था। वो नहीं किया और ना ही रजिस्ट्री शून्य हुई। उसके बाद खसरा 107/1 रकबा 3.101 की रजिस्ट्री दुबारा हो गई, फिर वर्ष 2014 में उक्त भूमि आदिवासी से आदिवासी के नाम पर दूसरी रजिस्ट्री की गई और फिर दुबारा तत्कालीन तहसीलदार ने नामांतरण कर दिया।
कई तहसीलदारों ने किए नामांतरण
आदिवासी महिला की भूमि के 30 नांमातरण हुए, जिसके तत्कालीन तहसीलदार आरएस पैकरा द्वारा 10 के साथ तत्कालीन तहसीलदार स्व आशीष सक्सेना 5, तत्कालीन तहसीलदार जेआर ठाकुर 2, तत्कालीन तहसीलदार रूपेश सिंह 1, तत्कालीन तहसीलदार टी आर देवांगन 5 और वर्तमान तहसीलदार ़ऋचा सिंह ने 7 नामांतरण किए। इसमें आशीष सक्सेना का निधन हो चुका है, जेआर ठाकुर सेवानिवृत हो चुके है, रूपेश सिंह ने तहसीलदार नौकरी छोड दी, बचे तीन अधिकारियों में सिर्फ ऋचा सिंह पर ही कलेक्टर ने कार्यवाही का पत्र लिखा, जबकि दो अधिकारियों के खिलाफ अब तक किसी भी प्रकार की कार्यवाही की अनुशंसा कलेक्टर ने नहीं की है। वहीं आदिवासी की भूमि सामान्य जाति के व्यक्ति के नाम पर रजिस्ट्री हो गई, मामले में पुलिस ने जांच की, रजिस्ट्री के दौरान तत्कालीन रजिस्टार ने बडी लापरवाही बरती और मामले को जानते हुए भी रजिस्ट्री कर डाली। जिला प्रशासन को मामले की पूरी जानकारी है परन्तु जिला प्रशासन रजिस्टार को मामले में बचाने में जुटा हुआ है।
फर्जी पाए गए हस्ताक्षर
रामपुर स्थित आदिवासी महिला की भूमि को सामान्य जाति के व्यक्ति के नाम रजिस्ट्री की अनुमति और बाद में रजिस्ट्री करने, बाद में आदिवासी के नाम पर विक्रय कर दूसरी रजिस्ट्री करने के मामले में पुलिस अब तेज गति से कार्यवाही करने के मूड में दिख रही है। वहींे दो अधिकारियों के हस्ताक्षर फर्जी पाए गए है। रामपुर आदिवासी महिला भूमि मामले को स्वयं संज्ञान लेकर रायगढ के कमिश्नर आशुतोष पांडेय जिला मुख्यालय बैकुंठपुर पहुंचें थे उन्होने बताया था कि उनके रीलिव होने के दूसरे दिन उनके नाम से फर्जी हस्ताक्षर मामले मे फाइल को आगे बढाया गया है, जिसके बाद तत्कालिन एसडीएम आशुतोष पांडेय और तत्कालिन तहसीलदार जेआर ठाकुर के हस्ताक्षर की जांच के लिए लैब भेजे गए थे, जहां से दोनों अधिकारियों के हस्ताक्षर फर्जी बताए जाने की रिपोर्ट आई है, जिसके बाद पुलिस अब तहसील के सभी बाबूओं उक्त फर्जी हस्ताक्षर के संबंध में पता लगाने में जुटी हुई है। जिस पर रायगढ कमिश्नर आशुतोष पांडेय ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं।
25 से ज्यादा मामले पर कार्यवाही शून्य
जिला प्रशासन ने बिल्डर मामले मे मुख्यमंत्री के निर्देश पर भी अब तक किसी भी तरह की कार्यवाही नही की है। सिर्फ पुलिस विभाग विभिन्न शिकायतों में लगातार कार्यवाही करने में लगा हुआ है, सूत्रों की माने तो कम से कम 25 से ज्यादा भूमि के खरीदी बिक्री मामलों की फाइल जिला प्रशासन के टेबल पर पडी धूल खा रही है। मामले में 7 महिने बीत गए है परन्तु एक भी मामले में किसी भी तरह की कार्यवाही की फाइल आगे नहीं बढ पाई है।
पत्रकार चंद्रकांत पारगीर