भष्मासुर को सेंसरशिप की क्या ज़रूरत.?
-सुरेंद्र ग्रोवर॥
बीबीसी द्वारा गुजरात दंगों पर बनाई गई दो हिस्सों वाली डॉक्यूमेंट्री के आने के साथ ही भारत सरकार की भृकुटि तन गई और डॉक्यूमेंट्री के भारत में दिखाए जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया लेकिन सोशल मीडिया पर शेयर करने पर प्रतिबंधित होने पर भी यह डॉक्यूमेंट्री यत्र तत्र सर्वत्र उपलब्ध थी। इससे केंद्र सरकार गुस्से में आपा खो बैठी। नतीज़ा बीबीसी के दिल्ली दफ्तर पर आयकर विभाग के छापे बतौर सामने आया है।
ऐसा पहली मर्तबा नहीं है कि मोदी के खिलाफ लिखने बोलने वाले मीडिया संस्थानों पर केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों ने छापेमारी की हो। दैनिक भास्कर से लेकर द वायर, न्यूज़ क्लिक, भारत समाचार और अन्य कई मीडिया संस्थानों और पत्रकारों की लंबी फेहरिस्त पर मोदी सरकार की गाज़ गिरती रही है। ऐसे में बीबीसी पर इस सरकारी छापेमारी पर किसी तरह का आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
गौरतलब है कि 2002 में गोधराकांड के बाद हुई हिंसा के लिए मीडिया लगातार मोदी को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कोसता रहा और इसका परिणाम यह हुआ कि नरेंद्र मोदी सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं में ही नहीं बल्कि भारत की धर्मभीरु जनता, खासतौर पर उन धर्मभीरु महिलाओं के बीच प्रसिद्धि पाते रहे जो आज भी मुसलमानों को मलेच्छ बतौर सम्बोधित करती हैं। मोदी की होने वाली निंदा इन महिलाओं के दिलों पर लगातार चोट करती रही और उनके भीतर मोदी के प्रति हमदर्दी पनपती गई, जो 2014 आते आते मोदी की पक्की वोटर बन गई। याद रहे ये वही साझी दुनिया थी जिन्होंने 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनावों में राजीव गांधी को सारे अनुमान झुठलाते हुए 400 सीटों पर रिकॉर्डतोड़ जीत दिलवाई थी।
2010 आते आते नरेंद्र मोदी पूरी तरह समझ चुके थे कि भारत की कट्टर हिन्दू महिलाओं के दिलों में उनके लिए एक खास जगह बन चुकी है और इसी के साथ टीम मोदी सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर गुजरात मॉडल के प्रचार प्रसार में लग गई।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके फैसलों और सार्वजनिक मंचों से बोले जाने वाले झूठ और अर्नगल तथ्यों की जब निंदा होती थी तो इसका बुरा सिर्फ मोदी भक्तों से ज़्यादा उन्हीं धर्मभीरु महिलाओं को लगता था जिन्हें आगे जाकर मोदी ने अपना साइलेंट वोटर कहा था। और इसी निंदा से उपजी सहानुभूति ने 2019 में 2014 से भी अधिक सीटों पर विजयी बनाया।
यह कोई जादू नहीं था बल्कि मोदी को पड़ने वाली गालियों से उपजी सहानुभूति ही थी। जिसे मोदी ने स्वीकार भी किया था कि उन्हें मिलने वाली गालियाँ ही उनकी ताक़त बनती हैं।
2019 के चुनाव परिणाम आने पर एक निजी ग्रुप चैट में इस लेखक ने रवीश कुमार से कहा भी था कि नरेंद्र मोदी के क्रियाकलापों की निंदा कर मोदी को हराना असम्भव कार्य बन गया है और हमें इस फासीवादी सरकार से निपटने के लिए कोई नया तरीका खोजना होगा। क्योंकि उनकी निंदा करने के चलते ही यह भष्मासुर खड़ा हुआ है।
सोशल मीडिया पर मोदी सरकार के काले कारनामों का खुलासा भी जहां मोदी की ताकत में इज़ाफ़ा करती है, वहीं बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री भी मोदी को गुजरात हिंसा का दोषी ही ठहराती है। ऐसे में नरेंद्र मोदी सरकार के पास ऐसा कोई कारण नहीं है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार कर खुद को हिटलर के समकक्ष खड़ा करें क्योंकि मोदी की निंदा ही तो उनकी ताकत बनती है फिर वे न जाने क्यों बोलने की आज़ादी को कुचलने पर तुले हैं।
तय मानिये कि मोदी की जितनी निंदा होगी मोदी उतने ही मज़बूत होंगे।