निरस्त दावों के पुनर्विचार के बावजूद प्रदेश में एक भी व्यक्तिगत वनाधिकार नहीं हुए मान्य. आदिवासी व वन-निर्भर समुदायों के साथ जारी है ऐतिहासिक अन्याय
छत्तीसगढ़ में वनाधिकार मान्यता कानून 2006 के क्रियान्वयन की जमीनी स्थिति की समीक्षा के लिए छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन एवं छत्तीसगढ़ वनाधिकार मंच के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 12, 13 सितम्बर 2021 को रायपुर में आयोजित बैठक में चर्चा के दौरान यह बात बताई गयी l बताया गया की, भले ही सामुदायिक वनाधिकार बाँटने में छत्तीसगढ़ सरकार अव्वल रही हो, परन्तु व्यक्तिगत वनाधिकार के मामले में फिसड्डी रही है. केन्द्रीय आदिवासी मंत्रालय द्वारा जारी मासिक प्रतिवेदन में दिसंबर 2018 में 4,01,251 व्यक्तिगत वनाधिकार बांटे गए थे,जो फरवरी 2021 की मासिक प्रतिवेदन तक भी इतने ही थे. यानि, वर्तमान सरकार के दो वर्षों से अधिक समय में कोई व्यक्तिगत वनाधिकार नहीं दिया गया है. इस बैठक में प्रदेश के 20 जिलो से आदिवासी व किसान अधिकारों पर जनवादी संगठन और सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल हुए l
इस दो दिवसीय कार्यशाला में केंद्र सरकार द्वारा बनाई जा रही उन जन विरोधी व कार्पोरेट परस्त नीतियों पर व्यापक चर्चा की गई, जिसका दुष्प्रभाव प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर आदिवासी व अन्य समुदायों पर पड़ेगा. केंद्र द्वारा लगातार, वनाधिकार मान्यता कानून को कमजोर करने के प्रयास किए जा रहे है. जिसके फलस्वरूप, ग्रामसभा को नजरंदाज कर कोल बेयरिंग कानून से जमीन अधिग्रहण के मामले भी प्रदेश में बढ़ते जा रहे है. गाँव के संसाधनों को लीज पर देने के लिए “संसाधनों का मोद्रिकरण” की नीति एवं कृषि कानूनों पर चिंता जताते हुए जनता को जागरूक कर, संगठित करने का निर्णय लिया गया l
बैठक में वनाधिकार कानून की लचर स्थिति पर भी चर्चा की गयी. कोरिया समेत कई जिलों में वनाधिकार मान्य करने की प्रक्रिया पूरी तरह ठप्प है. शेष जगह भी, विशेष आयोजनों के जरिये ही अधिकार-पत्र बांटे जाने का कार्यक्रम रखा जाता है, जबकि, टाइगर रिजर्व व अन्य संरक्षित क्षेत्रों में वनाधिकार को मान्य नहीं किया जा रहा है. उसी तरह, वन विकास निगम के प्रभाव क्षेत्र में कोई वनाधिकार नहीं दिया जा रहा है, जो की कानून का उल्लंघन है.
बैठक में तय किया गया की अगले माह, चुनिन्दा जिलों में जाकर सामुदायिक वनाधिकार दाखिल करने की प्रक्रिया में मदद की जाएगी, तथा जिला प्रशासन से अधिकारों को मान्य करने की मांग की जाएगी. साथ ही, प्राकृतिक संसाधनों पर ग्रामसभा का नियंत्रण विषय पर प्रदेश स्तरीय सम्मलेन भी आयोजित किया जायेगा.
आलोक शुक्ला