बस्तर में माओवाद बिन बुलाया मेहमान है, समय अब जनयुद्ध की रणनीति बदलने का है: शुभ्रांशु चौधरी
रायपुर । बस्तर के बीजापुर जिले में एक बड़े हमले में दो दर्जन जवानों के शहीद होने और तीन दर्जन से अधिक के घायल होने के बाद माओवादियों के केंद्रीय प्रवक्ता अभय ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कल प्रदेश और केंद्र सरकार पर अनेक आरोप लगाते हुए इस घटना के लिए इन दोनों के अलावा नार्थ ब्लाक को जिम्मेदार बताया था उसने जवानों के परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए उल्टे सरकार पर ही आरोप लगाया था कि उसने अपनी ही जनता के खिलाफ एक छेड़ रखा है ।
लगभग दो पृष्ठ की इस विज्ञप्ति एक कॉलम में अभय ने पिछले कुछ समय से बस्तर में शांति वार्ता और शांति का प्रयास कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी पर गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें *सामाजिक कार्यकर्ता का अवतार लिया सत्ता के एजेंट बताया है, उनका कहना है कि शुभ्रांशु चौधरी ने C4 नामक संगठन बनाया और छत्तीसगढ़ सरकार व माओवादियों के बीच के वार्ता का लक्ष्य लेकर शांति मार्च निकालें इस पर दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी प्रवक्ता विकल्प ने कहा था कि पहले वार्ता के लिए अनुकूल वातावरण बनाओ । इस पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रतिक्रिया दी थी कि पहले हिंसा और हथियार छोड़ना है तब वार्ता होगी । अब जब सीएम ही क्रूरता और हिंसा पर उतारू है इस पर शुभ्रांशु क्यों नहीं खंडन कर रहे हैं, इस पर शुभ्रांशु को जवाब देना है
भूमकाल समाचार ने माओवादियों की विज्ञप्ति को प्रमुखता से प्रकाशित किया था, अब माओवादियों के केंद्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब शुभ्रांशु चौधरी जी ने भूमकाल समाचार को भेजा है जिसे हम ज्यों का त्यों प्रकाशित कर रहे हैं – सम्पादक
6 अप्रैल 2021
माओवादी साथियों को एक खुला ख़त: समय अब जनयुद्ध की रणनीति बदलने का है
माओवादी पार्टी से मेरा पहला सीधा परिचय 1988 में हुआ जब मैं रायपुर विश्वविद्यालय में फ़िलोसोफ़ी पढ़ने आया था. वहाँ प्रोफ़ेसरसुरेंद्र परिहार हर रविवार सुबह 10 बजे कॉफी हाउस में एक बैठक करते थे जहां मेरी मुलाक़ात विजय उर्फ़ वासु उर्फ़ रामचंद्र रेड्डी से हुई
मैं थोड़े समय बाद दिल्ली चला गया पर मैंने विजय से प्रोफेशनल संपर्क बनाए रखा. जब भी मैं बस्तर में रिपोर्टिंग करने आया विजय कीमदद से आप में से कई माओवादी नेताओं से मिला. मैं विजय की राजनीति से कभी सहमत नहीं था पर उसके कमिटमेंट का हमेशासम्मान किया
उन्ही बैठकों में मुझे समझ आया था कि जैसे आज़ादी के बाद राजनीति लोकतांत्रिक हुई है हमें वैसे ही मीडिया को भी लोकतांत्रिक बनानेकी ज़रूरत है तब ही वह एक बेहतर राजनीतिक लोकतंत्र बनाने में मदद कर सकती है और बेहतर लोकतंत्र ही हमारी समस्याओं कासमाधान है
2004 में जब मैं फिर रायपुर वापस आया तो पाया कि माओवादियों को ख़त्म करने लिए सरकार ने एक हिंसक अभियान छेड़ रखा हैजिसके बारे में मीडिया में बहुत कम लिखा जा रहा था. तो मैंने उस समय हो रहे अन्यायों के बारे में लिखना शुरू किया, लगभग हर हफ्तेलिखा
माओवादी पार्टी के बारे में मेरी यह समझ है कि आप लोग यहां क्रान्ति करने नहीं बल्कि छुपने आये थे. आपके बड़े नेताओं ने लिखा थायहां के आदिवासियों में राजनैतिक चेतना नहीं है इसलिए क्रांति यहां नहीं होगी पर माओ के अनुसार हमें एक छिपने की जगह तैयारकरनी है
उसी “रिअर एरिया” रणनीति के तहत आपने आदिवासियों को तेंदूपत्ता के दाम, जंगल, पुलिस, पटवारी और व्यापारी के खिलाफ मददकी. जब 1990 के बाद भाजपा की सरकार ने आपके खिलाफ हिंसक जन जागरण अभियान शुरू किया तब आदिवासी आपसे जुड़नाशुरू हुए
पहले “जन जागरण” में कांग्रेस और सीपीआई दोनों ने भाजपा का साथ दिया था. 2004 के दूसरे जन जागरण (सलवा जुडूम) तकसीपीआई को अपनी गलती समझ आ गयी थी पर कांग्रेस को अब तक कुछ समझ नहीं है और 2004 के बाद आप एक बड़ी ताकत बनगए
2009 के बाद जब और लोगों ने भी मीडिया में सरकारी हिंसा और गलत नीतियों पर लिखना शुरू कर दिया था मैंने मीडिया केलोकतंत्रीकरण के अपने मूल काम पर ध्यान देना शुरू किया और लोगों ने भी हमारे मोबाइल रेडियो पर अपनी समस्याएँ रिकॉर्ड करनाशुरू किया
मेरी यह मूल समझ बनी थी कि बस्तर में मूलतः संवादहीनता की समस्या है जहां अधिकतर लोग इसलिए माओवादी बनते हैं क्योंकि शेषभारत से उनका कोई संवाद नहीं है और फिर वे बन्दूक में अपनी समस्याओं का समाधान टटोलते हैं। संवाद से कुछ समस्याएँ तो हलहोती हैं
फिर हमने गोंडी भाषा में काम शुरू किया जिस पर देश ने आधी सदी से अधिक की आज़ादी के बाद भी लगभग कोई काम नहीं किया था। मैंने पाया था कि अधिकतर आदिवासी माओवादी सिर्फ़ गोंडी भाषी हैं और उन्हें हिंदी या और कोई भाषा अक्सर नहीं आती है
2014-15 के आसपास हमारी गोंडी कार्यशालाओं में लोगों ने मुझसे कहना शुरू किया कि हमें पहले शांति के लिए काम करना चाहिए।उन्होंने कहा माओवादी पुलिस से तो अच्छे हैं पर उनके रास्ते से समाज को अधिक नुक़सान है इसलिए अब हम उस रास्ते से निकलनाचाहते हैं
हम 2-3 सालों तक यह कहकर टालते रहे कि हम पत्रकार हैं हम शांति का काम कैसे कर सकते हैं? पर वे बार बार अनुरोध करते रहे ।मैंने देखा कुछ आदिवासी माओवादियों ने पुलिस के सामने आत्मसपर्पण करना भी शुरू किया था यद्यपि तब ज़्यादातर आत्मसमर्पणफ़र्ज़ी थे
फिर मैंने उन लोगों से मिलना शुरू किया जिनसे मुझे माओवादी आंदोलन के बारे में समझ मिली थी और उसमें से एक दो को छोड़करबाक़ी सभी ने शांति के काम को शुरू करने की सलाह दी। उन्होंने कहा हम आपके साथ जुड़ नहीं सकते पर यह समय की यही जरुरत है
हमें इस काम की कोई समझ नहीं थी पर कुछ बैठकों के बाद गांधी जयंती 2018 पर पहला शांति पदयात्रा निकालने का तय कियागया।अधिकतर लोग आंध्र और तेलंगाना से आए जिन्होंने कहा हमारे भाई मुश्किल में हैं पर बोल नहीं सकते हमें उनकी मदद करनाचाहिए
फिर हमने एक जनमत संग्रह किया जिसमें 92% लोगों ने यह कहा कि इस समस्या का शांतिपूर्ण तरीक़े से बातचीत करके हल निकालनेका प्रयास करना चाहिए। पिछले माह उसी माँग को आगे बढ़ाने के लिए हमने माओवादी हेडक्वार्टर से राजधानी तक पदयात्रा की
इस बीच हमने देखा कि सरकारों ने कुछ ग़ैर संवैधानिक काम को बढ़ावा देना शुरू किया है जिसका समर्थन तो क़तई नहीं किया जासकता पर उसका विरोध करने वाले अगर वही हों जो रात में हिंसक वारदात करके सुबह लोकतांत्रिक आंदोलन करते हैं तो वह भी ठीकनहीं है
2004 के बाद सरकारें अधिक ग़लत कर रही थी पर अब मामला बदला है सरकार अब आदिवासी समर्थक क़ानून, जेल रिहाई, वनोपजआदि पर आधे मन से ही सही पर काम शुरू कर रही है और माओवादी लोगों को मुखबिर बोलकर उन्हें मार रहे हैं, उन्हें घरों से भगा रहे हैं
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में नक्सल समस्या से निपटने के लिए प्रभावी रणनीति बनाने और बातचीत के गम्भीरप्रयास करने का वादा किया था, हमें आशा है कांग्रेस जनता को किए वादे पर खरी उतरेगी और हमें यह भी कि आशा है कि माओवादीमदद करेंगे
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार ने जेल रिहाई और ज़मीन वापसी के साथ बहुत अच्छी शुरुआत की थी और हमें आशा है कि वे संविधानमें उनकी पार्टी के योगदान से बने आदिवासी समर्थक क़ानूनों जैसे पाँचवी अनुसूची, जंगल क़ानून आदि का अक्षरश: पालन करेंगे
2004 के बाद माओवादी आंदोलन पर किताब लिखने के लिए जब मैं आप लोगों से मिला तो आपने मुझसे पूछा था कि मेरी प्रतिबद्धताक्या है? मैंने आपको उस समय जवाब दिया था कि मेरी प्रतिबद्धता लोगों के प्रति है और मुझे ख़ुशी थी कि आप लोगों ने उसका सम्मानकिया था
आज मध्य भारत के जंगलों में रहने वाले लोग न्यायपूर्ण शांति चाहते हैं।जिन लोगों में पहले “राजनैतिक चेतना नहीं थी” आज उनकोआप लोगों ने लड़ने वाला बनाया है। कृपया उनकी थोड़ी और मदद कीजिए कि वे लोकतांत्रिक रूप से अपने हक़ की लड़ाई लड़ औरजीत सकें
छत्तीसगढ़ में माओवादी आंदोलन को ताकतवर बनाने का श्रेय भाजपा को है । प्रथम जन जागरण में, उन्होंने बग़ैर समझे हुए, उसकी नींवरखी और दूसरे में उसे ताकतवर बनाया पर अब कांग्रेस के सर उसको एक गैंग वार में बदलने का सेहरा बंधेगा, अगर ऐसा ही चलता रहा
आप सभी माओवादी एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए अपने घर से जंगल आए थे और विजय की तरह आप सभी के कमिटमेंट का मैंसम्मान करता हूँ पर अब जब मध्य भारत अफ़ग़ानिस्तान बनने की राह पर है तो हमें आशा है आप अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करेंगे
पिछले माह की पदयात्रा के बाद हमने पहले प्रो सुरेंद्र परिहार स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया जिसमें कोरोना के कारण उनकेपरिवार के लोग नहीं आ सके पर उन्होंने मुझे कहा कि प्रो परिहार ने आख़िरी दिनों में कहा था कि हिंसा से कोई बड़ा बदलाव अब नहीं आसकता
बस्तर में माओवाद बिन बुलाया मेहमान है, आपने बस्तरिया की मदद की है, उसे उसके जंगल का मालिकाना आपने थोड़े दिन के लिएदिया, बस्तरिया ने भी आपके बेहतर दुनिया बनाने के सपने के लिए क़ुर्बानी दी है पर अब यह आपका प्रयोग उसी बस्तर को छिन्न भिन्नकर देगा
शुभ्रांशु चौधरी