आदिवासी ईसाईयों पर फिरसे हमला
बस्तर संभाग में आदिवासी ईसाईयों पर फिरसे बड़ा हमला हुआ है. सुकमा जिले के गादीरास थाना के चिंगावरम गाँव में 24 और 25 नवम्बर की रात को एक घटना हुई जिसमें गाँव के ही आदिवासियों द्वारा गाँव के आदिवासी-इसाईओं पर हमला किया गया. हमले में 4 लोगों को गंभीर चोटें आई और 15-20 घायल हुए जिनमें औरतें भी शामिल हैं. आखिर क्या हुआ, कैसे और क्यों?
सच को समझने का एक प्रयास बस्तर अधिकार शाला के द्वारा 29 नवम्बर को किया गया. हमने गाँव में जा कर जाँच की और सुकमा में पीड़ित व घायल लोगों का बयान लिया. थाना और जिला पुलिस अधिकारियों से भी बात की.
हमने जाना कि इस गाँव में 130 जितने गोंड आदिवासियों के घर हैं. इनमें से पिछले दशक में करीब 15 परिवारों ने इसाई धर्म अपनाया है.
24 नवम्बर को मुक्का माडवी नामक एक इसाई के घर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इसमे 40 जितने मेहमान आये थे जो आस पास के गाँव और जिलों से आये थे. कार्यक्रम के पहले भाग में प्रार्थना सभा रखी गई थी जो मुक्का के आंगन में बने छोटे से गिरिजा घर में हुई. प्रार्थना उपरांत उसी घर के एक छोटे बच्चे, प्रकाश, का छट्टी भी मनाया गया. उस शाम का कार्यकर्म तकरीबन 7 बजे शुरू हुआ. छट्टी के बाद सभी ने मिल कर खाना खाया. खाने में मुर्गा, दाल और चावल बना था. खाने के उपरांत ज्यादा लोग सोने चले गए, कुछ आपस में बात-चीत कर रहे थे और 7 – 10 बच्चे और युवा गीतों के धुन पर नाँच रहे थे. संगीत 2 फुट उचाई वाले एम्पलीफायर से बज रहा था. यह कार्यकर्म नाका पारा में चल रहा था जो गाँव के एक छोर में पड़ता है.
तकरीबन एक बजे गाँव के 50 जितने लोग डंडे, तीर-धनुष, रॉड, गुलेल, टंगिया जैसे देसी हथियार से लेश हो कर आये और हमला बोल दिया. उनमे से कई दारू पिए हुए थे और गाली-गलोच और धमकी दे रहे थे. उन्होंने अंधाधुंध पिटाई शुरू कर दी – न केवल पुरुषों बल्कि महिलाओं और बच्चों की भी। पिटाई काफी समय तक चलती रही. एक पीड़ित, माडवी माडका, रात के दौरान छिपने में कामयाब रहा था लेकिन वह सुबह पकड़ लिया गया. उसने कहा: “मेरे को पकड़ कर चर्च के सामने ले जा कर मार दिया डंडा से, पलट पलट कर मार दिया.” उसकी पसली और हाथ टूट गया (सलग्न विडियो देखें).
इस हमले में 20 जितने महिला-पुरुष जख्मी हुए जिनमे 4 गंभीर रूप से जख्मी थे (माडवी माडका भी इन में एक है). जब हम उन्हें पांच दिनों बाद सुकमा में मिले जहाँ वे सब भाग कर शरण लिए हुए थे हमने पाया कि कई पीड़ितों के शरीर पर गहरे नीले दाग थे, हड्डी पसली टूटी हुई थी. (सलग्न फोटो देखें)
जब हमला चल रहा था कुछ लोग स्थानीय CRPF कैंप की तरफ भागे. CRPF कैंप केवल आधा किलोमीटर दूर है. पर वहां उनको बोला गया: “भागो यहाँ से. हम लोग नहीं जाएँगे रात में.” पर उनकी शरण में आये हुए लोगों ने वहां से जाने से इंकार कर दिया. गादीरास थाने से पुलिस सुबह करीब 6 बजे CRPF कैंप गई और वहां से नाकापारा पहुंची. कार्यवाही शुरू हुई. जख्मी लोगों को एम्बुलेंस में हॉस्पिटल ले जाया गया. कुछ ही घंटों में सुकमा जिला कलेक्टर और SP भी पहुंचे.
उसी दिन (25 नवम्बर) को FIR हुआ. गिरफ्तार किये गए 16 जनों को रू 30,000 के मुचलके पर 26 तारिक को छोड़ दिया गया. इस केस में भ.द.स की 147, 149, 294, 506B और 323 की धाराएँ लगाई गई हैं. गोरतलब है कि किसी के धर्म के साथ छेड़-छाड़ सम्बंधित भ.द.स. में दिए प्रावधानों का FIR में जिक्र नहीं है इसके बावजूद की दोनों पक्षों ने कहा कि इस हमले की मूल वजह धर्म परिवर्तन से सम्बंधित है. विश्वसनीय स्रोतों से पता चला है की घटना के सांप्रदायिक स्वरूप को नज़रंदाज़ करने का निर्देश दिया गया है।
बातचीत के दौरान विरोधी पक्ष ने इसाई परिवारों के बारे में कई तरह की शिकायते की. उनकी मुख्य शिकायत यह है कि इसाई अलग-थलग रहते हैं और गाँव की सामुहिक परंपराओं को नहीं मान रहें हैं. मिसाल के लिए, 24 तारिक के कार्यक्रम की भी गाँव के सियान लोगों को कोई जानकारी नहीं दी गई थी. कुछ व्यक्तियों ने अन्य सवाल भी उठाये जैसे क्या इसाई-आदिवासियों को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए?
प्रताड़ित परिवारों में डर का माहौल बना हुआ है. गाँव वापस जाने से घबरा रहें हैं। एक युवक ने बताया कि उनको धमकी दी गई: “अगर वापस आओगें तो हत्या हो जाएगी.”
सवाल कई है और गहरे हैं. एक तरफ संविधान में धर्म-निरपेक्षता एक बुनियादी सिधांत है. दूसरी तरफ आदिवासी जनजाति की संस्कृति और जीवन जीने के तरीके को बचाये रखने का उद्देश्य भी है. फिर भी क्या हम सब यह मानेगे की वाद-विवाद को सुलझाने के कई तरीके होते हैं. अपने ही भाई-बहनों को मारना क्या आदिवासी संस्कृति का भाग जो सकता है?
जाँच के सदस्य: बेला भाटिया, ज्यां द्रेज़
बेला भाटिया Bela Somari
अधिवक्ता व मानव अधिकार कार्यकर्ता बस्तर अधिकार शाला (BAS)