हम भेड़ियों के खिलाफ हैं बोलना होगा कि हम कश्मीरी भाई बहनो के साथ हैं
कश्मीर आज कैद में है बुलबुल सय्यद मुस्कुराये
बादल सरोज
राजा हरीसिंह के पाकिस्तान के साथ करार के बावजूद,
उनके पधानमंत्री रामचंद्र काक के शेख अब्दुला को पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने के लिए राजी करने की लाख कोशिशों के बावजूद ;
सरदार वल्लभभाई पटेल, जो बाद में गृहमंत्री ने बने, के जून 1947 में राजा हरीसिंह से से यह कहने कि “अगर कश्मीर पाकिस्तान में शामिल हो जाता है तो भारत सरकार इससे अमैत्रीपूर्ण काम नहीं मानेगी। “
के बावजूद ;
शेख अब्दुला और कश्मीरी अवाम ने भारत में शामिल होने का निर्णय लिया।
अपने फैसले के औचित्य को स्पष्ट करते हुए शेख अब्दुला ने संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) के भारत-पाक आयोग के अध्यक्ष #जोसफ_कार्बेल से चर्चा में कश्मीरी जनता की तरफ से कहा था कि “भारत में शामिल होकर ही कश्मीर को असली आजादी मिल सकती है।”
नेहरू की मौजूदगी में लालचौक पर इसका एलान करते हुए शेख अब्दुला ने अमीर खुसरो की फारसी की रुबाई सुनाते हुए कहा था कि;
मन तू शुदम तू मन शुदी
मन तन शुदम तू जां शुदी
ताकस न गोयद बाद अज़ीं
मन दीगरम तू दीगरी
(भावार्थ ; मै तुम हूँ, तुम मैं हो/ मैं शरीर हूँ तुम आत्मा हो/ आज के बाद कोई नहीं कह सकता/कि तुम मुझसे अलग हो और मैं तुमसे अलग।)
उस कश्मीर को
सख्त कैद में कराहते हुए आज पूरी एक साल हो गयी। कम्पलीट शटडाउन है, न खेती हो रही है न सेब बिकने गए हैं, न स्कूल खुले हैं न कालेज। सड़कें कंटीले तारों से घिरी और नागरिकों की पहुँच से बाहर हैं. इस सबके बाद भी सीमापार से आये आतंकियों के सैन्य बलों पर हमले कम नहीं हुए उलटे तीन चार गुना बढे हैं।
उस कश्मीर के
हजारों हिन्दुस्तानी जेलों में हैं। हजारों माँये पुलिस हिरासत में लापता हुए अपने बेटों की खोज में पुलिस थानों के चक्कर लगा रही हैं। हजारों हाफ-विडोज (अर्ध-विधवायें ) हिन्दुस्तानी औरतें अपने लापता पति के इन्तजार में दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं।
चारों तरफ खाकी वर्दी और बंदूकें है – लोकतंत्र कहीं नहीं है।
महीने सवा महीने के सादा से वालन्टियरी कोरोना लॉकडाउन में बिलबिला जाने वाले हम लोग साल भर से जारी इस घोषित तथा ऑफिशियल और कई वर्षों से चल रहे अघोषित लॉकडाउन में फंसे अपने ही कश्मीरी भाईयों की मनोदशा, अलगाव और पीड़ा को महसूस कर सकते हैं।
इतिहास गवाह है कि यदि एक कोने में भी अन्धेरा है तो बाकी रौशनी सलामत नहीं है।
यकीन नहीं होता तो देख लीजिये कश्मीर के बाद का हिन्दुस्तान।
भेड़िये जब आते हैं तो आधारकार्ड या वोटर आईडी नहीं देखते , समझ रहे हैं ना।
बोलना होगा कि
हम भेड़ियों के खिलाफ हैं।
बोलना होगा कि
हम कश्मीरी भाई बहनो के साथ हैं
बादल सरोज